आत्मबोध से परमतत्व की प्राप्ति का मार्ग समस्त सृष्टि को मानवता, एकता, अखंडता, विश्व-बंधुत्व आदि सृजनात्मक शक्तियों का परिचय प्रदान कर्ता है। वास्तविक अर्थों में मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मा का परमतत्व रूपी परमात्मा से मिलन है। इसके लिए आत्मबोध आवश्यक है। यदि परमतत्व का बोध कर लें तो फिर अपने आप ही आत्मबोध हो जाएगा ।समस्त सृष्टि में रंग, नस्ल, भाषा, संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, संगठन, संस्था से जुड़े व्यक्ति अलग -अलग हैं। परन्तु सबकी माटी एक है, इसे एक सृजनहार परमतत्व रूपी परमात्मा ने सजाया है। जिस मानव ने जीवन में अज्ञानता की गांठ को खोल लिया। उस मानव ने परमात्मा को कण-कण में देखा, घट घट में पहचाना, तो इंसान खुशियों से भरपूर हो गया । सदैव ज्ञान की रोशनी भेद मिटाती है, भ्रम खत्म करती है, ज्ञान के बाद नफरत नहीं शाश्वत प्रेम जागता है । मानव की प्रकृति मौसम के अनुसार बदलती है, लेकिन सत्य बदलता नहीं, यही जीवन का आधार है। सत्य से अपने को जोड़ लेने वाले मानव का कल्याण होता है ।
संत कबीर ने अपनी वाणी में परमतत्व की प्राप्ति के सन्दर्भ में परमज्ञान प्रदान करते हुए कहा है:-
गगन की ओट निशाना है..दाहिने सूर चंद्रमा बांये, तीन के बीच छिपाना है |
तनकी कमान सुरत का रौंदा, शबद बाण ले ताना है |
मारत बाण बिधा तन ही तन, सतगुरु का परवाना है|
मार्यो बाण घाव नहीं तन में, जिन लागा तिन जाना है |
कहे कबीर सुनो भाई साधो, जिन जाना तिन माना है |
रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में परमतत्व परमात्मा की कृपा के सन्दर्भ में एक चौपाई निम्नवत है:-
ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना। मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना॥आजु देउँ सब संसय नाहीं। मागु जो तोहि भाव मन माहीं॥॥
अर्थात:-ज्ञान, विवेक, वैराग्य, विज्ञान, (तत्त्वज्ञान) और वे अनेकों गुण जो जगत् में मुनियों के लिए भी दुर्लभ हैं, ये सब मैं आज तुझे दूँगा, इसमें संदेह नहीं। जो तेरे मन भावे, सो माँग ले॥
मानव के निर्मल मन में ही होता, परमतत्व का दर्शन ।
परमतत्व के आनंद का, नहीं हो सकता वर्णन ॥
परमतत्व है अवर्णनीय’ अकथनीय, अचिन्त्य, अच्युत अनादि-अनंत ।
परमतत्व है अजन्मा, अक्षर, अविनाशी, अव्यय, असीम अखंड ॥
परमतत्व है निस्पृह निश्चिंत निर्मल, निर्लेप, निर्गुण, निराकार ।
परमतत्व है निष्कलंक, निष्कपट, निर्विकल्प, निर्विचार, नि र्विकार ॥
परमतत्व है तत-चित-आनंद, परम आनंद, परम ज्ञान ।
परमतत्व है परम-प्रेम, परम-प् रकाश, परम सत्य परम जीवन ॥
परमतत्व है कालातीत, गुणातीत, धर्मातीत, सहजानंद ।
परमतत्व है शिव परमेश्वर, ब् रह्मानंद, अनंतानंद ॥
परमतत्व है अजन्मा, अक्षर, अव्यय, अविनाशी परमात्मा को जान ।
परमतत्व है आत्मबोध से सरलता, परमतत्व की प्राप्ति का होता ज्ञान ॥
परमतत्व के आनंद का, नहीं हो सकता वर्णन ॥
परमतत्व है अवर्णनीय’ अकथनीय, अचिन्त्य, अच्युत अनादि-अनंत ।
परमतत्व है अजन्मा, अक्षर,
परमतत्व है निस्पृह निश्चिंत
परमतत्व है निष्कलंक, निष्कपट,
परमतत्व है तत-चित-आनंद, परम
परमतत्व है परम-प्रेम, परम-प्
परमतत्व है कालातीत, गुणातीत,
परमतत्व है शिव परमेश्वर, ब्
परमतत्व है अजन्मा, अक्षर, अव्यय, अविनाशी परमात्मा को
परमतत्व है आत्मबोध से सरलता, परमतत्व की प्राप्ति का होता ज्ञान ॥
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