सोमवार, 25 अप्रैल 2011

'पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली'


मृत्यु मनुष्य के लिये हमेशा ही एक अनबूझ पहेली रही है। मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है, क्या मरने के बाद आत्मा दोबारा जन्म लेती है, क्या मनुष्य अपने कर्मों का फल भोगने के लिये बार-बार जन्म लेता है और क्या किसी मनुष्य को अपना पिछला जन्म याद रह सकता है- ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न हमारे मानस् में कुलबुलाते रहते हैं।आत्माएँ एक जन्म से दूसरे जन्म तक लिंग, राष्ट्रीयता और धर्म परिवर्तन भी करती हैं ।
वैदिक मान्‍यताओं तथा आर्ष ग्रन्‍थों के अनुसार इस संसार में मनुष्‍य योनि सर्वश्रेष्‍ठ योनि कहाती है क्‍योंकि मात्र मनुष्‍य योनि में ही जीव को भोग के साथ-साथ कर्म करने का सुअवसर प्राप्‍त होता है। यहाँ अनेक जिज्ञासु पाठकवृन्‍द के मस्तिष्‍क में एक शंका उत्‍पन्‍न हो सकती है कि आखि़र मनुष्‍य को ही शुभाशुभ कर्म करने की आवश्‍यकता क्‍यों पड़ती है? साधारण व्‍यक्ति समझता है कि "रात गई बात गई"। हम शुभ कर्म करें या अशुभ, कौन देखता है? कर्मों का फल कभी मिलता है तो कभी नहीं भी मिलता है, कर्मों का फल मिलता है या नहीं? कल किस ने देखी है? कर्मफल कब, कहाँ, कैसे प्राप्‍त होगा, कौन जानता है? हम दोबारा जन्‍म लेंगे या नहीं, हम कैसे कह सकते हैं? जो होना है वो तो होके ही रहेगा! भला भविष्‍य के बारे में हम अपना वर्तमान क्‍यों ख़राब करें? मनुष्‍य जीवन तो मौज-मस्‍ती के लिये मिलता है तो हम कल की फ़ि‍क्र क्‍यों करें? पुनर्जन्‍म होता है कि नहीं इसे कोई नहीं इसे जानता या जान सकता है। पुनर्जन्‍म की बातें बेकार की बातें हैं।
जो इस सृष्टि की रचना, स्थिति और प्रलय करता है उस सर्वव्‍यापी, सर्वज्ञ, चेतन तत्त्व को "ईश्‍वर" कहते हैं। जिस जड़ वस्‍तु से सृष्टि की रचना होती है उसे "प्रकृति" कहते हैं। सब प्राणियों में एक चेतन तत्त्व होता है जिसका न तो जन्‍म होता है और न ही उसकी मृत्‍यु होती है अर्थात् वह अनादि और अमर होता है जिसका रूप-रंग या आकार नहीं होता। उस अनादि, निराकार, नित्‍य और चेतन वस्‍तु का नाम है - आत्‍मा। उपरोक्‍त तीनों अनादि तत्त्वों के सम्‍बन्‍ध को वैदिक दार्शनिक भाषा में "त्रैतवाद" कहते हैं। तीनों में से यदि किसी भी एक वस्‍तु का अभाव होता है तो शेष दो वस्‍तुओं का कोई महत्‍व नहीं रहता अर्थात् "त्रैतवाद" सिद्धान्‍त में तीनों का समान महत्‍व है। संसार में भी तीन प्रकार के अटूट सम्‍बन्‍ध होते हैं और उनमें से यदि किसी एक को अलग किया जाए तो शेष दो का महत्‍व समाप्‍त हो जाता है। जैसे: दुकानदार, विक्री सामग्री और ग्राहक।
त्रैतवाद का प्रमाण वेद के अनेक मन्‍त्रों में पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर ("तृतीयो भ्राता" ऋग्‍वेद: 1-164-1), ("द्वा सुपर्णा ..... अभि चाकशीति" ऋ॰ 1-164-29), ("त्रय केशिनः ..... रूपम्" ऋ॰ 1-164-6) एवं (ऋ॰ 10-5-7), (ऋ.॰ 1-50-10), (ऋ॰ 6-66-3), (अथर्ववेद: 5/35)।
इन तीनों अनादि तत्त्‍वों में ईश्‍वर और जीव दोनों चेतन (ज्ञान सहित) हैं और प्रकृति जड़ (ज्ञान रहित) वस्‍तु है। ईश्‍वर एक अद्वितीय सर्वव्‍यापक वस्‍तु है। जीव, जीवात्‍मा और आत्‍मा एक ही वस्‍तु के पर्यावाची शब्‍द हैं। आत्‍माएँ अनेक और एक देशी अणु अर्थात् अव्‍यापक और सीमित वस्‍तु है। प्रमाण के लिये देखें: अथर्ववेद: 19-68-1, और 10-8-25 "बालादेकमणीयस्‍कम्" अर्थात् आत्‍मा बाल से भी सूक्ष्‍म (अणु) है। "बालाग्रशतभागस्‍य यातधा कल्पिस्‍य च। भागो जीवः स विज्ञेयः श्‍वेताश्‍वरोपनषिद्: 5/9" अर्थात् यह आत्‍मा बाल के अग्रणीय भाग के पच्‍चासवें हज़ार हिस्‍से से भी अधिक सूक्ष्‍म है अर्थात् अत्‍यन्‍त सूक्ष्‍म है। "प्रच्‍छामि" (ऋग्‍वेद: 1-164-6) अर्थात् पूछता हूँ - प्रश्‍न करने वाला आत्‍मा है अन्‍य अर्थों में आत्‍मा अल्‍पज्ञ है और अल्‍पज्ञ होने से उसके कार्यों में त्रुटियाँ रह जाती हैं और वह कभी दुःख और कभी सुख भोगता रहता है। ऋग्‍वेद 1-164-1 में आत्‍मा को "अश्‍न" कहा है अर्थात् आत्‍मा दुःख-सुख का भोक्‍ता है।
प्राचीनकाल से ही हमारे ग्रंथों में पुनर्जन्मवाद के सूत्र मिलते हैं। पुनर्जन्म की अवस्था में व्यक्ति को पूर्व जन्म की कई बातें याद रहती हैं। किसी अबोध बालक या किसी युवती द्वारा अपने पूर्व जन्म की बातें बताने के जो वृत्तांत पत्र-पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित होते हैं, पुनर्जन्म को वहीं तक सीमित कर दिया जाता है। पुनर्जन्मभारतीय संदर्भों में एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता है। उपनिषदकाल में पुनर्जन्म की घटना का व्यापक उल्लेख मिलता है। योगदर्शन के अनुसार अविद्या आदि क्लेशों के जड़ होते हुए भी उनका परिणाम जन्म, जीवन और भोग होता है।
सांख्य दर्शन के अनुसार 'अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः।' 
 पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इन्द्रियों तथा विषयों से संबंध जुड़े रहते हैं। न्याय दर्शन में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएँ हैं। पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती हैं तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह फिर जन्म लेती है।कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है। एक जन्म में एक वर्ष में मनुष्य का पूर्ण विकास नहीं हो सकता। मन भौतिक जगत की घटनाओं से शरीर में विद्यमान इन्द्रियों के माध्यम से प्रभावित होता है। बुद्धि आत्मा की निर्णय शक्ति है, जो निर्णय लेती है कि अमुक कार्य, इच्छा, प्रभाव इत्यादि हितकर हैं या नहीं। 

जीव अल्‍पज्ञ होने से अन्‍य प्रणियों के कर्मों का फल सर्वज्ञता, निष्‍पक्षता तथा न्‍यायपूर्णता से कभी प्रदान नहीं कर सकता और परमात्‍मा, चूँकि वह सर्वगुण (सर्वान्‍तर्यामी, सर्वज्ञ, सर्वव्‍यापक .... इत्‍यादि) सम्‍पन्‍न है इसलिये वह सब जीवात्‍माओं के किये कर्मों का फल सर्वज्ञता, निष्‍पक्षता तथा न्‍यायपूर्णता से प्रदान करने में सक्षम है। इसलिये आर्ष ग्रन्‍थों में कहा गया है कि जीव कर्म करने में स्‍वतन्‍त्र है परन्‍तु फल पाने में ईश्‍वराधीन होता है। परमात्‍मा जीवों का कर्मफल "जाति, आयु और भोग" के द्वारा प्रदान करता है। कर्मफल के आधार पर ही जीवधारियों की अनेक प्रकार की योनियाँ (साधारण भाषा में इन जातियों को ही योनि कहते हैं) हैं जैसे जल के अन्‍दर रहने वाले अनेक प्रकार के जीव-जन्‍तु, मछलियाँ, मगरादि, पृथ्‍वी के भीतर और ऊपर रहने वाले प्राणी जैसे कीड़े, मेंढक, मुर्गियाँ इत्‍यादि, गाय, घोड़े, शेर, बकरी, मनुष्‍यादि पशु (जी हाँ! मनुष्‍य भी एक पशु के समान है जब तक कि वह धर्म का पालन नहीं करता) और आकाशीय जीव-जन्‍तु जैसे कीट, पतंग, पक्षी इत्‍यादि। यदि कोई दुर्घटना या आध्‍यात्मिक, आधिभौतिक या आधिदैविक विपदाएँ न आएँ तो ईश्‍वर की ओर से सभी जातियों की आयु निश्चित होती हैं। जिसमें जैसे कीट-पतंग की आयु कुछ दिन, कुत्ते की 5 वर्ष, घोड़े की दस वर्ष और साधारण मनुष्‍य की 100 वर्ष है। आयु के साथ-साथ प्रत्‍येक जाति का भोग (भोग्‍य सामग्री तथा उसकी प्राप्ति का विधान) भी निर्धारित होता है। 
मनुष्‍य सर्वश्रेष्‍ठ योनि है क्‍योंकि मात्र इसी योनि मे उसे परमात्‍मा की ओर से "कर्म करने की पूर्णरूपेण स्‍वतन्‍त्रता" उपलब्‍ध होती है। वह कर्म करे, न करे या विपरीत करे - यह प्रत्‍येक मनुष्‍य के विवेक पर निर्भर है। मनुष्‍य में इतनी क्षमता अवश्‍य प्राप्‍त है कि वह चाहे तो वह अपनी आयु 100 से बढ़ाकर 400 वर्ष तक कर सकता है अन्‍यथा उसे समाप्‍त भी कर सकता है। मनुष्‍य चाहे तो वह अपनी आयु dks शुद्ध आहार (सात्विक खान-पान करने), विहार (प्रकृति नियमानुसार रात्रि में शीघ्र सोने तथा सूर्योदय से पूर्व उठने) और व्‍यवहार (सब से प्रीतिपूर्वक धर्मिक पूर्वक व्‍यवहार करने) से बढ़ा सकता है और विपरीत परिस्थियों में घटा सकता है।

*वैज्ञानिक दृष्टिकोण* 
जीव विज्ञान के अनुसार ‘याददाश्त’ एक गूढ सरंचना वाले पदार्थ ‘मस्तिष्क’ का एक विशेष गुण होता है जो कि मानव शरीर के खात्मे के साथ ही समाप्त हो जाता है। दुनिया भर में मृत्यु के बाद मृत शरीर को भिन्न-भिन्न तरीकों से नष्ट कर दिया जाता है, इसके साथ ही मस्तिष्क नाम के उस ‘पदार्थ’ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। जब याददाश्त को संचित रखने वाला मूल पदार्थ ही नष्ट हो जाता है (हिन्दुओं में दाह-संस्कार में वह राख में तब्दील हो जाता है) तो फिर याददाश्त के वापस लौटने का प्रश्न ही कहाँ उठता है, जो तथाकथित रूप से पुनर्जन्म बाद वापस उमड़ आए।
हमें पता है, लोग कहेंगे ‘आत्मा’ अमर है और एक मनुष्य के शरीर से मुक्त होने के बाद जब वह किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तो अपने साथ वह पुरानी याददाश्त भी ले आती है। जबकि इसके लिए तो उस ‘सूक्ष्म आत्मा’ के पास वह मस्तिष्क नाम का पदार्थ भी होना चाहिए जो कि पूर्ण रूप से ‘स्थूल’ है। फिर, पुराणों में यह बताया गया है कि चौरासी लाख योनियों के बाद प्राणी को मनुष्य का जन्म मिलता है । इसका अर्थ यह है कि पूर्वजन्म की याद करने वालों को चौरासी योनियों के पूर्व की बातें याद आना चाहिए, लेकिन देखा ये जाता है कि इस तरह की आडंबरपूर्ण गतिविधियों में लोग बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व की ऊलजुलूल बातें सुनाकर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं।
देखा जाए तो पुनर्जन्म से बड़ा झूठ दुनिया में कोई नहीं। इंसान या किसी भी जीवित प्राणी के जैविक रूप से मृत होने के बाद ऐसा कुछ शेष नहीं रह जाता जिसे आत्मा कहा जाता है। ब्रम्हांड में ऐसी किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं है जिसका कोई रंग, रूप, गुण, लक्षण, ना हो। जिसकी कोई लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई ना हो, जिसे नापा, तौला, ना जा सकता हो। जिसे जाँचा, परखा, देखा, सूँघा, चखा ना जा सकता हो। गीता के तथाकथित ज्ञान ‘आत्मा अमर है’ का विज्ञान के धरातल पर कोई औचित्य नहीं है ना ही उसके चोला बदलने की कहानी में कोई सत्यता है। एक और बात महत्वपूर्ण है कि इन सब बातों का वैश्विक धरातल पर भी कोई पुष्टीकरण नहीं है। दुनिया की कई सभ्यताओं, संस्कृतियों, परम्पराओं में इन भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है । यदि यह एक सार्वभौमिक सत्य है, तो इसका जिक्र दुनिया भर में समान रूप से होना चाहिए था, और विज्ञान।

*कर्म-फल के कुछ महत्‍वपूर्ण नियम और सिद्धान्‍त*
मनुष्‍य कर्म करने में स्‍वतन्‍त्र है और कर्मफल प्राप्‍त करने में ईश्‍वराधीन है क्‍योंकि परमात्‍मा सर्वज्ञ, सवैव्‍यापक और न्‍याधीश है।  सर्वप्रथम हमें समझना होगा कि कर्म क्‍या है और किसे कहते हैं। जितने भी कर्म किये जाते हैं, उससे पहले संकल्‍प किये जाते हैं अर्थात् बिना संकल्‍प के कोई कर्म नहीं होता। जिसके करने से कोई प्रभाव पड़े, कोई परिणाम निकले या कोई फल मिले, उस क्रिया को "कर्म" कहते हैं।
(1)कारण के होने पर ही कार्य होता है। (वैशेषिक दर्शन: 4-1-3)
(2)कारण के न होने पर कार्य कभी नहीं होता। (वैशेषिक दर्शन: 1-2-1)
(3)कार्य के अभाव में कारण का अभाव होता है। (वैशेषिक दर्शन: 1-2-2)
(4)जो गुण कारण में होते हैं, वही गुण कार्य में होते हैं। (वैशेषिक दर्शन: 2-1-24)
(5)तीन अनादि तत्त्‍वों (ईश्‍वर, जीव और प्रकृति) का कोई कारण नहीं होता।
(6)जो वस्‍तु जितनी मात्रा बाँटेंगे वह वस्‍तु उतनी ही मात्रा में वापस मिलती है अर्थात् जो वस्‍तु देते हैं वही
वस्‍तु शेष रहती है।
(7)कर्त्ता को ही अपने किये कर्मों का फल अवश्‍यमेव भुगतना पड़ता है, बिना भुगते वह छूट नहीं सकता।
(8)कर्म पहले होता है, उसका फल बाद में मिलता है।
(9)जैसा कर्म वैसा ही फल मिलता है।
(10) जितना कर्म, उतना ही फल (न अधिक न कम) प्राप्‍त होता है।
(11) मनुष्‍य कर्म करने में स्‍वतन्‍त्र है परन्‍तु उसके फल प्राप्ति में ईश्‍वराधीन है।
(12) कर्मफल के तीन भाग हैं: 1. फल, 2. परिणाम और 3. प्रभाव। कर्म का प्रभाव तत्‍काल मिलता है,
परिणाम कालान्‍तर में मिलता है और ‘फल’ कर्म बीज के फलित होने पर ही प्राप्‍त होता है। जिन कर्मों का फल वर्तमान जीवन में नहीं मिल पाते वे (तद्विपाके सति मूले जातिर्आयुर्भोगाः – योग॰) जाति, आयु और भोग के फलस्‍वरूप आगामी जन्‍म में अवश्‍य प्राप्‍त होते हैं।
(13)कर्मबीज को फलित होने में समय लगता है अतः उसका फल कब, कहाँ और कैसे मिलेगा –यह ईश्‍वर के अतिरिक्‍त कोई नहीं जान सकता है ।
प्रिय सज्‍जनों! उपरोक्‍त सब बातें केवल पुनर्जन्‍म को ही प्रमाणित करते हैं। जिन सम्‍प्रदाय के लोग कल तक पुनर्जन्‍म को नहीं मानते थे, बेकार की बातें कहते थे, मात्र वर्तमान जीवन को ही प्रथम और अन्तिम मानते थे, आज वे लोग भी पुनर्जन्‍म के सिद्धान्‍त को मानने लगे हैं। विश्‍व के प्रसिद्ध महाविद्यालयों के कुछ वैज्ञानिकों ने भी अनेक प्रकार के परीक्षणों के बाद यह माना है कि "मृत्‍यु के पश्‍चात् फिर से जन्‍म (पुनर्जन्‍म) होता है"। देश-विदेश के समाचार पत्रों और इन्‍टर्नेट में भी पुनर्जन्‍म के अनेक समाचार उपलब्‍ध हैं।     
वेद के अनेक मन्‍त्रों में पुनर्जन्‍म के अनेक प्रमाण मिलते हैं।
असुनीते ................ मृळया नः स्‍वस्ति॥ (ऋ॰ 8-1-23-6) इस मन्‍त्र में ईश्‍वर से प्रार्थना की गई है कि "हे प्रभो! अगले जन्‍म (पुनर्जन्‍म) में मेरी आँखें और सब इन्द्रियाँ स्‍वस्‍थ हों और हमें सुखी रखना जिससे हमारा कल्‍याण हो।
पुनर्नो असुं ................. पथ्‍यां३ या स्‍व्‍स्ति॥ (ऋ॰ 8-1-23-7) अर्थात् हे परम पितर परमेश्‍वर!पुनर्जन्‍म में हमें सोम अर्थात् औषधियाँ प्रदान करना ताकि हमारा स्‍वास्‍थ्‍य उत्तम हो और हम को सब दुःख निवारण करने वाली पथ्‍यरूप स्‍वस्ति को प्राप्‍त हों।
पुनर्मनः .................... दुरितादवद्यात्॥ (यजु॰ 4/15) अर्थात् हे सर्वज्ञ परमात्‍मन्! जब हम जन्‍म लेवें तो हमारी सब इन्द्रियाँ शुद्ध हों जिससे हम पूर्ण आयु, आरोग्‍यता, प्राण, कुशलतायुक्‍त शरीर का पालन करें और हमें सब दुःखों से दूर रहें।
द्वे सृति ........................ पितरं मातरं च॥ (यजु॰ 19/47) अर्थात् इस संसार में दो प्रकार की योनियाँ होती हैं, एक मनुष्‍य शरीर जो अच्‍छे कर्मों से प्राप्‍त होता है और दूसरा नीच योनियाँ जो बुरे कर्मों के फलस्‍वरूप मिलता है। जैसे कर्म वैसी योनि। इन योनियों के माध्‍यम से जीव पाप-पुण्‍य के फल भोगते हैं। माताथ्‍पिता के शरीरों में प्रवेश करके ही जीवात्‍मा शरीर धारण करता है पुनः शरीर को त्‍यागता है फिर जन्‍म को प्राप्‍त होता है अतः वह जन्‍म-जन्‍मान्‍तरों तक भटकता रहता है जब तक कि उसका मोक्ष नहीं होता। निष्‍काम कर्मों से ही मोक्ष मिलता है।
अब पुनर्जन्म को विश्व के सभी बुद्धिजीवी और विचारक मानने लगे हैं क्योंकि पुनर्जन्म की घटनाएं सब देशों धर्मों, जातियों और संप्रदायों में घट चुकी हैं। ये सारी घटनायें परामनोवैज्ञानिकों ने जांच परख कर सही पाई हैं और उनको लिपिबद्ध कर लिया गया है।
मां के गर्भ में ही जीव की यात्रा का अंत भी निश्चित हो जाता है। आत्मा की अनंतता का प्रमाण है पुनर्जन्म। एक जन्म के जो कर्म, भोग और वासनाएं मृत्यु के क्षण मन में अवशेष रह जाती है वही अगले जन्म का प्रारब्ध बनती है। जो लोग दान, जप, तप, भजन करते हैं उनकी भी मृत्यु संवरती है, जो दूसरों का अहित नहीं करते, सत्य का अनुसरण करते हुए दुखियोंकी सेवा करते हैं, उनका अंत तो निश्चित रूप से संभलता है।
निर्मल मन ही परमात्मा को प्रिय है और जो परमात्मा को प्रिय है, उसे तो अंत समय भी प्रियताही मिलेगी। हम आंख बंद कर हाथ के माले की गुरिया फेरते रहते हैं पर हमारे अंदर सांसारिक वासनाओं का फेर चलता है। हमारा यह कर्म स्वयं को और सांसारिक लोगों को भले ही सत् कर्म लगे पर परमात्मा को ढोंग ही लगता है। व्यक्ति के जीवन के खाते को जब महाकाल चेक करता है तो उसमें जाली नोटों की भरमार मिलती है और पुण्य का धन कम होने से अंत नहीं संवर पाता। मृत्यु जीवन के कर्म-वर्ष का उसी तरह अंतिम दिन होता है जैसे बैंक के खातों के लिए वित्तीय वर्ष का अंतिम दिन। उस दिन पूरे वर्ष की जमा पूंजी पर जिस तरह हर खाते में बैंक ब्याज लगाती है, उसी तरह मृत्यु भी हमें सत्कर्मोकी जमा पूंजी पर ही ब्याज देती है। सत् कर्म करो मृत्यु संवर जाएगी।

भारतीय दर्शन में आत्मा का भी वर्णन है। इस पर भी ध्यान से विचार कर के देखें तो आपको असीमितता का आभास होगा। केवल इस विषय पर सोचने मात्र से वृहदता का आनन्द आने लगता है । कहीं कोई व्यवधान नहीं दिखता। मृत्यु के भय से जनित नैराश्य क्षण भर में उड़ जाता है। इन विचारों को साथ में रखकर जहाँ हम प्रतिदिन अच्छे कार्य करने के लिये प्रस्तुत होंगे वहीं दूसरी ओर इस बात के लिये भी निश्चिन्त रहेंगे कि हमारा कोई भी परिश्रम व्यर्थ नहीं जायेगा।
मुझे सच में नहीं मालूम कि मैं पुनर्जन्म लूँगा कि नहीं पर इस मानसिकता से कार्य करते हुये जीवन के प्रति दृष्टिकोण सुखद हो जाता है।

"मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है"

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    • दिनेश मिश्र बहुत ही अच्छा लिखा ....ज्ञानवर्धक जानकारी, अभिवादन स्वीकार हो !
      November 29, 2010 at 8:03pm ·  ·  2 people

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      सहृदय मित्रों,
      आप सबका स्नेह देख कर मन भावविभोर हो उठा. बस, शब्द नहीं हैं मेरे पास इस वक्त आप सबका धन्यवाद और आभार कहने के लिये...............
      "बहुत आभार और धन्यवाद"

      November 29, 2010 at 9:10pm ·  ·  7 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      जीवितावस्था में मनुष्य अपने संस्कारों, विचारों, भावों और कर्मों द्वारा सूक्ष्म शक्ति अर्जित करता है। वह शक्ति भी इस शक्ति के साथ मिल जाती है, क्योंकि वह भी कभी नष्ट नहीं हो सकती, क्योंकि शक्ति या एनर्जी स्थितिज या गतिज रूप में सदैव विद्यम...See More

      November 29, 2010 at 9:22pm ·  ·  7 people

    • Nirmal Paneri JI BILKUL ...SHAI VARNAN AAP KA ....!!!!111
      November 29, 2010 at 9:23pm ·  ·  1 person

    • Rakesh Gautam पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है।
      November 29, 2010 at 9:24pm ·  ·  2 people

    • Poonam Singh 
      ‎-
      एक अमेरिकी डॉक्टर वॉल्टर सेमकियू ने बॉलीवुड अभिनेताओं और भारतीय नेताओं की पिछली जिंदगियों का दावा करके नई बहस शुरू कर दी है। वॉल्टर का सनसनीखेज दावा है कि सदी के महानायक यानी अमिताभ बच्चन के पूरे परिवार का ही पुनर्जन्म हुआ है।
      उनके अनुसार ...See More

      November 29, 2010 at 9:28pm ·  ·  3 people

    • Sheetal Jangir 
      कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी पिछले जन्म में कौन थीं इस बारे में भी सेमकियू ने अपने दावे पेश किए हैं। उनकी राय में वो अमेरिकी गृहयुद्ध के दिनों में मौजूद थीं और अमेरिकी सीनेटर की बेटी ...See More

      November 29, 2010 at 9:30pm ·  ·  4 people

    • Anupama Pathak valuable note,sir!
      November 29, 2010 at 11:02pm ·  ·  1 person

    • Hansraj Sharma धन्यवाद मनोज भाई. विचारों को कटघरे में प्रस्तुत देख कर ऐसा लग रहा था कि जज बन गया हूँ.

      पुनर्जन्म में माता और पिता के आशीर्वाद भी शामिल होते हैं. शायद इसलिए सीधा सम्बन्ध जुड़ नहीं पाता.

      November 30, 2010 at 6:18am ·  ·  1 person

    • Gita Pandit 
      पुनर्जन्म पर दावे नए नहीं हैं...टीवी ,समाचार पत्रों या मीडिया के द्वारे आये दिन पुनर्जन्म पर कुछ ना कुछ रहता है.....जैसा कि आपने भी कहा है कई धर्म इसे स्वीकार भी करते हैं....लेकिन आज तक भी ठोस सत्य या कहें कि प्रमाणिकता आँखों से ओझल है......See More

      November 30, 2010 at 7:41am ·  ·  1 person

    • Niranjana K Thakur बहुत ही अच्छा लिखा है ! thanx sir.
      November 30, 2010 at 9:56am ·  ·  1 person

    • Bharti Pandit sundar aur gyanvardhak lekh manoj bhai.. mera pasandeeda vishay hai yah ..jyotish se judi hone ke karan karta aur karm ke vidhan par charcha hoti hi rahati hai, is lekh se use bal mila.. dhanyavad..
      November 30, 2010 at 4:23pm ·  ·  2 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      आप सुधिजन मित्रों का बहुत-बहुत धन्यवाद......
      पूर्वजन्म के सन्दर्भ में विज्ञान भी कुछ भ्रमित सा जान पड़ता है, मेरा पूर्वजन्म के सन्दर्भ में अभिमत कुछ इस प्रकार से है.......
      पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया श...See More

      November 30, 2010 at 6:41pm ·  ·  5 people

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि विद्वत भरे विचार आपके द्वारा प्राप्त हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि इस 'पुनर्जन्म'विषय पर अनेक पुस्तकों की अनंत श्रृंखला लिखी जा सकती है....,
      वैसे आप सभी को एक अत्यंत व्यक्तिगत तथ्य बताना चाहूँगा,मैं स्वयं पुनर्जन्म की प्रक्रिया से अनुभूति प्राप्त कर चुका हूँ....

      November 30, 2010 at 6:49pm ·  ·  5 people

    • Sharad Chaturvedi भाई मनोज जी ,



      पुनर्जन्म की इतनी ज्ञान वर्धक और तत्वपारित जानकारी करने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद.. बहुत ही सुन्दर तरीके से ब्याख्या की है ....

      November 30, 2010 at 6:56pm ·  ·  1 person

    • Sharad Chaturvedi पाप और पुन्य करने की शक्ति इस पूरी स्रष्टि मै मात्र मनुष्य को ही भगवान ने दी है,उसे शारीर दिया है और जब तक मर न जाये तब तक मनमानी कर सकने की ताकत दी,दीवारें और परदे कभी किशी जानवर ने नहीं बनाये, मनुष्य ने पाप करने और उन्हें छुपाने के लिए ही ये सब बनाये है,देवता के पास ताकत है पर वो नियम के आधीन है.इशिलीये पाप और पुन्य के आधार पर दंड भी मनुष्य को ही मिलता है
      November 30, 2010 at 7:15pm ·  ·  2 people

    • Poonam Singh ‎-
      ॐ श्री सद् गुरु देवाय नम:
      परम उपकारी गुरु के चरणों में वन्दना !!!

      November 30, 2010 at 7:23pm ·  ·  5 people

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      हिंदूओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूं लेकिन तुम नहीं जानते।
      एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था।

      November 30, 2010 at 7:26pm ·  ·  6 people

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      शरद भाई,
      आपने प्रस्तुत तथ्यों का सटीक निष्कर्ष प्रस्तुत करके अभिभूत कर दिया, हार्दिक धन्यवाद....
      एक विनम्र निवेदन है कि इसी सदाशयता से मुझे मार्ग दर्शन देते रहें !
      सादर,

      November 30, 2010 at 7:31pm ·  ·  6 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      दुनियाभर के विभिन्न धर्मों में यह मान्यता है कि ईश्वर समय समय सृष्टि के पुनर्निर्माण के लिए किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न होते हैं। यह उनका मानवीकृत रूप होता है जिसे हिन्दुओं में अवतार कहा जाता है। धर्मशास्त्र में अक्सर मुख्यतौर प...See More

      November 30, 2010 at 8:11pm ·  ·  6 people

    • Ggm Nazim jahan tak pahunch jaao veah vigyan jo ansulgh reah jayea vah andhvishwas jahan rehasya baki hea vah adhyatam.aajkal aesa hi prachalan chal raha hea.gyan kea abhav mean aur adhyatm ki nasamghee lo apnea apnea sutar gadh rahea hean.
      November 30, 2010 at 8:19pm ·  ·  1 person

    • Manoj Chaturvedi 
      नाजिम भाई,
      आपके वाल पर ही यह सन्देश है,
      "मैं तस्सवुर भी तेरी जुदाई का भला कैसे करुं।
      मैंने क़िस्मत की लक़ीरों से चुराया है तुझे।।"
      सनातन धर्म में हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई यही चारों धर्म आते हैं और जब भगवान इन धर्मों में जीव को जन्म देते हैं वह इ...See More

      November 30, 2010 at 8:37pm ·  ·  5 people

    • Rahul Sultania आदरणीय सर,
      पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है।

      November 30, 2010 at 9:09pm ·  ·  2 people

    • Sheetal Jangir सर,
      आप जैसे असाधारण,प्रतिभाशाली व्यक्तित्व पूर्वजन्म में हमारे विश्वास को ज्यादा मज़बूत बनाते हैं, आप हमारे सर पर ऐसे ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये !
      आपके आशीर्वाद से ही हम अपने जीवन के सही मुकाम तक पहुँच पाएंगे !

      November 30, 2010 at 9:18pm ·  ·  3 people

    • Raghuveer Saini गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-
      नैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
      न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................
      यानि आत्मा अमर है।
      तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म का हिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!
      जितने लोग उतने विचार...

      November 30, 2010 at 9:22pm ·  ·  2 people

    • Poonam Singh ‎-
      प्रभु के स्वरुप को किसी ने देखा नही है, पर अपनी भावनाओं के धरातल पर प्रभु की प्रतिमा को भिन्न भिन्न रूप देकर स्थापित कर लेते हैं - यही निर्विवाद सत्य है मान कर आस्था का निराजन अर्पित करते हैं। ठीक इसी प्रकार पुनर्जन्म के प्रश्न पर गीता की सारगर्भित वाणी सामने आती है। छानबीन और तर्कों से परे आत्मा की अमरता पर विश्वास कर के मन को सुकून मिलता है।

      November 30, 2010 at 9:27pm ·  ·  4 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      आप मित्रों से निवेदन है कि अपने विचार सदाशयता से विस्तार में अभिव्यक्त करें, जिसके आधार पर भविष्य के आलेख की पृष्ठभूमि में सहायता मिल सके ! यह सभी आलेख आपकी अभिव्यक्तियों को समर्पित हैं....
      आज विश्व के वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोजों के आधा...See More

      November 30, 2010 at 9:45pm ·  ·  5 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      सहृदय मित्रों.
      "शुभ प्रात:"
      रात्रिकाल में पुनर्जन्म से सम्बंधित कुछ विचार एक मित्र से प्राप्त हुए, सुबह ही विचार आया कि इन विचारों को आपके साथ शेयर किया जाये.....
      पुनर्जन्म या REINCARNIATION एक ऐसा शब्द है जिससे लोग REBIRTH के नाम से जानते ह...See More

      December 1, 2010 at 6:30am ·  ·  5 people

    • Poonam Singh ‎-
      परमादरणीय गुरुदेव,
      शुभ प्रात: की शुभ बेला में चरण स्पर्श !
      आपके पुनर्जन्म के कुछ अंश हम आपके व्याख्यान के दौरान सुन चुके हैं, वाकई रोमांचित करने वाले पराभौतिक अनुभव हैं ! यदि आप उन्हें लिपिबद्ध करके अन्य साथियों के साथ भी बनते तोह हम सभी को अपार हर्ष होगा !
      आपके चरण कमलों में हमारा नमन !

      December 1, 2010 at 6:40am ·  ·  4 people

    • Sankhla Bharat हम जब निंद से जगते है तो हम कहा थे वो भी हमें पता नही रहता हो भाइ यह तो बहुत बडी बात है कि------
      मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है,-----

      December 1, 2010 at 7:17am ·  ·  1 person

    • Poonam Singh 
      ‎-
      हिंदू मान्यताओं के मुताबिक पुनर्जन्म होता है लेकिन कोई भी व्यक्ति मरने के तुरंत बाद ही दूसरा जन्म ले यह संभव नहीं है। अगर हिंदू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायु मंडल में ही चलायमान होती है। स्वर्ग-नर्क जैसे स्थ...See More

      December 2, 2010 at 2:39pm ·  ·  3 people

    • Poonam Singh 
      ‎-
      इंसान के मन में आने वाले कल को जानने के साथ ही अपने पिछले जन्म के जीवन को जानने की भी प्र्रबल इच्छा होती है। रही बात अपना पिछला जन्म जानने की, तो ऐसा कर पाना कठिन किन्तु सौ फीसदी संभव है। पिछला जन्म जानना हो या भविष्य की झांकी देखना हो दो...See More

      December 2, 2010 at 2:41pm ·  ·  4 people

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      प्रिय पूनम शर्मा,
      पुनर्जन्म की बहुत अच्छी व्याख्या की है, पुनर्जन्म के सम्बन्ध में विज्ञान का दृष्टिकोण भी पुष्ट होने लगा है......,और मैं तो स्वयं ही इसका निकट से अनुभव ले चुका हूँ !

      December 2, 2010 at 3:26pm ·  ·  6 people

    • Rahul Sultania आदरणीय सर,
      अज्ञात को जानने की ललक उसके मन में प्रारंभ से ही रही है। जो सामने नहीं है यानि कि छुपा हुआ है, गुप्त है उसे प्रत्यक्ष करना या सामने लाना हर व्यक्ति जन्म से ही स्वाभाविक गुण है। यह सब जानते हैं कि जो होना है वह तो हो कर ही रहेगा किन्तु फिर भी अपना भविष्य फल जानने की बेसब्री और कोतुकता के कारण ही इंसान अपना समय, श्रम और सम्पत्ति तीनों दाव पर लगाता है।

      December 2, 2010 at 3:43pm ·  ·  2 people

    • Raghuveer Saini 
      सर,
      बुद्ध से अनेक प्रश्न पूछे गए थे। जैसे 'ईश्वर है?', 'ईश्वर नहीं है?' 'आत्मा है?', ' आत्मा नहीं है?' ' पुनर्जन्म होता है?', 'पुनर्जन्म नहीं होता है?' इन सभी प्रश्नों के उत्तर में बुद्ध मौन रहे। शिष्यों ने इस मौन की व्याख्या की। कहा-' बुद्ध...See More

      December 2, 2010 at 3:55pm ·  ·  1 person

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      आत्मा मनुष्य के जीवन का वह तत्त्व है जो उसकी सत्ता में, प्राण में व्याप्त है और उनसे परे है ! कठोपनिषद् के अनुसार आत्मा न उत्पन्न होता है, न मरता है. यह अजन्मा सदा से वर्तमान, सर्वदा रहने वाला और पुरातन है तथा शरीर के मारे जाने पर भी स्वय...See More

      December 2, 2010 at 4:23pm ·  ·  5 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति को हम काल की अधीनता से मुक्ति भी कह सकते हैं ! यह कर्म की अधीनता से मुक्ति भी है. मुक्त आत्मा के कर्म चाहे वे अच्छे हों या बुरे, उस पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं. छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार जिस प्रकार जल कम...See More

      December 2, 2010 at 4:27pm ·  ·  7 people

    • Poonam Singh ‎-
      परम उपकारी गुरु के चरणों में वन्दना !!!

      December 2, 2010 at 8:52pm ·  ·  1 person

    • Poonam Singh ‎-
      आदरणीय सर,
      हम आपके लेखों की निरंतर प्रतीक्षा करते रहते हैं !!!
      गुरु वही जो शिष्य के भ्रम तथा भ्रांतियां मिटाए !

      December 2, 2010 at 8:55pm ·  ·  2 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      मनुष्य एक यात्रा का अन्तिम पड़ाव है, जहाँ से दूसरी यात्रा शुरू होती है। अनन्त की, ब्रह्मत्व की यात्रा, मोक्ष की, निर्वाण की यात्रा। यह यात्रा यदि शुरू नहीं हो पाती तो मनुष्य जन्म मरण के एक दुष्चक में घूमता रहता है।’’
      संस्कार क्या हैं एक जन...See More

      December 4, 2010 at 9:14pm ·  ·  8 people

    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      जो ‘अमर’ है वही ‘मरा’ है। अर्थात् तात्विक दृष्टि से देखें तो अमरत्व और मरणधर्मिता, शाश्वता और क्षणभंगुरता अलग-अलग नहीं हैं। जो क्षणभंगुर दिखाई देता है, जो सतत परिवर्तनशील दिखाई देता है, वही अमर है, शाश्वत है। मृत्यु और परिवर्तन तो आभास मा...See More

      December 4, 2010 at 9:17pm ·  ·  8 people

    • Poonam Singh ‎-
      तुलसीदासजी ने कहा है :
      "जानत तुमहिं, तुमहिं होय जाई"
      बूँद सागर में गिरी तो स्वयं सागर हो गई। जब बूँद बची ही नहीं तो रमेगा कौन ? वह परासत्ता, वह चरम वास्तविकता, वह परब्रह्म तो ‘अरभ’ ही हो सकता है।
      इस प्रकार हम देखते हैं कि जो कुछ भी जानने योग्य है, जो कुछ भी मनन योग्य है, वह सब ‘राम’ शब्द में अन्तर्निहित है।

      December 4, 2010 at 9:36pm ·  ·  3 people

    • Anil Kumar Patil Respected sir,
      Bahut achha likh hai aapne !
      sat sat naman !

      December 4, 2010 at 9:44pm ·  ·  1 person

    • Raghuveer Saini आदरणीय सर,
      कुछ लोग पुनर्जन्‍म को सिद्ध करने के लिए वैज्ञानिक ढ़ंग से प्रमाण देते हैं। उनके अनेक तर्कों में से एक तर्क यह भी है कि कुछ व्‍यक्ति हिप्‍नोटिज्‍म के प्रभाव के अन्‍तर्गत अपने पुनर्जन्‍म के बारे में बताते हैं।

      December 4, 2010 at 9:48pm ·  ·  1 person

    • Sheetal Jangir सर,
      एक सार्थक आलेख। आज ऐसे ही सचेतक लेखों की आवश्‍यकता है।बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुत की है आपने। आभार।
      आप हमारे सर पर ऐसे ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये !
      आपके आशीर्वाद से ही हम अपने जीवन के सही मुकाम तक पहुँच पाएंगे !

      December 4, 2010 at 10:03pm ·  ·  2 people

    • Rahul Sultania Sir,
      Really wonderful,cogratulations

      December 4, 2010 at 10:06pm ·  ·  1 person

    • Rajesh Mishra आदरणीय भाई साहब, सुंदर एवं ज्ञानवर्धक लेख... आपसे इससे कम की उम्मीद नहीं कर सकते...:)
      December 5, 2010 at 10:51am ·  ·  1 person

    • Manoj Chaturvedi ‎*
      मेरी स्नेहीजन मित्र-मंडली का ह्रदय से आभार.....,
      आप सभी ने दिल खोलकर आलेख का विश्लेषण किया और विषय के प्रति मेरी जानकारी में वृद्धि भी कर दी, अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस विषय की एक पूरी श्रृंखला ही लिख डाली जाये.....
      सादर,

      December 5, 2010 at 12:06pm ·  ·  3 people

    • Rahul Sultania Sir,
      V r waiting 4 ur next article.

      December 6, 2010 at 9:40pm · 

    • मिलिन्द चतुर्वेदी ‎"जीवेम शरद: शतम:"
      December 7, 2010 at 2:44pm 

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या मृत्यु एक पहेली हैं मृत्यु के बाद

    आज कम्पुटर के युग में जबकि मनुष्य विज्ञान के सहारे चाँद पर उतरने में सफल हो गया कदाचित जब से दुनिया बनी हैं उसने अब पहली बार स्थिति से भौतिक शरीर के साथ उड़कर चांदनी की बारिश करने वाले चाँद जैसे नक्षत्र में जाकर उसका रहस्योंदघाटन किया हैं पर क्या कारण हैं कि एक बात जो सबके जीवन में घटती है जो सदा के लिए मनुष्य के प्यारे सगे सम्बन्धियों को छिनकर एक अज्ञात अँधेरे में धकेल देती हैं ऐसी वे मृत्यु क्यों इस विज्ञान के युग में अभी तक एक पहेली बनी हुई हैं l

    http://shabdanagari.in/Website/Article/क्यामृत्युएकपहेलीहैंमृत्युकेबाद

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