प्रस्तुत आलेख 'फेसबुक' पर लगभग एक वर्ष पूर्व प्रस्तुत किया था, आज पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ |आप सभी से निवेदन है कि आप अपने विचार अवश्य प्रदान करें.....
( on Saturday, December 11, 2010 at 11:19am)
हमारे सपनों के प्यारे देश भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान मेंसबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश संत्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने काकार्य काफी समय से इसके द्वारा हो रहा है।आज जबकि कदम-कदम पर लोगों के मान-सम्मान को बेरहमी से कुचला जा रहा है। अधिकतर लोगों के कानूनी, संवैधानिक, प्राकृतिक एवं मानव अधिकारों का खुलेआम हनन एवं अतिक्रमण हो रहा है। हर व्यक्ति को मनमानी, गैर-बराबरी, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड रहा है।
यह दयनीय स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी उसे खुली हवां में सांस लेने का मौका मिलने वाला था उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक मे रखने के लिए तैयार हो गये हैं। खैर बीती ताहि बिसार दे। उस समय की बात को छोड वर्तमान स्थिति में दृष्टि डालें तो काफी भयावह मंजर सामने आता है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचारके लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है।ऐसी अनेकों प्रकार की नाइंसाफी, मनमानी एवं गैर-कानूनी गतिविधियाँ केवल इसलिये ही नहीं चल रही हैं कि सरकार एवं प्रशासन में बैठे लोग निकम्मे, निष्क्रिय और भ्रष्ट हो चुके हैं, बल्कि ये सब इसलिये भी तेजी से फल-फूल रहे हैं, क्योंकि हम आजादी एवं स्वाभिमान के मायने भूल चुके हैं। सच तो यह है कि हम इतने कायर, स्वार्थी और खुदगर्ज हो गये हैं कि जब तक हमारे सिर पर नहीं आ पडती, तब तक हम इनके बारे में सोचते ही नहीं! इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि गैर-कानूनी कार्यों में लिप्त लोगों के राजनैतिक एवं आपराधिक गठजोड की ताकत के कारण आम व्यक्ति इनसे बुरी तरह से भयभीत हैं और इनका सामना करने की सोचते हुए भी डरने लगता हैं। यह जानते हुए भी कि सर्प चूहों को अक्सर उनके बिलों में ही दबोचते हैं। फिर भीहम चूहों की तरह अपने घरों में, स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित समझ कर दुबके हुए हैं ।
यदि हम इसी प्रकार से केवल आत्म केन्द्रित होकर स्वार्थपूर्ण सोच रखे रहे , तो हमारे सामने भी भ्रष्टाचार अनेक रूप में सामने आएगा ,
यथा----
(1.)हम या हमारा कोई अपना, बीमार हो और उसे केवल इसलिये नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवायें उन अपराधी लोगों ने नकली बनायी हों, जिनका हम विरोध नहीं कर पा रहे हैं?
(2.)हम कोई अपना, किसी भोज में खाना, खाने जाये और खा वस्तुओं में मिलावट के चलते, वह असमय ही तडप-तडप कर बेमौत...!
(3.)हम कोई अपना, बस यात्रा में हो और बस मरम्मत करने वाले मिस्त्री द्वारा उस बस में नकली पुर्जे लगा दिये जाने के कारण, वह बस बीच रास्ते में दुर्घटना हो जाये और...?
(4.)हम अपने वाहन में पेट्रोल या डीजल में घातक जहरीले कैमीकल द्रव्यों की मिलावट के कारण बीच रास्ते में वाहन के इंजन में आग लग जाये और...?
(5.)जब हम या हमारा कोई आत्मीय किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण किसी अस्पताल में भर्ती हो और भ्रष्ट डॉक्टर बिना रिश्वत लिये तत्काल उपचार या ऑपरेशन करने से मना करे दे या लापरवाही, अनियमितता या विलम्ब बरते और...?
(6.)जब हम या कोई आत्मीय रेल यात्रा करे और रेल की दुर्घटना हो जाये, क्योंकि रेल मरम्मत कार्य करने के लिये जिम्मेदार लोग मरम्मत कार्य किये एवं संरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही वेतन उठाते हों! और दुर्घटना में...!
सर्वे में सामने आया कि रिश्वत विभिन्न मकसदों को पूरा करने के लिहाज से मांगी जाती है। करीब 70 प्रतिशत बार रिश्वत लेने के मामले ऐसे होते हैं जब इन्हें किसी भी तरह का नुकसान न हो उसके एवज में लिया जाता है। 12 प्रतिशत रिश्वत के मामले व्यक्तिगत और व्यावसायिक फायदे के लिए किया जाता है। जबकि चीन में 54 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिसमें 54 प्रतिशत मामले किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के लिए होते हैं ।
अभी अक्तूबर,२०१० में देहली में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स से ‘हे प्रभु’ नित्य-प्रतिदिन इतने झोल,भ्रष्टाचार और इतने घोटाले उजागर हो रहे है....मन करने लगा है कि इन प्रतिनिधियों से जा कर कहे “जब जिगर में नही था बूता , तो फिर लंका में क्यों कूदा?" जिस क्षेत्र में जो योग्य हो वही पैर रखा करे वरना अपनी क्षमता के अनुसार दूसरे क्षेत्र में जाया करे ! कॉमनवेल्थ गेम्स से तो ये बात सर्वविदित हो ही गयी है की ज़िम्मेदार पदों पर कितने गैर ज़िम्मेदार लोग बैठे है ! एक दूसरा रूप यह भी देखने को मिलता है की भ्रष्टाचार कितने उच्च स्तर तक है ! गेम्स की योजना बनने से पहले ही टेंडर फिक्स हो गये तैयारिया अभी तक पूरी नही हुई वो भी तब जब की यह देश की प्रतिष्टा का विषय है ! हमारे देश में कमी किस चीज़ की है?- धन की या जनबल की ? हमारे देश का ब्रेन दूसरे देशो में फल-फूल रहा है और अपने यहाँ ही प्रयोग नही होता अगर ऐसे समय में प्रशासनिक अधिकारी नही मिलते है तो पद रिक्तियां दो आज बहुत सा ऐसा युवा है जिसे आज बस मोहर (सिलेकशन रुपी) नही मिली वरना वो भी I.A.S. या I.P.S .ही है ! भ्रष्टाचार का जो खुल्लम-खुल्ला रूप इस बहाने दिख रहा है उसे हमारी माननीय सरकार नही देख रही है, तो हर कोई समझ सकता है की एक विभाग में होने वाले भ्रष्टाचार भला कैसे उजागर हो पाते होंगे !
भ्रष्टाचार के निरंतर बढ़ते हुए प्रभाव के बावजूद यदि हम नाइंसाफी के विरुद्ध, पूरी ताकत के साथ और दिल से बोलना शुरू करें, अपनी बात कहने में हिचकें नहीं, तो अभी भी बहुत कुछ ऐसा बचा हुआ है,जिसे बचाया जा सकता है, लेकिन हम इसी तरह से आत्मकेंद्रित होकर विचार करते रहें कि मुझे झंझट में पड़कर क्या करना है तो वह दिन दूर नहीं जबकि स्थितियां भयावह रूप में हमारे समक्ष होंगी:-
(1.)आपको अपने मुकमदे की शीघ्र सुनवायी या शीघ्र फैसला करवाने के लिये भी शुल्क देना पडेगा !
(2.)अस्मत लुटने पर भी पुलिस वाले रिपोर्ट लिखने से साफ इनकार कर दें और कहें कि पहले रिशवत दो, तब ही मुकदमा दर्ज होगा?
(3.)राशन की दुकान वाला गरीबों को मिलने वाले सारे के सारे राशन को ही काला बाजारियों के हवाले कर दे और गरीब लोग भूख से तडत-तडप कर मर जायें?
(4.)किसी साधारण या बीपीएल परिवार के व्यक्ति के बीमार होने पर, बिना रिश्वत दिये सरकारी अस्पताल में भी इलाज करने से साफ इनकार कर दिया जावे?
(5.)आवासीय विद्यालयों में पढने जाने वाली छाताओं की, उनके विद्यालय संरक्षक स्वयं ही अस्मत लूटने और बेचने लगें ?
(6.)सीमा पर तैनात सेना अधिकारी या कोई सेना अध्यक्ष पडौसी दुश्मन देश से रिश्वत लेकर, देश की सीमाओं को उस देश की सेनाओं के हवाले कर दें?
मशहूर वकील राम जेठमलानी का कहना है कि भारतीय सरकार स्विस बैंकमें जमा 1500 बिलियन डॉलर की रकम को लाने को लेकर अधिक गंभीर नहीं है। जेठमलानी का कहना है कि अगर ये रकम भारत आ जाती है तो देश तीस साल तक कर के बोझ से मुक्त हो जाएगा। यही नहीं सरकार इस बात का भी खुलासा नहीं कर रही है कि किन लोगों ने स्विस बैंक में अपनी रकम छिपा रखी है। जेठमलानी ने इस बात को लेकर एक जनहित याचिका दायर कर रखी है कि सरकार उन नामों का खुलासा करें जिन्होंने स्विस बैंक में अपने पैसे जमा कर रखे है। जेठमलानी ने पूरे वकील समुदाय से इस बात की अपील की कि सभी साथ मिलकर स्विस बैंक से काले धन को लाने में सहयोग करें ।
भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुँच पाता है ! इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है ! सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, जिससे पहले स्थिति सुधरी है. पर कितने प्रतिशत? यह कहना मुश्किल है ! जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है !वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो ने सिर्फ साफ स्वच्छ छवि के नेताओंका चयन करना होगा बल्कि लोकतंत्र के नागरिको को भी सामने आना होगा। उन्हें प्राणपण से यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्चस्तर पर भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों काबायकॉट करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीर्ध्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। कुल मिला जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार के जिन्न से बच पाना असंभव ही है।
{प्रस्तुत आलेख का कुछ अंश भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान के पूर्व प्रकाशित लेख से साभार है !}
हमने हमारे नैतिक मूल्यों को खो दिया है । जब तक आम आदमी में नैतिक मूल्यों की स्थापना नही होगी तब तक भ्र्ष्टाचार नही मिट सकता। आश्चर्य है हमारे संविधान में "ईमानदारी " शब्द का एक बार भी उपयोग नहीं किया गया है
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