गुरुवार, 23 जून 2011

'स्थापित और मान्य भ्रष्टाचार की समस्या'



वर्तमान भारतीय समाज के सामने स्थापित और मान्य भ्रष्टाचार की समस्या विकराल रूप धरे खड़ी है। यदि कुछ वर्ष और ऐसी स्थितियां रही तो यह व्यवस्थाएं इतनी विकराल हो जाएगी कि देश और समाज टूटने लगेगा । अहिंसक जनआंदोलन परिणाम ला सकते हैं और वोट से सत्ता पर जरूर प्रभाव डाला जा सकता है। इन बातों की प्रासंगिकता आज बनी हुई है, जरूरत इस बात की है कि जितना संभव हो सके आत्मविश्वास के साथ विनयशीलता बनाए रखनी चाहिए और संवाद से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। सभी के हाथों में सत्य का टुकड़ा है। संयम से ही कोई अच्छी सी तस्वीर बनाई जा सकती है ।यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जब भी सज्जन शक्ति में नेतृत्व उभरता है तो उसके विनाश में लग जाते हैं। महात्मा गांधी के साथ यही हुआ। लालबहादुर शास्त्री को भी टिकने नहीं दिया गया। जयप्रकाश नारायण के चारो तरफ इन शक्तियों का बोल-बाला रहा औरजन-नायक अपने को ठगा सा महसूस करते रहे। वर्तमान में भी सज्जन शक्ति में छोटे-बड़े नेतृत्व उभरते हैं परन्तु शीघ्र ही या तो उन्हें निष्क्रय कर दिया जाता है या फिर उन्हें भी भ्रष्टाचारी और छद्म शिष्टाचारी बना दिया जाता है । आज ऐसा साफ दिख रहा है कि भय तो किसी का रहा ही नहीं और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । अब फिर यही देखना है कि किसी में हिम्मत है, प्रशासन में घुन की तरह घुसे-जमे बैठे भ्रष्ट, नाकारा, निकम्मे लोगों को बाहर निकाल फैंकने की है ?
श्रीमदभगवदगीता में भी इसी तरह के नेतृत्व की ओर इशारा है कि जब-जब समाज में दुराचार और अनाचार का व्यवहार एक सीमा से बढ़ेगा तो शिष्टाचार को फिर से स्थापित करने के लिए समाज के अंदर से ही शक्तियां उभरती हैं। अगर आज के भारत में यह नहीं हुआ तो भारतीय समाज अवश्य ही किसी गंभीर संकट में अपने को उलझा हुआ पायेगा।
आज भारतीय समाज के बड़े वर्ग को जो न तो भ्रष्टाचारी है न भ्रष्टाचार को संरक्षण देता है | हमें यह तय करना होगा कि कब तक वह इन देशद्रोही शक्तियों का वर्चस्व सहेगा ? ऐसा कहा जाता है कि जो रिश्वत लेता है, वह तो अपराधी है ही परन्तु जो रिश्वत देता है वह भी उतना ही अपराधी है । अब हमें यह समझने की बात यह है कि जो इस रिश्वत के लेन-देन का विरोध नहीं करते उनका भी कहीं-न-कहीं अपराध में योगदान है। यह एक निर्विवाद सत्य है कि पाप न करना धर्म का अनुपालन है, परन्तु पाप का विरोध करना धार्मिक कर्तव्य हो ऐसा दायित्व प्रत्येक भारतीय का होना चाहिए।
महात्मा गाँधी,जयप्रकाश नारायण और वर्तमान में बाबा रामदेव,सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे या अन्ना जैसे लोग आंदोलन करके अपनी कुछ बातें मनवा तो सकते हैं लेकिन भ्रष्ट नेताओं को सुधार नहीं सकते हैं। यदि वह नहीं सुधरेंगे तो भारतीय राजनीति नहीं सुधरेगी और भारतीय राजनीति नहीं सुधरेगी तो फिर भारतीय भ्रष्टाचारी व्यवस्था सुधरने का तो प्रश्न ही नहीं है । यदि वास्तव में हम सबको व्यवस्था बदलनी है तो या तो जनता द्वारा जनक्रांति कर भ्रष्टाचारी व्यवस्था का तख्ता पलट कर दे और सारी शक्ति अपने हाथ में ले ले और यह एक आदर्श नेतृत्व से ही हो सकता है, अन्यथा भारतीय राजनीति से भ्रष्ट लोगों का अस्तित्व ही मिटा दिया जाए । भारतीय राजनीति में अच्छे लोग आएंगे तो उन्हें सुधारने की जरूरत नहीं पड़ेगी और न ही किसी जनवादी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी। आप सभी शांत मन से विचार कीजिये कि समर्पित अन्ना हजारे या अन्य समर्पित देशभक्त जो भ्रष्टाचार खत्म करने की लड़ाई लड़ रहे हैं... इसी निष्ठां और समर्पण के व्यक्ति केन्द्रीय सत्ता में होते तो देश का वातावरण और परिदृश्य कुछ और ही होता |
"जय हिंद,जय हिंदी"

2 टिप्‍पणियां:

  1. हम चाहे बात कितनी भी बड़ी बड़ी कर ले, लेकिन सच्चाई तो हम सभी जानते हैं, हमारा जीवन-मार्ग का रास्ता स्वयं ही सदगुरुदेव बनाते जाते हैं , बे पहले भी अंगुली पकडे थे अब भी हैं और कल भी रहेंगे, अंतर केवल इतना है क़ि जिसकी देखने की आँखे हैं वो देख लेता है और जिनकी नहीं हैं वे अब भी कुतर्कों के भंवर में उलझे हुए हैं......

    जवाब देंहटाएं
  2. इसी निष्ठा और समर्पण के व्यक्ति केन्द्रीय सत्ता में होते तो देश का वातावरण और परिदृश्य कुछ और ही होता |
    "जय हिंद,जय हिंदी"

    जवाब देंहटाएं