शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

"सम्मान की खातिर हत्या"


इनसान की प्रगति के कदमों ने चांद की सतह तक को छू लिया है। अब उसकी परवाज दूसरे अजाने ग्रहों के रहस्य भेदने की ओर है लेकिन उनका अपना खूबसूरत ग्रह धरती कुरीतियों, कुसंस्कारों और रूढ़ियों से दिन ब दिन कलुषित और मलिन होता जा रहा है। 21 वीं सदी में भी हमारे देश में अब भी कई अंचल ऐसे हैं जहां जहालत का अंधेरा है और वहां लोग मध्ययुगीन बर्बरता के बीच जी रहे हैं ।
मानव अधिकार संस्था ह्यूमन रॉइट्स वॉच, सम्मान हत्या को निम्न रूप में परिभाषित करती है:
सम्मान की रक्षा के लिये किये गये अपराध, हिंसा के वो मामले हैं, जिन्हें परिवार के पुरुष सदस्यों ने अपने ही परिवार की महिलाओं के खिलाफ इसलिये अंजाम दिया है, क्योंकि उनके अनुसार उस महिला सदस्य के किसी कृत्य से समूचे परिवार की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंची है। इसका कारण कुछ भी हो सकता है जैसे कि: परिवार द्वारा नियत शादी करने से इंकार, किसी यौन अपराध का शिकार बनना, पति से (प्रताड़ना देने वाले पति से भी) तलाक की मांग करना या फिर अवैध संबंध रखने का संदेह। केवल यह धारणा ही उस महिला सदस्य पर हमले को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त है कि उसके किसी कदम से परिवार की इज्जत को बट्टा लगा है।"
मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग के प्रेमी युगल इन दिनों काफी संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कहीं खाप पंचायतों के 'तालिबानी' फरमानों के तहत उनकी हत्याएंकी जा रही हैं तो कहीं उन्हें अपने प्रेम की सज़ा भुगतने के अंतर्गत अपने पुश्तैनी गांव छोड़कर अन्यत्र चले जाने के 'आदेश' दिए जा रहे हैं। और तो और कभी-कभी प्रेम विवाह कर चुके इन्हीं शादीशुदा युगल को पति-पत्नि का रिश्ता छोड़कर भाई-बहन जैसे पवित्र बंधन में बंधने के लिए भी जबरन बाध्य किया जा रहा है। इसी रूढ़िवादी एवं अतिवादी समाज के भय से आतंकित प्रेमी जोड़े कहीं-कहीं आत्महत्या करने को भी मजबूर हो रहे हैं। इन दिनों तो ऐसी घटनाओं की मानो बाढ़ सी आ गई है। बड़े आश्चर्य की बात है कि प्रेमी अथवा प्रेम विवाह कर चुके ऐसे कई युगलों के दोनों ही पक्षों अर्थात लड़की एवं लड़के के परिजनों ने एक राय होकर अपने बच्चों की हत्या करवाने तक की साजिश रची है और हत्या भी करवाई है ।
 यह मामला कश्मीर तथा माओवादियों जैसे देश के ज्वलंत मुद्दों के स्तर का बन चुका प्रतीत हो रहा है। क्योंकि इन मामलों पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी न केवल अपनी दिलचस्पी दिखलाई है बल्कि उच्चतम न्यायालय, कई राज्यों के उच्च न्यायालय तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल की इस मुद्दे पर बुलाई गई विशेष बैठक में भी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। 
 पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक विशेष बैठक इसी तथाकथित ऑनर किलिंग के विषय को लेकर नई दिल्ली में बुलाई गई। केंद्रीय मंत्रिमंडल की यह बैठक तथाकथित ऑनर किलिंग रोकने हेतु सख्त कानून बनाए जाने के विषय पर बुलाई गई थी जिसमें यह तय किया गया कि इस विषय पर संबंधित राज्यों से भारतीय दंड संहिता में परिवर्तन किए जाने के विषय में सलाह मांगी जाए। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा एक विशेष मंत्रिमंडलीय समूह गठित करने का भी निर्णय लिया गया। इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम को संशोधित किए जाने की भी बातकी गई। ऐसा कानून बन जाने के बाद अब किसी तथाकथित ऑनर किलिंग के बाद खाप पंचायतों को अपने आप को निर्दोष प्रमाणित करना होगा अन्यथा उनके विरुद्ध भी हत्या में शामिल होने संबंधी धारा के अंतर्गत मुकदमा चलाया जाएगा। 
 आधुनिक तथा उदारवादी सोच रखने वाला भारतीय समाज भले ही इस प्रकार की हत्याओं अथवा आत्म हत्याओं से बेहद दुखी क्यों न हो परंतु खाप पंचायतों का हरियाणा,पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ सीमित क्षेत्रों में इतना दबदबा है कि वोट बैंक के चलते न तो किसी भी राजनैतिक दल के नेता कीइतनी हिम्मत दिखाई देती है कि वह ऑनर किलिंग के फरमान अथवा प्रेमी युगल के विरुद्ध अन्य बेतुके 'तुगलकी' फरमान जारी किए जाने का विरोध कर सकें। और न ही इनके विरुद्ध अदालती अथवा प्रशासनिक आदेशों को अमल में लाए जाने कीपुलिस कर्मी हिम्मत जुटा पाते हैं। बजाए इसके यही देखा जा रहा है कि कई बड़े से बड़े नेता इन्हीं आधुनिक 'तुगलकों' कीपंचायत के पक्ष में ही अपना बयान देते रहते हैं। लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेतागण इस विषय पर जाति विशेष के वोट बैंक अपने हाथों से निकल जाने के भय से प्राय: खाप की ही भाषा बोलने लग जाते हैं। ऐसे में भले ही पूरा देश क्यों न चिंतित हो, देश के न्यायालय इस विषय पर कितने ही गंभीर क्यों न हों परंतु खाप पंचायतों के अडि़यल रुख पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उल्टे खाप पंचायतें अपने विरुद्ध उठाए जाने वाले किसी भी कदम के विरुद्ध तरह-तरह की चेतावनियां भी जारी करती रहती हैं। 
सम्मान हेतु हत्या वह हत्या है जिसमें, किसी परिवार, वंश या समुदाय के किसी सदस्य की (आमतौर पर एक महिला) की हत्या उसी परिवार, वंश या समुदाय का एक या एक से अधिक सदस्य (अधिकतर पुरुष) द्वारा की जाती है, और हत्यारे (आमतौर पर समुदाय के अधिकतर सदस्य) इस विश्वास के साथ इस हत्या को अंजाम देते हैं कि मरने वाले सदस्य के कृत्यों के कारण उस परिवार, वंश या समुदाय का अपमान हुआ है। अपमान की यह धारणा सामान्यत: निम्न कारणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है: -
1.परिवार की मर्जी के विरुद्ध अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करना।
2.यदि विवाह अंतरजातीय हो अथवा एक ही गोत्र में किया गया हो (हिन्दुओं में)।
3.परिवार द्वारा नियत विवाह से इंकार करना।
4.समुदाय द्वारा निर्धारित वस्त्र संहिता का उल्लंधन कर कोई अन्य परिधान पहनना।
5.विवाह पूर्व या विवाहोपरांत किसी अन्य पुरुष (या महिला) के साथ किसी महिला (या पुरुष) का यौन संबंध स्थापित करना।
6.समलिंगी आचरण करना। (समान लिंग के वयक्ति के साथ शारीरिक संबंध या विपरीत लिंगी के समान आचरण और वस्त्र धारण)

 एक तो हत्या करने के बाद यह रूढ़िवादी लोग अपने बच्चों की जान से भी हाथ धो बैठते हैं तो दूसरी ओर सारी उम्र जेल काटने के लिए भी यह तैयार रहते हैं। ऐसे में इन लोगों को ऑनर या सम्मान का कौन सा पहलू दिखाई देता है यह बात समझ से परे है। 
  आपको इन्हीं ऑनर किलिंग का फरमान जारी करने वालों के समुदाय से जुड़ी एक और हकीकत से अवगत कराता हूं। इसी समाज के मेरे कई जानने वाले ऐसे हैं जो गरीब होने के कारण या उनके पास कम जमीन होने के कारण उन्हें किसी अपनी बिरादरी वाले ने अपनी लड़की का रिश्ता नहीं दिया। ऐसे में मजबूर होकर उन्होंने हिमाचल प्रदेश जाकर वहां की गरीब लड़कियों से विवाह कर उन्हें अपने घर ले आए। ऐसे मामलों में यह लोग लड़की की जाति तो दूर उसका धर्म तक पूछना जरूरी नहीं समझते। क्योंकि आखिरकार उन्हें अपना घर बसाना होता है। किसी बिरादरी वाले से कोई सम्मान पत्र नहीं प्राप्त करना होता। मुझे पता चला है कि केवल हरियाणा राज्य में ही ऐसे सैकड़ों लोगों ने हिमाचल प्रदेश की विभिन्न धर्मों व जातियों कीगरीब कन्याओं से अपना विवाह रचाया है। ऐसी जगहों पर भी पंचायत खामोश रहती है तथा इसमें उन्हें 'डिसऑनर' अथवा असम्मान जैसी कोई बात नज़र नहीं आती? 
 अपनी परंपराओं का सम्मान करना तथा उसे सहेज कर रखना कोई बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है। परंतु उन परंपराओं को अति सीमित, संकीर्ण व सूक्ष्म नारों से देखना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। हम यदि अपनी परंपरा को सहेजने कीबात भी करें तो उसकी सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार किसे है? हमारी परंपराओं की सीमाएं क्या हैं? हमारा गोत्र, हमारा गांव, हमारी बिरादरी, हमारा कस्बा, हमारा शहर, हमारा प्रदेश, हमारा देश अथवा हमारी वैश्विक मानवीय सभ्यता? हम किसके रक्षक हैं और इनमें से कौन सी परंपरा या सीमाओं कीरक्षा करने की बात करते हैं। यदि हमें भारतीय होने पर गर्व है तो हमें अपने जेहन को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में रखकर यह सोचना होगा कि हम सम्राट अकबर, अरुणा आसिफ अली, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी तथा इन जैसे तमाम आदर्श व्यक्तियों के देश के वासी हैं। अत: यदि हम इन्हें अपना आदर्श मानते हैं तो हमें इनकी परंपराओं का भी अनुसरण करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। 
 इस देश में जब फारुख अब्दुल्ला अपनी बेटी की शादी सचिन पायलेट से कर सकते हैं, फारुख तथा संजय खान अपनी बेटियों के विवाह हिंदू धर्म के लड़कों से कर सकते हैं,शाहरुख खान , उमर अब्दुल्ला, आमिर खा़न जैसे न जाने कितने प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित लोग हिंदू धर्म की लड़कियों से अपने विवाह रचा सकते हैं ऐसे में मात्र गोत्र अथवा गांव जैसी सीमित व संकीर्ण बाधाओं को बहाना बना कर अपने ही बच्चों की हत्या तक कर डालना भारतीय परंपराओं का मजाक उड़ाने तथा उसका अपमान करने के सिवा और तो कुछ नार नहीं आता। और यदि यह तथाकथित अति सीमित पारंपरिक सोच रखने वाले रूढ़ीवादी बुजुर्ग स्वयं को अपनी इस दकि़यानूसी सोच से उबार नहीं सकते तो वे अपने मासूम बच्चों की हत्या करने के बजाए बचपन से ही अपने बच्चों में ऐसे संस्कार डालें कि वे जवानी की दहलीज में कदम रखने के बाद विरासत में मिली अपनी उन परंपराओं के खिलाफ जाने की बात कभी अपने जेहन में ला ही न सकें। परंतु प्रेमपाश में बंधकर यदि कोई बच्चा ऐसा कदम उठा भी लेता है तो उनकी हत्या कर देने या उन्हें पुन: भाई-बहन का रिश्ता कायम करने या गांव छोड़कर चले जाने जैसे तुगलकी फरमान जारी करने का किसी भी समूह अथवा पंचायत को कोई भी हक कतई नहीं है। इस प्रकार के फरमान सरासर अमानवीय, मानवाधिकार विरोधी तथा मानवता को शर्मसार करने  वाले हैं ।
 चर्चित पूर्व महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने झूठी शान के लिए हत्या की बढती घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को इसके खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करनी चाहिए।
बेदी ने यहां महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की एक बैठक में कहा कि राष्ट्रपति को महिला होने के नाते भी झूठी शान के लिए हत्या के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठाए।

खाप वालों से भी अनुरोध है कि वे सदियों पीछे जाने के बजाय आज के युग में आयें, अपने दिलों और दिमाग को खुला रखें और ऐसा कुछ करें जिससे पंचायतों की खोयी मर्यादा वापस आये। ऐसा होने पर ही पंचायती राज्य की सार्थकता है। ऐसा होन पर ही शायद गांधी का सपना भी साकार हो सकेगा जो उन्होंने भारत के गांवों को लेकर देखा था। समाज का एक अंग होने के नाते मैंने एक कुरीति की ओर उंगली उठायी है यह जानते और समझते हुए कि इसके लिए गालियां मिलेंगे शायद तालियां भी पर मुजे गालियां भी स्वीकार हैं। एक नेक मकसद से मैंने कुछ कुंद मगजों को कुरेदने और जगाने की कोशिश की है। प्रभु से प्रार्थना है कि ऐसे दिमाग जग जायें, उनमें प्रेम (सच्चे प्रेम सतही या पाखंडी नहीं) को मर्यादा और समर्थन देने के भाव जगें। वे कुरीतियों से उबरें और युवा पीढ़ी से अनुरोध है कि वह अपने स्तर पर इस तरह की कुरीतियों के खिलाफ मोर्चा खोले और इन्हें बंद कराने की हरचंद कोशिश करे क्योंकि इससे समाज और देश का सम्मान और उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न लगता है।


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                     'झूठे सम्मान के लिए होने वाली हत्या'

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