शुक्रवार, 10 जून 2011

"श्री बालाजी (सालासरजी) की महिमा !"



"यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानम् धर्मस्य, तदात्मनं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे ||"

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर अवतार लेकर भक्तों के दु:ख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है ।
श्री बालाजी (सालासर बाबा) के भक्तों का विश्वास है कि रामेष्ट{हनुमान जी} ने धर्म की रक्षार्थ यहाँ शक्तिरूप में अवतार लिया है | 
जयपुर बीकानेर सडक मार्ग पर स्थित सालासर धाम हनुमान भक्तों के बीच शक्ति स्थल के रूप में जाना जाता है । सालासर कस्बा, राजस्थान में चुरू जिले का एक हिस्सा है और यह जयपुर - बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है. यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की नियमित बस सेवा के द्वारा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भली प्रकार से जुड़ा है. इंडियन एयरलाइंस और जेट एयर सेवा जो जयपुर तक उड़ान भरती हैं, यहां से बस या टैक्सी के द्वारा सालासर पहुंचने में 3.5 घंटे का समय लगता है | सुजानगढ़, सीकर, डीडवाना, जयपुर और रतनगढ़ सालासर बालाजी के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं |
यह शहर पिलानी शहर से लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बिरला संस्थान (बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी एंड साइंस)स्थित है | दिल्ली से पिलानी की सड़क बहुत अच्छी है और अक्सर दिल्ली की ओर से होकर आने वाले लोग इसी मार्ग से होते हुए बालाजी पहुंचते हैं |
सालासर धाम के मंदिर में भक्तों की अगाध आस्था है । आपको यहां प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में देशी-विदेशी भक्त श्री बालाजी (सालासर बाबा) को मत्था टेकने के लिए कतारबद्ध खडे दिखाई देंगे। जयपुर से लगभग 2घंटे के सफर के बाद यहां पहुंचा जा सकता है। यहां हनुमानजी की वयस्क मूर्ति स्थापित है, इसलिए भक्तगण इसे बडे हनुमान जी पुकारते हैं। लगभग ७ से ८ लाख भक्त अपने इस आराध्य देवता को भक्तिभाव अर्पित करने के लिए यहां एकत्रित होते हैं | हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबंधन का काम करती है | यहां रहने के लिए कई धर्मशालाएं और खाने पीने केलिए कई रेस्तरां हैं | श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है |

एक कथा के अनुसार, राजस्थान के नागौर जिले के एक छोटे से गांव असोतामें संवत 1811में शनिवार के दिन एक किसान का हल खेत की जुताई करते समय रुक गया। दरअसल, हल किसी शिला से टकरा गया था। वह तिथि श्रावण शुक्ल नवमी थी । 
उस किसान ने उस स्थान की खुदाई की, तो मिट्टी और बालू से ढंकी हनुमान जी की दो प्रतिमा निकली। किसान और उसकी पत्नी ने इसे साफ किया और घटना की जानकारी गांव के लोगों को दी। ऐसा माना जाता है कि उस रात असोताके जमींदार ने रात में स्वप्न देखा कि हनुमानजी कह रहे हैं कि मुझे असोता से ले जाकर सालासार में स्थापित कर दो। ठीक उसी रात सालासर के एक हनुमान-भक्त मोहनदास को भी हनुमान जी ने स्वप्न दिया कि मैं असोतामें हूं, मुझे सालासर लाकर स्थापित करो। अगली सुबह मोहनदासने अपना सपना असोता के जमींदार को बताया। यह सुनकर जमींदार को आश्चर्य हुआ और उसने श्री बालाजी[हनुमान जी] का आदेश मानकर प्रतिमा को सालासर में स्थापित करा दिया। धीरे-धीरे यह छोटा सा कस्बा सालासर धाम के नाम से विख्यात हो गया। दूसरी मूर्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (भरतगढ़) में स्थापित कर दिया गया |
सालासर धाम के मंदिर की सेवा, पूजा तथा आय-व्यय संबंधी सभी अधिकार स्थानीय दायमा ब्राह्मणों को ही है, जो श्रीमोहनदासजी के भानजे उदयरामजी के वंशज हैं।श्रीमोहनदासजी ही इस मंदिर के संस्थापक थे। ये बड़े वचनसिद्ध महात्मा थे। असल में श्रीमोहनदासजी सालासर से लगभग सोलह मील दूर स्थित रूल्याणी ग्राम के, निवासी थे। इनके पिताश्री का नाम लच्छीरामजी था। लच्छीरामजी केछ: पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम कानीबाई था, मोहनदासजी सबसे छोटे थे। कानीबाई का विवाह सालासर ग्रामके निवासी श्रीसुखरामजी के साथ हुआ था, पर विवाह के पांच साल बाद ही (उदयराम नामक पुत्र प्राप्ति के बाद) सुखरामजी का देहांत हो गया। तब कानीबाई अपने पुत्र उदयरामजी सहित अपने पीहर रूल्याणी चली गयींी, किंतु कुछ पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अधिक समय तक वहां न रह सकीं और सालासर वापस आ गयीं। यह सोचकर कि `विधवा बहन कैसे अकेली जीवन-निर्वाह करेगी', मोहनदासजी भी उसके साथ सालासर चले आये। इस प्रकार कानीबाई, मोहनदासजी और उदयरामजी साथ-साथ रहने लगे। श्रीमोहनदासजी आरंभ से ही विरक्त वृत्तिवाले व्यक्ति थे और श्रीहनुमानजी महाराज को अपना इष्टदेव मानकर उनकी पूजा करते थे। यही कारण था कि यदि वे किसी को कोई बात कह देते तो वह अवश्य सत्य हो जाती । 
लोककथन के अनुसार श्रीबालाजी और मोहनदासजी आपस में बातें भी किया करते थे। श्री बालाजी[हनुमान जी] के परम भक्त मोहनदासजी तो सदैव  भक्तिभाव में ही डूबे रहते थे, अत: सेवा-पूजा का कार्य उदयरामजी करते थे। उदयरामजी को मोहनदासजी ने एक चोगा दिया था, पर उसे पहनने से मनाकर पैरों के नीचे रख लेने को कहा । तभी से पूजा में यह पैरों के नीचे रखा जाता है। मंदिर में अखंड ज्योति (दीप) है, जो उसी समय से जल रही है। मंदिर के बाहर धूणां है। मंदिर में मोहनदासजी के पहनने के कड़े भी रखे हुए हैं।  ऐसा बताते हैं कि यहां मोहनदासजी के रखे हुए दो कोठले थे, जिनमें कभी समाप्त न होनेवाला अनाज भरा रहता था, पर मोहनदासजी की आज्ञा थी कि इनको खोलकर कोई न देखें। बाद में किसी ने इस आज्ञा का उल्लंघन कर दिया, जिससे कोठलों की वह चमत्कारिक स्थिति समाप्त हो गयी।इस प्रकार यह श्रीसालासर बालाजी का मंदिर लोक-विख्यात है, जिसमें श्रीबालाजी की भव्य प्रतिमा सोने के सिंहासन पर विराजमान है। सिंहासन के ऊपरी भाग में श्रीराम-दरबार है तथा निचले भाग में श्रीरामचरणों में हनुमानजी विराजमान हैं। मंदिर के चौक में एक जाल का वृक्ष है, जिसमें लोग अपनी मनोकांक्षा की पूर्ति के लिए नारियल बांध देते हैं ।  
सालासर धाम के मंदिर परिसर में हनुमान-भक्त मोहनदास और कानी दादी की समाधि है । मंदिर के सामने के दरवाजे से थोड़ी दूर पर ही मोहनदासजी की समाधि है, जहां कानीबाई की मृत्यु के बाद उन्होंने जीवित-समाधि ले ली थी। पास ही कानीबाई की भी समाधि है । यहां मोहनदासजी के जलाए गए अग्नि कुंड की धूनी आज भी जल रही है। यहाँ आने वाले भक्त इस अग्नि कुंड की विभूति अपने साथ ले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह विभूति भक्तों के सारे कष्टों को दूर कर देती है । पिछले बीस वर्षो से यहां निरंतर पवित्र रामायण का अखंड कीर्तन हो रहा है, जिसमें यहां आने वाला हर भक्त शामिल होता है और बालाजीके प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है। प्रत्येक भाद्रपद, आश्विन, चैत्र तथा वैशाख की पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष यहां बहुत विशाल मेले का आयोज़न होता है । इस विशाल मेले में देश-विदेश के लाखों की संख्या में श्रृद्धालु अपने आराध्य श्री बालाजी (सालासरजी) के दर्शनों से लाभान्वित होते हैं |
प्रात:स्मरणीय परमदेव "श्री बालाजी (सालासरजी) के बारह नाम"
(१.) हनुमान
(२.) अंजनी सुत
(३.) वायु पुत्र्
(४.) महाबल
(५.) रामेष्ट
(६.) फाल्गुण सखा
(७.) पिंगाक्ष
(८.) अमित विक्रम
(९.) उदघिक्रमण
(१0.) सीता शोक विनाशन
(११.) लक्ष्मण प्राण दाता
(१२.) दशग्रीव दर्पहा
 "श्री बालाजी (सालासरजी) के नाम की महिमा !"
(१.) प्रातःकाल सोकर उठते ही उसी अवस्था में इन बारह नामों को ११ बार लेनें वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है ।
(२.) नित्य नियम के समय नाम लेने से इष्ट की प्राप्ति होती है ।
(३.) दोपहर में नाम लेने वाला व्यक्ति धनवान होता है ।
(४.) संध्या के समय नाम लेने वाला व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है ।
(५.) रात्रि को सोते समय नाम लेने वाला व्यक्ति शत्रु पर विजयी होता है ।
(६.) उपरोक्त समय के अतिरिक्त इन बारह नामों का निरन्तर जाप करने वाले व्यक्ति की श्री हनुमान जी महाराज दसों दिशाओं एवं आकाश पाताल में भी रक्षा करते हैं ।
सालासर-धाम के दर्शनीय स्थल:--
(१.) मोहनदास जी की धुनिया वह जगह है जहां महान भगवान हनुमान के भक्त मोहनदासजी के द्वारा पवित्र अग्नि जलाई गयी, जो आज भी जल रही है | श्रद्धालु और तीर्थयात्री यहां से पवित्र भस्म ले जाते हैं, जिसके प्रयोग से समस्त विघ्न-बाधाएं दूर हो जातीं हैं, ऐसा भक्तों का विश्वास है |
(२.) श्री मोहन मंदिर, बालाजी मंदिर के बहुत ही पास स्थित है, यह इसलिए प्रसिद्द है क्योंकि मोहनदास जी और कनिदादी के पैरों के निशान यहां आज भी मौजूद हैं, इस स्थान को इन दोनों पवित्र भक्तों का समाधि स्थल माना जाता है | पिछले आठ सालों से यहां निरंतर रामायण का पाठ किया जा रहा है| भगवान बालाजी के मंदिर परिसर में, पिछले 20 सालों से लगातार अखण्ड हरी कीर्तन या राम के नाम का निरंतर जाप किया जा रहा है | (३.) अंजनी माताका मंदिर लक्ष्मणगढ़ की ओर सालासर धाम से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | अंजनी माता भगवान हनुमान या बालाजी की मां थी |
(४.) गुदावादी श्याम मंदिर भी सालासर धाम से एक किलोमीटर के भीतर स्थित है | मोहनदास जी के समय से दो बैलगाड़ियों को यहां बालाजी मंदिर परिसर में रखा गया है |
(५.) शयनन माता मंदिर , जो यहां से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में एक अद्वितीय पहाड़ी पर स्थित है, माना जाता है कि यह 1100 साल पुराना मंदिर है, यह भी दर्शन के योग्य है |

"श्री बालाजी सालासर महाराज की जय हो !!!!"

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