गुरुवार, 17 नवंबर 2011

परमश्रद्धेय ब्रह्मलीन पिताश्री की पाँचवीं पुण्यतिथि पर समर्पित



हमें जन्म देती है माँ, लेकिन चलना सिखाते हैं पिता .....
हर कदम पर बच्चों के रहनुमा होते हैं पिता |
नाज़ुक फूलों से लहराते ये मासूम बच्चे ,
प्यारी सी इस बगिया के बागबान होते हैं पिता |

इसीलिये तो हमारे कष्ट पर दुखी होते है बहुत,
अश्क आंखों से बहे न बहे पर दिल में रोते हैं पिता |
तेज़ धूप गम की हम तक न पहुँचे कभी,
साया बन सामने खड़े होते हैं पिता |
मुरादें पूरी करने को सारी इच्छाएँ हमारी ,
थकान के बाद भी काम करते हैं पिता |
गलतियों पर हमारी डाँटते हैं हमें,
डाँट के ख़ुद भी दुखी होते हैं पिता |
जोर से रो के जब सो जाते हैं हम ,
पास बैठ देर तक निहारते हैं पिता |
हमारे जीवन में आती हैं जब दो राहें कभी ,
हमारे लिए सही राह का इशारा कर देते हैं पिता |
ज़ब भी लड़खड़ाये जो कभी कदम हमारे ,
अपनी बांहों मे थाम लेते हैं पिता |
हमें देने को अच्छा एक सुनहरा भविष्य,
पूँजी जीवन भर की हम पर लुटा देते हैं पिता |
हमेशा खुश रहें बेटियाँ दुनिया में अपनी ,
कर्ज ले के भी बेटी का घर बसाते हैं पिता |
केवल निभाने को रीत इस दुनिया की ,
भरे दिल से बेटी को विदा कर देते हैं पिता |
उन्हें छोड़ जब दूर बस जाते हैं हम ,
चीजें देख हमारी ख़ुद को बहलाते हैं पिता |
यहाँ आके ये भी न सोचते हैं हम ,
जब न दिया तो क्या खाते हैं हमारे पिता |
पहले समझ न पाए उन के प्यार को हम ,
आज हुआ अहसास जब ख़ुद बने हैं पिता |
माँ कहती रही पर माना नहीं हमने ,
बहती रहीं अँखियाँ जब चले गए पिता ||
(साभार) 

'जय हिन्द,जय हिन्दी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है,
    यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
    पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है,
    यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ||
    (साभार)
    'जय हिन्द,जय हिन्दी'

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  2. दर्द ने ऐसी ग़ज़ल गायी है,याद कोहरे-सी दिल पर छायी है !
    जाने वालों ज़रा ठहरो,देखो..प्यार की आंख छलक आयी है !!
    क्या करूँ बहुत कड़ा पहरा है,हर तरफ एक प्रश्न गहरा है !
    बात मन की कहूँ मै किससे,कान हैं किन्तु मनुज बहरा है !!
    (साभार-डॉ.तपेश चतुर्वेदी)

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  4. परमादरणीय परमश्रद्धेय ब्रह्मलीन परमादरणीय गुरुदेव को मेरा शत-शत विनम्र नमन !

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