शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

'ज्योतिष (क्या है भाग्य)'

ज्योतिष का नाम आते ही जन्मपत्री के 12 भावों में बैठे ग्रह, ज्योतिष की गूढ़ भाषा या हस्तरेखाओं का जाल और उनमें फैली जटिलता ही सामने आती है। और उनसे जुडी होती हैं कुछ भविष्यवाणियाँ , जन्म से लेकर नौकरी,शादी ,प्रमोशन, मोक्ष तक सब कुछ , इन रेखाओं में निहित ग्रहों की स्थिति के अनुसार फलादेश तो किया ही जाता है मगर इनके पीछे छिपे संकेतों को हम शायद ही समझाने का प्रयास करते हैं ।
हमारे हाथ या कुण्डली में किसी ग्रह की कमजोरी या मजबूती का सीधा सा अर्थ हमारे व्यक्तित्व की मजबूती या कमजोरी से होता है। जब कुण्डली या हाथ में कोई ग्रह कमजोर होता है यानी सही स्थान में नहीं होता है तो उस ग्रह से सम्बंधित बुराइयां या कमजोरियां हमारे शरीर में, स्वभाव में घर करती जायेंगी और इन्हीं के चलते हमें भाग्य की खराबी या भाग्य में अवरोधों का सामना करना पडेगा। उदाहरण के लिए यदि चन्द्रमा की स्थिति कमजोर है तो व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर होगा। निर्णय क्षमता प्रभावित होगी,स्मरण शक्ति कम होती जाएगी !
इन सबके चलते व्यक्ति के भाग्य में अवरोध आना तय सा ही है। तात्पर्य यह है कि भाग्य की कमजोरी का मुख्य कारण हमारे व्यक्तित्व में उस ग्रह विशेष के कारण आई हुई नकारात्मकता ही होती है।अत: ग्रह को सुधारने के लिए हमें ग्रह के कारण हमारे स्वभाव में आ रही कमियों को भी सुधारने का प्रयास करना चाहिए ।
"अति अपार जे सरितवर, जौ नृप सेतु कराहिं।
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु, बिनु श्रम पारहि जाहिं।"

ज्योतिषमान जागृत जगत की एक ज्योति का नाम ही जीवन है। ज्योति का पर्याय ज्योतिष है अथवा ज्योतिस्वरूप ब्रह्म की व्याख्या का नाम ज्योतिष है। वेदरूप ज्योतिष ब्रह्मरूप ज्योति का ज्योतिष है जिसका द्वितीय नाम संवत्कर ब्रह्म या महाकाल है।

ब्रह्म सृष्टि के मूल बीजाक्षरों या मूल अनन्त कलाओं को एक-एक कर जानना वैदिक दार्शनिक ज्योतिष कहा जाता है। इसका दूसरा स्वरूप लौकिक ज्योतिष है जिसे खगोलीय या ब्रह्माण्डीय़ ज्योतिष कहा जाता है। व्यक्त या अव्यक्त इन दोनों के आकार, दोनों की कलायें एक समान हैं। वैदिक दर्शन के लिए यह वेदांगी ज्योतिष दर्शन सूर्य के समान प्रकाश देने का काम करता है इसी कारण इसे ब्रह्मपुरुष का चक्षु कहा गया है।

ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पत्ति ‘‘ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम’’ की गई है। अर्थात् सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है । भारतीय ज्योतिषशास्त्र की परिभाषा के स्कन्ध-त्रय-होरा, सिद्धान्त और संहिता अथवा स्कन्ध पंच होरा, सिद्धान्त, संहिता, प्रश्न और शकुन ये अंग माने गये हैं।

यदि विराट पंचस्कन्धात्मक परिभाषा का विश्लेषण किया जाये तो आज का मनोविज्ञान, जीवविज्ञान, पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान एवं चिकित्साशास्त्र इत्यादि इसी के अन्तर्भूत हो जाते हैं। बिना आँख के जैसे दृश्य जगत का दर्शन असम्भव है वैसे ही ज्योतिष के बिना ज्ञान के विश्वकोश वेद भगवान् का दर्शन भी असम्भव है।

‘सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा।’ का उद्घोष करने वाले वेद ने भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वप्रथम संस्कृति माना है। यदि हम इस प्राचीनतम श्रेष्ठ संस्कृति से पुनः जुड़ना चाहते हैं तो हमें ज्योतिष का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होगा। हमें हमारी संस्कृति से जोड़ने का सेतु ज्योतिष ही है। यदि हमारे सभी देशवासी अपनी संस्कृति से जुड़ गये तो धरती पर देवत्व का अवतरण करके रहेंगे।

ज्योतिष ज्ञान सबका मंगल करे। विकृत मान्यताओं से उबारे। इसी लक्ष्य को लेकर ‘ज्योतिष शब्द कोश’ की रचना की गई है। इससे आप उन प्रारम्भिक सोपानों पर तो चढ़ ही सकते हैं जो हममें अमित शक्ति का प्रादुर्भाव कर सकते हैं ।

कालसर्प योग का नाम ही अतीव आतंक, अनायास अभाव, अन्यान्य अवरोध और असीम अनिष्ट, दुर्दमनीय दारुण दुःखों तथा दुर्भाग्यपूर्ण दुर्भिक्ष का पर्याय बन गया है जो नितान्त भ्रामक, असत्य तथ्यों एवं अनर्गल वक्तव्यों पर आधारित है कालसर्प योग का नाम मात्र ही हृदय को अप्रत्याशित भ्रम, भय, ह्रास व विनाश के आभास से व्यथित, चिन्तित व आतंकित कर देता है। तथाकथित ज्योतिर्विदों ने ही कालसर्प योग के विषय में अनन्त भ्रांतियाँ उत्पन्न करके, एक अक्षम्य अपराध किया है। किसी जन्मांग के कालसर्प योग की उपस्थिति का ज्ञान ही हृदय को अनगिनत आशंकाओं, अवरोधों और अनिष्टकारी स्थितियों के आभास से प्रकंपित और विचलित कर देता है। इस विषय में अज्ञानता के अन्धकार ने मार्ग में पड़ी रस्सी को विषैले सर्प का स्वरूप प्रदान कर दिया है ।
कालसर्प योग से आक्रान्त अनेक व्यक्तियों को तथाकथित ज्योतिर्विदों द्वारा व्यथित, भ्रमित तथा भयभीत करके, ज्योतिष ज्ञान को अस्त्र बनाकर, उनकी आस्था और विश्वास पर बार-बार कुठाराघात किया जता है। उनका भय ही उनके आर्थिक दोहन का मार्ग प्रशस्त कर देता है। पाप प्रेरित एवं पाप कृत्यों में संलग्न पथभ्रष्ट आचार्य, धन-लोलुपता के कारण स्वयं को ही पतन का ग्रास बना लेते हैं ।
राहु केतु की धुरी के एक ओर शेष सातों ग्रहों की स्थिति, कालसर्प योग की संरचना करती है, मात्र इतना ही हमें ज्ञात है। कितना अपूर्ण और भ्रामक है, ‘कालसर्प योग’ के विषय में यह अपूर्ण और अल्प ज्ञान ? किन परिस्थितियों में ‘कालसर्प योग’ प्रभावहीन होता है और कब प्रभावी होकर जीवन के मधुमास को संत्रास में परिवर्तित कर देता है। किन ग्रह योगों के कारण स्पष्ट कालसर्प योग का सुखद आभास जीवन पथ को आन्दोलित करता है और किन ग्रह योगों के अभाव में वही कालसर्प योग समस्त सुख-सुविधा, सरसता, सम्मान, समृद्धि, सफलता और सुयश को प्रकम्पित कर देता है। यह शोध संज्ञान ही इस रचना का आधार बिन्दु है ।
' नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि।।'

(हे प्रचण्डस्वरूपिणी चण्डिके ! जिसने चण्डमुण्ड का वध और काल के भय का नाश किया, वह कालिके, तुम्हें नमस्कार है।)

-"वास्तु अपनाए सकारात्मकता पाएँ" -

जब भी घर सजाने की बात होती है तो हमें अलग-अलग तरह की वस्तुओं का ध्यान आता है पर आजकल इतना ही काफी नहीं है। आज की भाग-दौड़ भरी और तनावपूर्ण जिंदगी में लोग यही चाहते हैं कि घर में उन्हें वह सारा सुकून मिले जिसकी उन्हें आशा है। और यही वजह है कि लोग वास्तु का महत्व जानने लगे हैं। दरअसल वास्तु के अंतर्गत कुछ ऐसी बातों का समावेश है जिससे हमारी जिंदगी में सकारात्मकता उपजती है।

तो आइए जानते हैं कुछ खास बातें-
आपके भवन के आगे थोड़ी-सी जगह अवश्य छूटी होनी चाहिए। जिसमें बीच में प्रवेश करने के रास्ते के दोनों ओर छोटे-छोटे फूलों की क्यारियाँ होनी चाहिए। इस बगीचे के बीच में एक तुलसी का पौधा जरूर लगाना चाहिए। वास्तु के अनुसार यह बहुत ही शुभ होता है।
घर के प्रवेशद्वार को लकड़ी से ही बनवाना चाहिए तथा यहाँ पर एक पायदान जरूर रखें जो घर में किसी भी तरह की नकारात्मकता को रोकने का चेक पाइंट है। द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह, लक्ष्मी गणेश के चिन्हों वाले स्टिकर या अपने धर्म के शुभ संकेतों को लगाएँ।
ड्राइंग रूम में फर्नीचर लकड़ी का ही होना अच्छा माना जाता है। यह भी ध्यान रहे कि फर्नीचरों के कोने तीखे तथा नुकीले न होकर के गोल या चिकने होने चाहिए। तीखे कोने नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माने जाते हैं। यहाँ पर कुछ पौधों से सजावट करनी चाहिए। हिंसा की प्रतीक मूर्तियाँ या चित्र न लगाकर सौम्य सुंदर तस्वीरों या मूर्तियों से सजावट करें।
जब भी घर सजाने की बात होती है तो हमें अलग-अलग तरह की वस्तुओं का ध्यान आता है पर आजकल इतना ही काफी नहीं है। आज की भाग-दौड़ भरी और तनावपूर्ण जिंदगी में लोग यही चाहते हैं कि घर में उन्हें वह सारा सुकून मिले जिसकी उन्हें आशा है।
पूजा स्थल ऐसा बनाना चाहिए कि पूजा के लिए बैठने वाले का मुँह पूर्व दिशा में हो। पूजाघर में हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। यहाँ लाल रंग के बल्बों की सजावट न करें। पूजाघर में पूर्वजों की तस्वीरें न रखें।

बेडरूम का फर्नीचर भी जहाँ तक संभव हो सके लकड़ी का ही हो। यहाँ लोहे का उपयोग करना ठीक नहीं है। यहाँ सफेद, क्रीम, आइवरी जैसे रंगों का दीवारों पर प्रयोग किया जाना चाहिए। यहाँ पर प्रेम के प्रतीक चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए जैसे लव बर्ड्‌स आदि। रंगीन फूलों की तस्वीरें भी लगा सकते हैं।

बच्चों के कमरे का रंग नीला बैंगनी या हरा होना चाहिए। टेबल इस तरह से लगी होनी चाहिए कि पढ़ने वाले का मुँह पूर्व या उत्तर में रहे तथा पीठ की ओर दीवार होनी चाहिए। इस कमरे में विद्या का वास होता है अतः बच्चों को जूते-चप्पल बाहर रखने की सलाह दें।

रसोईघर में चूल्हा हमेशा पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए। किचन के प्लेटफार्म में काले पत्थर का प्रयोग नहीं होना चाहिए। यहाँ पर पौधे रखे जा सकते हैं। यहाँ की दीवारों पर गुलाबी रंग होना चाहिए।

इस तरह से आप अपने घरकी आंतरिक सज्जा को वास्तु अनुरूप बनाकर ऊर्जा व शांति का उचित समन्वय कर सकती हैं।

"ज्योतिष विद्या में जन्म का समय व स्थान महत्वपूर्ण क्यों होता है ?"
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मानक समय की वहज से ज्योतिषी में जन्म का समय व स्थान आवश्यक होता है। हर देश तथा शहर का मानक समय अलग होता है, एक ही समय व एक ही दिन पर जन्म हुए दो व्यक्तियों का यदि जन्म स्थान अलग है तो उनकी जन्म कुंडली में बहुत अधिक अंतर पाया जाएगा। ज्योतिष विद्या में जन्म लग्न के लिए भी जन्म का समय महत्वपूर्ण होता है। जन्म लग्न मनुष्य के विकमंडल को चिन्हित करता है ।





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