सोमवार, 14 नवंबर 2011

'ग्यारह बाल-गीत'



बाल-दिवस के अवसर पर नन्हे मुन्ने अपने देश के कर्णधारों को अनेकानेक स्नेहसिक्त शुभकामनायें......

आज बाल दिवस के अवसर पर ग्यारह बाल-गीत मेरे प्य्रे नन्हे-मुन्ने बच्चों को उपहारस्वरूप.........
(१)
टिमटिम तारे, चंदा मामा,
माँ की थपकी मीठी लोरी|
सोंधी मिटटी, चिडियों की बोली,
लगती प्यारी माँ से चोरी ||
सुबह की ओस सावन के झूले,
खिलती धूप में तितली पकड़ना|
माँ की घुड़की पिता का प्यार,
रोते रोते हँसने लगना ||
पल में रूठे, पल में हँसते ,
अपने आप से बातें करना |
खेल खिलौने साथी संगी ,
इन सबसे पल भर में झगड़ना ||
लगता है वो प्यारा बचपन ,
शायद लौट के ना आए |
जहाँ उसे छोड़ा था हमने ,
वहीं पे हमको मिल जाए ||
'जय हिंद,जय हिंदी'
(२)
खों-खों करके उछला बन्दर ।
जो जीते कहलाए सिंकन्दर ।।
टिउ - टिउ जब तोता बोला ।
पिंकी ने पिंजरे को खोला ।।
चूँ - चूँ करके चूहा बोला ।
सूरज गरम आग का गोला ।।
बिल्ली बोली म्याऊँ-म्याऊँ ।
दूध मलाई डट के खाऊँ ।।
घोड़ा जोर से हिनहिनाया ।
हमने अनुशासन अपनाया ।।
में- में कर बकरी मिमियाई ।
हमको भाती खूब मिठाई ।।
टर्र - टर्र मेंढक टर्राया ।
मेहनत से 
मैं ना घबराया ।|
ढेचूँ-ढेचूँ गधा जो रेंका ।
कचरा  कूड़ेदान में फेंका ।।
भौं - भौं करके कुत्ता भौंका ।
आया इक आंधी का झोंका ।।
गर्र-गर्र करके शेर दहाड़ा ।
स्कूल में पढाया पहाड़ा ।।
 
(साभार- दीनदयाल शर्मा)

(३)
अक्कड़ मक्कड़ ,धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख,दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे,ठाठ से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे |
बात-बात में बात ठन गयी,
बांह उठीं और मूछें तन गयीं |
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढी खींची |
अब वह जीता, अब यह जीता;
दोनों का बढ चला फ़जीता;
लोग तमाशाई जो ठहरे ,
सबके खिले हुए थे चेहरे |
मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजा कर्रा - कक्कड़;
बढा भीड़ को चीर-चार कर,
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर |
अक्कड़ मक्कड़ ,धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख,दोनों अक्खड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा !
उसने कहा सधी वाणी में,
डूबो चुल्लू भर पानी में;
ताकत लड़ने में मत खोऒ,
चलो भाई चारे को बोऒ |
खाली सब मैदान पड़ा है,
आफ़त का शैतान खड़ा है,
ताकत ऐसे ही मत खोऒ,
चलो भाई चारे को बोऒ ||
(साभार-भवानीप्रसाद मिश्र)

(४)
अक्कड़-बक्कड़ बोकरी,बाबाजी की टोकरी ।
टोकरी से निकला बंदर,बंदर ने मारी किलकारी |
किलकारी से हो गया शोर,शोर मचाते आ गए बच्चे |
बच्चे सारे मन के कच्चे |
कच्चे-कच्चे खा गए आम,आम के आम गुठली के दाम |
दाम बढ़े हो गई महंगाई,महंगाई में पड़े न पार |
पार करें हम कैसे नदिया,नदिया में नैया बेकार |
बेकार भी हो गई पेटी,पेटी में ना पड़ते वोट |
वोट मशीनों में है बटन,बटन दबाओ पड़ गए वोट |
वोट से बन गए सारे नेता,नेता भी लगते अभिनेता |
अभिनेता है मंच पे सारे,सारे मिलकर दिखाते खेल |
खेल देखते हैं हम लोग,लोग करें सब अपनी-अपनी |
अपनी डफली अपना राग |
राग अलापें अजब-गजब हम,हम रहते नहीं रलमिल सारे |
सारे मिलकर हो जाएँ एक,एक-एक मिल बनेंगे ताकत |
ताकत सफलता लाएगी,लाएगी खुशियाँ हर घर-घर |
घर-घर दीप जलाएगी ।
(साभार- दीनदयाल शर्मा)

(५)
सदा हमें समझाए नानी,नहीं व्यर्थ बहाओ पानी ।
हुआ समाप्त अगर धरा से,मिट जायेगी ये ज़िंदगानी ।
नहीं उगेगा दाना-दुनका,हो जायेंगे खेत वीरान ।
उपजाऊ जो लगती धरती,बन जायेगी रेगिस्तान ।
हरी-भरी जहाँ होती धरती,वहीं आते बादल उपकारी ।
खूब गरजते, खूब चमकते,और करते वर्षा भारी ।
हरा-भरा रखो इस जग को,वृक्ष तुम खूब लगाओ ।
पानी है अनमोल रत्न,तुम एक-एक बूँद बचाओ ।
(साभार-  श्याम सुन्दर अग्रवाल)

(६)
एक किरण आई छाई,दुनिया में ज्योति निराली |
रंगी सुनहरे रंग में,पत्ती-पत्ती डाली डाली |
एक किरण आई लाई,पूरब में सुखद सवेरा |
हुई दिशाएं लाल,लाल हो गया धरा का घेरा |
एक किरण आई हंस-हंसकर,फूल लगे मुस्काने |
बही सुंगंधित पवन,गा रहे भौरें मीठे गाने |
एक किरण बन तुम भी,फैला दो दुनिया में जीवन |
चमक उठे सुन्दर प्रकाश से,इस धरती का कण कण |
(साभार-   सोहनलाल द्विवेदी )

(७)
ये जो देख रहो हो,धरती माँ के बच्चे।
तुम फूलों के गुच्छे,ये भी हैं तुम जैसे
इन्हें देखकर मधुर,गीत, पंछी गाते हैं,
थकी हुई आँखों में,सपने तिर जाते हैं।
उजली रातों में ये,
मोहक प्यारे-प्यारे।
लगते नभ के तारे,दिन में इंद्रधनुष-से,
जब तक ये हैं,तब तक भू पर सुंदरता है,
भोली-भाली परियों,की-सी कोमलता है।
पौधों की डालों पर,इनको मुसकाने दो,
दुनिया के आँगन में,ख़ुशबू भर जाने दो।
(साभार- रमेश कौशिक)

(८)
बांध शीश पर कफन,बढ़े चलो जवान,
आंधियो को मोड़ दे,तू बन के तूफान।
बढ़े चलो जवान...
हिन्द की सरहद को,पार जा करे,
उसके शीश पर पलट,तू काल सा पड़े।
तुझसे होनहार पे,हम सबको है गुमान।
आंधियो को मोड़ दे,तू बन के तूफान।
बढ़े चलो जवान...
वीरों की धरा पे तूने,है लिया जन्म,
मां के वीर लाड़लो की,है तुझे कसम !
काल भी हो सामने,उखड़ न पाए पांव।
आंधियो को मोड़ दे,तू बन के तूफान।
बढ़े चलो जवान...
 (साभार- शिवराज भारतीय)

(९)
अभी अभी थी धूप, बरसने,लगा कहाँ से यह पानी,
किसने फोड़ घड़े बादल के,की है इतनी शैतानी।
सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया,अपने घर का दरवाजा़,
उसकी माँ ने भी क्‍या उसको,बुला लिया कहकर आजा।
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं,बादल हैं किसके काका,
किसको डाँट रहे हैं, किसने कहना नहीं सुना माँ का।
बिजली के आँगन में अम्‍माँ,चलती है कितनी तलवार,
कैसी चमक रही है फिर भी,क्‍यों खाली जाते हैं वार।
क्‍या अब तक तलवार चलाना,माँ वे सीख नहीं पाए,
इसीलिए क्‍या आज सीखने,आसमान पर हैं आए।
एक बार भी माँ यदि मुझको,बिजली के घर जाने दो,
उसके बच्‍चों को तलवार,चलाना सिखला आने दो।
खुश होकर तब बिजली देगी,मुझे चमकती सी तलवार,
तब माँ कर न कोई सकेगा,अपने ऊपर अत्‍याचार।
पुलिसमैन अपने काका को,फिर न पकड़ने आएँगे,
देखेंगे तलवार दूर से ही,वे सब डर जाएँगे।
अगर चाहती हो माँ काका,जाएँ अब न जेलखाना,
तो फिर बिजली के घर मुझको,तुम जल्‍दी से पहुँचाना।
काका जेल न जाएँगे अब,तूझे मँगा दूँगी तलवार,
पर बिजली के घर जाने का,अब मत करना कभी विचार।
(साभार- सुभद्राकुमारी चौहान)

(१०)
छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम ।
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया,
कपड़ों को अपने बदलना न आया,
लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम।
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना,
घर आके दिया हुआ काम निबटाना,
होमवर्क करने में फूल जाये दम।
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती,
दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती,
बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम।
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना,
रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना,
उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम।
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
(साभार-जगदीश व्योम)

(११)
चन्दा मामा दूर के.........
छिप-छिप कर खाते हैं हमसे,लड्डू मोती चूर के,
लम्बी-मोटी मूँछें ऐंठे,सोने की कुर्सी पर बैठे,
धूल-धूसरित लगते उनको,हम बच्चे मज़दूर के,
चन्दा मामा दूर के।
बातें करते लम्बी-चौड़ी,कभी न देते फूटी कौड़ी,
डाँट पिलाते रहते अक्सर,हमको बिना कसूर के,
चन्दा मामा दूर के।
मोटा पेट सेठ का बाना,खा जाते हम सबका खाना,
फुटपाथों पर हमें सुलाकर,तकते रहते घूर के,
चन्दा मामा दूर के।

'जय हिन्द,जय हिन्दी'

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारे बालगीत ...सुंदर पोस्ट

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  2. डॉ० मनोज चतुर्वेदी साहब, बाल दिवस के शुभ अवसर पर इस संकलन के माध्यम से आपने बच्चों को यह अमूल्य भेंट दी है, जिसके लिए हृदय से बहुत-बहुत बधाई ! और हाँ ...पहली कविता टिमटिम तारे, चंदा मामा,
    माँ की थपकी मीठी लोरी| मेरे द्वारा ही रची गयी है .....कृपा करके वहाँ पर मेरा नाम तो डाल दीजिए | सादर धन्यवाद
    --अम्बरीष श्रीवास्तव
    http://kavyanchal.com/navlekhan/?tag=bachapan

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