गुरुवार, 30 जून 2011

हिंदी भाषा :"अभिव्यक्ति के बदलते स्वरुप"



हमारे देश भारत की स्वतंत्रता के पूर्व हिन्दी भाषा की व्यापकता के कारण देश के स्वाधीनता सेनानियों ने स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान हिन्दी भाषा को ही संपर्क भाषा के रुप में महत्ता दी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद में, हिन्दी भाषा को इन्हीं गुणों के कारण भारतीय-संविधान के निर्माताओं ने भारतीय गणतंत्र संघ की राजभाषा का दर्जा दिया। हिन्दी सिनेमा, आकाशवाणी और दूरदर्शन के सहयोग से हिन्दी भाषा ने देश की सांस्कृतिक जनभाषा का दर्जा पाया। समय के बदलते स्वरुप के अंतर्गत उदारीकरण और वैश्वीकरण ने तो हिन्दी की आर्थिक महत्ता में जबर्दस्त परिवर्तन आया और हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषा बनकर उभरी है । आज हिन्दी बिना किसी लाग-लपेट के आगे बढ़ रही है और इसी का परिणाम है कि हमारे सभी वर्गों के साहित्यकारों ने इसे अनिवार्य बनाने की हिमायत की है ।
हिन्दी भाषा को अनिवार्य बनाने से कई फायदे होंगे। पहला तो, हिन्दी; विश्व की प्राचीनतम भाषा एवं देश की अधिकांश भाषाओं की जननी संस्कृत की छोटी बहन मानी जाती है। दूसरा, हिन्दी उर्दू के काफी नजदीक है। और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण है, हिन्दी अपनी संपर्क भाषा के गुणों एवं भाषायी स्वीकार्यता के चलते पूरे देश में व्यापक रुप से स्वीकृत हुई है ।

हमारे देश भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् के विभिन्न कालखंडों के दौर में राजभाषा हिन्दी भाषा ने कई उतार-चढ़ाव भरे सफर तय किए है। हिन्दी भाषा के स्वरुप में संपर्कभाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, अंतर्राष्ट्रीय भाषा आदि विभिन्न उपादानों से अंलकृत होकर काफी बदलाव आए है। स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली यह भाषा आज देश की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक व राजनैतिक एकता को भी मजबूत कर रही है। अपनी संपर्क भाषा की भूमिका के कारण हिन्दी हमें स्थानीयता और जातीयता से परे लेकर जाती है। हिन्दी का यह भाषायी विस्तार भारतीय समाज में व्याप्त क्षेत्रीय, जातीय व भाषायी दूराग्रह को समाप्त करने में काफी मददगार सिद्ध हो रहा है। हिन्दी की इस भूमिका ने भारतीय जनमानस को राष्ट्रभाषा की कमी के अहसास से भी मुक्ति प्रदान की है। 
प्रसिद्द भाषा वैज्ञानिक फादर कामिल बुल्के के अनुसार हिंदी एक शक्तिशाली भाषा है। साहित्यिक समृद्धि, गौरवान्वित इतिहास और शराफत के कारण हिंदी एक समृद्ध भाषा है। प्रारम्भिक दौर से ही हिंदी लाचार, अशक्त एवं विवश भाषा नहीं रही है। हालाँकि इसकी शक्तिमतता शरारत के कारण नहीं है - बल्कि, भाषिक संतुलन शराफत के कारण। शब्द, वाक्य और अर्थ विन्यास, संग्रह, रचना, विधान के विभिन्न स्तरों पर हिंदी में कभी शठता नहीं आयी है, बल्कि समायानुसार वर्तमान से सामंजस्यपूर्ण होती चली गयी। साहित्य, व्याकरण और शब्दकोश निर्माण की लम्बी परम्परा रही है, जिसमें विदेशी विद्वानों की भी अहम भूमिका रही है। हिंदी का पहला व्याकरण १६९८ में हालैंड निवासी जॉन केटेलर ने हिन्दुस्तानी भाषा शीर्षक से डच में लिखा था। १७९६ में गिलक्राइस्ट ने हिन्दुस्तानी व्याकरण की रचना की। हिंदी की महत्ता के संज्ञान में २१ दिसम्बर,१७९८ ईस्वी से हिन्दुस्तानी का ज्ञान आवश्यक किया गया। वेलेजली ने ४ मई, १८०० ईस्वी को फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। शुरुआत होती है एक नयी परम्परा की । सन १८२३ ईस्वी में विलियम प्राइस ने हिन्दोस्तानी का व्याकरण लिखा। उन्होंने पुन: सन १८२८ में हिन्दोस्तानी का नया व्याकरण लिखा। आर्नो ने भी दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी:-
१. ऑन द ओरिजिन ऑफ स्ट्रक्चर ऑफ द हिन्दुस्तानी टंग, 
२. ए न्यू सेल्फ इस्टक्टिग ग्रामर ऑफ द हिन्दुस्तानी टंग। डंकन फोर्ब्स ने सन १८४५ ईस्वी में हिंदी शीर्षक से पहली किताब हिंदी मैनुअल लिखी ।
सन १९४८ ईस्वी में हिंदी – अंग्रेजी तथा अंग्रेजी-हिंदी कोश का भी प्रकाशन हुआ। फेरडरिक जान शोर (सन१७९९-१८३७) ने तो अंग्रेजी का विरोध करते हुए हिन्दुतानी के पक्ष मे वकालत भी की थी। भाषा-वैज्ञनिक पिन्कॉट ने हिंदी का प्रचार-प्रसार में प्रयत्नशील रहते हुए चार सौ पृष्ठों का मैनुअल भी संपादित किया ।कोई भी राष्ट्रीय भाषा राष्ट्रव्यापी संवेदना, आग्रह, प्रोत्साहन से जुड़ी होती है। बंगाल के राजा राममोहन राय और गुजरात के स्वामी दयानंद सरस्वती देश के पहले नेताओं की पंक्ति में थे जिन्होंने हिंदी भाषा को राष्ट्रव्यापी बनाने की वकालत की । याद रहे कि इंडियन नेशनल कांग्रेस के मंच से हिंदी में पहला भाषण अमृतसर में सन १९१९ ईस्वी में भूदेव मुखर्जी द्वारा दिया गया, जो गैर हिंदी भाषी थे। अर्थात, राष्ट्रीय हिंदी का सीधा और सपाट तालुकात, दरअसल उस हिंदी से है, जो भाषिक कड़वाहटों, उलाहनों, नोकझोंक और ईष्या-द्वेष को दरकिनार कर राष्ट्रीय लोकप्रियता, भावनाओं, संवेदनाओं, पहचान एवं आग्रह से जुड़ी है एवं तमाम विकल्पों को सहेजे हुए भारतीयता को सृजित करने में सबसे अग्रणी रही। हिन्दी कई बाधाओं-अवरोधों के बावजूद लोकतांत्रिक तरीके से स्वत: ही पूरे देश में फैल रही है। बोलना ही किसी भाषाको जीवित रखता हैं और फैलाता है। जैसे-जैसे हिन्दी भाषा की इस व्यापकता को स्वीकृति मिल रही है वैसे-वैसे उस पर देश की अन्य भाषाओं, बोलियों का प्रभाव भी स्पष्ट नजर आ रहा है। हिन्दी भाषा का फैलाव अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हो गया है। सामान्यतया, यही माना जाता था कि हिन्दी की यह आंचलिकता बिहार की बोलियों, हरियाणवी तथा पंजाबी तक ही सीमित है। लेकिन, हिन्दी अपने भाषायी विस्तार के दौर में न केवल गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, तमिल, तेलगू आदि भाषाओं के संपर्क में आई है बल्कि इसकी पहुँच पूर्वोत्तर राज्यों की भाषाओं तक हो गई है। इसीलिए, आजकल पंजाबी से गृहित ‘मैंने जाना है या मैंने किया हुआ है’ का प्रयोग आंचलिकता नहीं माना जाता बल्कि इसे हिन्दी का भाषायी विस्तार माना जाता है। आंचलिकता के कारण हिन्दी के कई रुप प्रचलित हो गए है जिसे हम अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रुपों में देख सकते है। हिन्दी क्षेत्रों में भी एक ही चीज के लिए अलग-अलग शब्द प्रयोग किए जाते रहे है। जैसे, मध्यप्रदेश में शासकीय महाविद्यालय या यंत्री(इंजीनियर) का प्रयोग तथा बस रखने के स्थान को किसी राज्य में डिपो या किसी राज्य में आगार कहते है।
आज हिन्दी अपने राष्ट्रीय स्वरुप में दक्खिनी हिन्दी, हैदराबादी हिन्दी, अरुणाचली हिन्दी आदि में विस्तारित हो गई है। दक्षिण भारतीय हिन्दी के स्वरुप को हम भले ही मजाकिए अंदाज में हिन्दी सिनेमा में देखते है लेकिन इसे भी हिन्दी का विस्तार माना जाता है। स्पष्टतया, आज हिन्दी सार्वत्रिक रुप से संपूर्ण भारत की भाषा बन गई है। हिन्दी का यह अखिल भारतीय स्वरुप भारत के दक्षिण से उत्तर की ओर तथा भारत के पूर्व से पश्चिम की ओर आ रही है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हिन्दी का यह जबानी फैलाव एक दिन लिपि के स्तर पर भी होगा।
इस भाषायी विस्तार के कारण हिन्दी में केवल भारतीय भाषाओं के शब्द ही नही आए है बल्कि इसका फैलाव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आप्रवासियों की हिन्दी में देखा जा सकता हैं। मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम के अतिरिक्त जमैका, टोबैगो और गुयना जैसे भारतवंशी देश भी है। जहाँ की पचास फीसदी से ज्यादा आबादी तो कहीं पचास फीसदी से कम लोग मातृभाषा के रुप में हिन्दी का प्रयोग करते है। सूरीनाम की हिन्दी में ‘हमरी बात समझियो’ जैसा प्रयोग मानक हिन्दी माना जाता है। तो, मारीशस में ‘मैं बुटिक जा रहा हूँ (मैं दुकान जा रहा हूँ)’ जैसा प्रयोग सहज स्वाभाविक है। हिन्दी के बोलचाल के सैकड़ो शब्द मॉरीशस की भाषा क्रियोल में आ गये है। हिंदी संस्कृति से प्रभावित छोटे से देश फीजी की मुख्य भाषा भी फीजी बात(फीजी हिन्दी) है। जिसका प्रयोग वहां की संसद में भी होता है। लेकिन फीजी बात से परिचित कोई भी व्यक्ति यह जानता है कि वह किस प्रकार के आंचलिक प्रयोगों से युक्त हिन्दी है। इसके अतिरिक्त अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में आप्रवासियों की बड़ी आबादी कुछ दूसरे प्रकार की हिन्दी बोलती है। यह भी आधुनिक हिन्दी का ही विस्तार है। अमेरिका तथा ब्रिटेन के हिन्दी रेडियो कार्यक्रमों में हिंदी भाष की ज्यादा गुणवत्ता नज़र आती है।
हिन्दी भाषा के बदलते स्वरुप को हम आधुनिक संचार माध्यमों के आधार पर भी देख सकते है। आधुनिक संचार माध्यमों
 ने भी हिन्दी के इस नए रुप को गढ़ने में पर्याप्त सहयोग किया है। कारण कि भाषाएं संस्कृति की वाहक होती है और इन दिनों आधुनिक संचार माध्यमों पर प्रसारित हो रहे कार्यक्रमों से समाज के बदलते सच को हिन्दी के आधार पर ही सम्मानित किया जा रहा है। इन कार्यक्रमों की लोकप्रियता से भी हिन्दी भाषा की बढ़ती स्वीकार्यता का अंदाजा लगा सकते है। हिन्दी संचार माध्यमों भी दिनों-दिन प्रगति की ओर बढ़ रही है। देश के संचार माध्यम उद्योग का भी एक बड़ा हिस्सा हिन्दी संचार माध्यम उद्योग का है।
वर्तमान समय में हिंदी भाषा कई कारणों से लोगों का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट कर रही है। प्रस्तुत उदाहरण शायद आपको स्वीकारोक्ति के लिए विवश करे । इस बार न्यूयार्क के मेयर ने अमेरिका में रहने वाले भारतीयों को दीपावली और नववर्ष पर हिंदी भाषा में अभिवादन किया। अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा व्हाइट हाउस में 
दीपावली समारोह का आयोजन एवं संस्कृत के श्लोक का पाठ एवं भारतीय संसद में नमस्ते के माध्यम से अभिवादन करना हिंदी के लुभावनी होने का भरपूर संकेत देता है। पृष्ठभूमि चाहे जो भी हो, परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि हिंदी लुभावनी बन रही है ।
अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हिन्दी भाषा के इस विराट स्वरुप को तकनीकी व व्याकरणिक स्वीकृति कैसे मिले ? हिन्दी भाषा का यह स्वरुप अपने-अपने क्षेत्रीय संदर्भ में हिन्दी को आत्मीय बनाता है। जिसके कारण हिन्दी का प्रयोगकर्त्ता एक खास तरह का भाषिक अपनापन अनुभव करता है। लेकिन, हिन्दी का यह स्वरुप हिन्दी को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकानेक बोलियों में बदल रही है। यह तथ्य कई शुद्धतावादियों को आपत्तिजनक भी लगती है।
हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान डॉ.रामविलास शर्मा के अनुसार “ बोलियां ही हिन्दी की सबसे बड़ी शक्ति है। एक हिन्दी वह है जो अपने मानक रुप में अपनी सरलता और नियमबद्धता के कारण राष्ट्रीय और क्षेत्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय भाषा तक है। दूसरी हिन्दी वह है जो आंचलिक और क्षेत्रीय प्रकार की है। यह हिन्दी मानक हिन्दी के लिए शब्दों और प्रयोगों का अक्षय भंडार है। मानक हिन्दी का वहीं अंश गृहीत होता है जो इसके राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोधगम्य होने में बाधक नहीं है। नमनीयता और अनुशासनबद्धता ऐसे परस्पर विरोधी ध्रुव है जिनके बीच दुनियाभर के बीच बड़ी भाषाएं काम करती है। हिन्दी का सच भी यही है। “

इक्कीसवीं सदी एक अजीबो-गरीब किस्म की भाषिक कौतूहल के दौर से गुजर रही है, जिसमें भाषिक संवेदना, कड़वाहट, कलह, विभाजन, तिरस्कार और दबाव से कहीं अधिक भाषिक उत्तेजना, न्यौता, साझेदारी, जश्न, पुकार और समझदारी है। संभव है कि भाषायी दृष्टि से इक्कीसवीं सदी इतिहास के पन्नों में सबसे अव्वल किस्म की सदी के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए। ऐसी संभावना इसलिए बन रही है, कि पश्चिम आज आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक चुनौतियों से घिरा है और गैर-पश्चिम एक विकल्प के रूप में उभर रहा है। खुशखबरी इस बात की है कि पहले की तरह दोनों के बीच आज उतनी कड़वाहट नहीं है, अपितु भाषाई रिश्तों में साझेदारी की नयी ललक दिखती है। हालाँकि, इन चुनौतियों और विकल्पों के प्रभावों का सही आकलन करना अभी संभव नहीं है, परन्तु इतना स्पष्ट है कि दोनों के बीच की पारस्परिकता समय की माँग है। ऐसे वातावरण में हिंदी भाषा के व्यापक लोक-व्यवस्था की संकल्पना समयोचित है और इससे भाषाविज्ञान की सैद्धान्तिक समृद्धि बढ़ेगी। हालाँकि, उक्त व्यवस्था का अभ्युदय उभरते गैर-पश्चिमी राष्ट्रों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। अत: हिंदी भाषा लोक-व्यवस्था के अभ्युदय की संकल्पना इक्कीसवीं सदी में असहज नहीं जान पड़ती है।
अत: यह अत्यावश्यक है कि हिन्दी के इस नए स्वरुप को मानकीकृत किया जाए। भारतीय सरकार को भी चाहिए कि वह सभी प्रमुख भाषाविदों से विचार-विमर्श करके हिन्दी का एक ऐसा मानक शब्दकोश तैयार करें जिसमें वर्तमान में प्रयोग किए जा रहे सभी शब्दों का समावेश हो तथा इस शब्दकोश में आम बोलचाल में स्वीकृत दूसरी भाषा के शब्दों को आसानी से जगह मिले। जिस प्रकार अंग्रेजी भाषा अपनी लोचता के कारण अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन गई है तथा प्रत्येक वर्ष ऑक्सफोर्ड शब्दकोष में अंग्रेजी भाषा में स्वीकार्य शब्दों को अपनी शब्दावली में आसानी से जगह देता है ; उसी प्रकार हिन्दी शब्दकोष में भी दूसरी भाषा के शब्दों को आसानी से जगह मिले। तभी, हिन्दी को ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता मिलेगी। साथ ही हिन्दी की इस स्वीकार्यता से हमारी भाषायी अस्मिता को भी सम्मान मिलेगा और हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने का हमारा दावा मज़बूत होगा ।
भारत में 'देश की भाषा की समस्‍या' जनता जनित नहीं है अपितु यह जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा जनित है। स्वतंत्र भारत के जनप्रतिनि‍धियों ने सन १९४७ में ही यह स्‍वीकार कर लिया था कि देश में एक संपर्क भाषा हो और वह भारत की ही भाषा हो और कोई विदेशी भाषा न हो। भारतीय संवि‍धान लागू होने के बाद पंद्रह साल का समय भाषा परिवर्तन के लिए रखा गया था और वह समय केवल केंद्र सरकार की भाषा के लिए ही नहीं बल्कि भारत संघ के सभी राज्‍यों के लिए भी रखा गया था कि उस दौरान सभी राज्‍य सरकारें अपने-अपने राज्‍यों में अपनी राजभाषा निर्धारित कर लेंगी एवं उन्‍हें ऐसी सशक्‍त बना लेंगी कि उनके माध्‍यम से समस्‍त सरकारी काम काज किए जाएंगे तथा राज्‍य में स्थित शिक्षा संस्‍थाएं उनके माध्‍यम से ही शिक्षा देंगी। यह निर्णय सन १९४९ में ही किया गया था | राज्‍यों ने अपनी-अपनी राजभाषा नीति घोषित कर दी थी। यद्यपि वहां भी पूरी मुस्‍तैदी से काम नहीं हुआ क्‍योंकि राज्‍यों के सामने शिक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण अन्‍य आवश्‍यक समस्‍याएं थीं जिनपर अविलंब ध्‍यान देना था। उस चक्‍कर में राज्‍य सरकारों ने राजभाषाओं की समस्‍या को टाल दिया था परंतु किसी भी सरकार ने अंग्रेज़ी को राजभाषा के रूप में अनंत काल तक बनाए रखने की मंशा नहीं व्‍यक्‍त की। अतः राज्यों ने अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार अपनी राजभाषाओं को प्रचलित करने के लिए अपने यहां भाषा विभागों की स्‍थापना की और कार्यालयी भाषा की शिक्षा देना प्रारंभ किया, भाषा प्रयोग की समीक्षा करने लगे तथा प्रशासनिक शब्‍दावली बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ की। राज्‍य सरकारों ने उसी निर्धारित समय में अपनी भाषाओं को संवर्धित किया और आज नागालैंड के सिवाय सभी राज्‍यों ने अपनी राज्‍य भाषाओं में काम करना प्रारंभ कर दिया है। ऐसे में यह और भी  आवश्‍यक हो गया है कि देश में राज्‍यों के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को स्‍थापित किया जाए।अनेक समितियां और आयोग बने परंतु किसी ने भी हिंदी के प्रश्न को समय सीमा से परे रखने की सिफ़ारि‍श नहीं की है। राजभाषा आयोग, विश्‍व विद्यालय अनुदान आयोग, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड,सभी ने हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओं में ही शिक्षा दीक्षा देने की सिफ़ारिश की है। तब संविधान में हिंदी को अनिश्चित काल के लिए टालने की बात कहां से आई? यह निश्चित रूप से कोई सोची समझी चाल तथा प्रच्‍छन्‍न विद्वेष की भावना लगती है। इसे समझने और ग्रासरूट स्तर पर चेतना जागृत करने की आवश्‍यकता है। 
हिंदी को वास्‍तविक रूप में कामकाज की भाषा बनाना हो तो देश में त्रिभाषा सूत्र सच्‍चे मन से तथा कड़ाई से लागू करना होगा। त्रिभाषा सूत्र के कार्यान्‍वयन की कठिनाइयों पर शिक्षा आयोग (सन १९६४-१९६६) ने विस्‍तार से विचार किया है। व्‍यावहारिक रूप से त्रिभाषा सूत्र के कार्यान्‍वयन की कठिनाइयों में मुख्य है स्‍कूल पाठ्यक्रम में भाषा में भारी बोझ का सामान्‍य विरोध, हिंदी क्षेत्रों में अतिरिक्‍त आधुनिक भारतीय भाषा के अध्‍ययन के लिए अभिप्रेरण (मोटिवेशन) का अभाव, कुछ हिंदीतर भाषी क्षेत्रों में हिंदी के अध्‍ययन का विरोध तथा पांच से छह साल तक, कक्षा छठी से दसवीं तक दूसरी और तीसरी भाषा के लिए होने वाला भारी खर्च और प्रयत्न। शिक्षा आयोग ने कार्यान्‍वयन की कठिनाइयों का उल्‍लेख करते हुए कहा है कि गलत योजना बनाने और आधे दिल से सूत्र को कार्यान्वित करने से स्थिति और बिगड़ गई है। अब वह समय आ गया है कि सारी स्थिति पर पुनर्विचार कर स्‍कूल स्‍तर पर भाषाओं के अध्‍ययन के संबंध में नई नीति निर्धारित की जाए। अंग्रेज़ी को अनिश्चित काल तक, भारत की सहचरी राजभाषा के रूप में स्‍वीकार किए जाने के कारण यह बात और भी आवश्‍यक हो गई है।
अतः ऐसी परिस्थिति में कार्यालयों में हिंदी को प्रचलित करने तथा स्‍टाफ़ सदस्‍यों को सक्षम बनाने के लिए सतत और सत्‍यनिष्‍ठा के साथ शिक्षण प्रशिक्षण का हर संभव प्रयास करना होगा एवं हिंदी की सेवा से जुड़े हर व्‍यक्ति को अपने अहम् को दूर रखकर प्रयास करना होगा। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की यह चार पंक्‍ति‍यां इस सन्दर्भ में उल्‍लेखनीय हैं –
"सांध्‍य रवि बोला कि लेगा काम अब यह कौन,
सुन निरुत्‍तर छबि लिखित सा रह गया जग मौन,
मृत्तिका दीप बोला तब झुकाकर माथ,
शक्ति मुझमें है जहां तक मैं करूंगा नाथ।।"
आज की भाषिक चुनौतियाँ पहले की तरह नहीं हैं। तमाम उम्मीदों, आकाक्षों और कामनाओं के बावजूद, हिंदी भाषिक चुनौतियों से वंचित नहीं है। इक्कीसवीं सदी में समन्वित भाषा की आवश्यकता बढ़ी है। हिंदी को इन मानदण्डों पर खरा उतरना होगा। भाषिक मनोवृति में बदलाव लाने की एवं हिंदी को समन्वित दिशा की ओर अग्रसित करने की जरूरत है । 
हमारे समक्ष अब यह प्रश्न हैं -
(१.) क्या हमारे हिंदी शुभचिन्तक पारम्परिक सोच में परिवर्तन लाने में सक्षम हैं ? 
(२.) क्या भारतीय भाषावैज्ञानिकों में भाषिक यथार्थ की बुनियादी मान्यताओं की समझ में बढोतरी हो रही है? 
(३.) क्या हिंदी भाषा की व्यापक लोकव्यस्था वर्तमान का ही भाषिक यथार्थ मात्र है ? आखिर, युवा वर्ग नयी सम्भावनाओं की तलाश कहाँ और कैसे करे ?

'वर्तमान भ्रष्टाचार, कालेधन और व्यवस्था परिवर्तन पर संघर्ष'



भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार और कालाधन के विरुद्ध चल रहे संघर्ष में बाबा रामदेव के सेना’ तैयार करने के बयान पर अन्ना हजारे ने बाबा को नसीहत देते हुए कहा है कि हर आंदोलन अहिंसात्मक होना चाहिए।  भ्रष्टाचार और कालाधन मामले में अब तक काफी मोर्चों पर एकमत नजर आ रहे बाबा रामदेव और अन्ना हजारे में सेना तैयार करने के बयान पर पूर्ण मतभेद हैं ।
दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन के दौरान बाबा रामदेव के खिलाफ की गई पुलिस कार्रवाई के बाद हरिद्वार ने अपना अनशन जारी रखते हुए बाबा रामदेव ने कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके आंदोलन को बाधित करने वाले असामाजिक तत्वों और पुलिस से निपटने के लिए वह 11,000 लोगों की एक सशस्त्र सेना तैयार करेंगे । उन्होंने कहा, "मैं अपील करता हूं कि हर जिले से 20 युवा सामने आएं। हम उन्हें अस्त्र व शस्त्र दोनों का प्रशिक्षण देंगे।11 हजार महिलाओं और पुरुषों की मजबूत सेना तैयार करेंगे ताकि अगली बार दिल्ली के रामलीला मैदान में हम लड़ाई हारकर नहीं लौटे । सेना का गठन केवल आत्मरक्षा के लिए किया जाएगा और वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगी । सेना हमारी और अनुयायियों की रक्षा करेगी। यह किसी की जिंदगी लेने के लिए नहीं होगी ।"

हालांकि बाद में बाबा रामदेव ने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है । बाबा रामदेव भ्रष्टाचार, कालेधन और व्यवस्था परिवर्तन पर अपने अनशन से सरकार को झुकाने में असफल रहे और अब उन्होंने फैसला किया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रास्ते पर चलते हुए देश में ग्रामोद्योग और स्वदेशी की अलख जगाएंगे ।
सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे की रणनीति या बाबा रामदेव की अस्थिर-नीति के सन्दर्भ में विचार करते हुए निम्नलिखित विचार-बिन्दुओं को अवश्य परखना होगा.....
अन्ना और रामदेव की समानताएं :-
१. दोनों ही सज्जन देशहित के लिए आंदोलनरत हैं |
२.दोनों ही व्यक्ति का व्यक्तित्व निष्कलंक है |
३.दोनों ही व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जन जाग्रति ला रहे हैं |
४.दोनों ही व्यक्ति संविधान की मर्यादा के अन्दर काम कर रहे हैं |
५.दोनों का उद्देश्य भ्रष्टाचार से त्रस्त भारतीयों को सही राह पर ले जाना है |
६.दोनों ही सज्जन लम्बी लड़ाई का संकल्प ले चुके हैं |
७.दोनों ही लोगों की ताकत आम जनता है |
८.दोनों ही सज्जन लुच्चे नेताओं के चक्रव्यूह में घिरे हुए हैं |
९.दोनों के सफल प्रयास के बाद भी जनता आँख मीच कर झूठे नेताओं के दांतों तले दबी बेबस ,लाचार है |
अन्ना हजारे की खासियत :-
१.अन्ना हजारे परिपक्व, अनुभवी व्यक्ति हैं |
२.अन्ना जानते हैं की उन्हें क्या ,कब, कैसे करना है |
३.अन्ना सहज,शांत,निडर एवं साहसी हैं |
४.अन्ना उपदेश नहीं देते ,मगर कार्यरत रहते हैं |
५.अन्ना टीम के लीडर नहीं एक हिस्सा बने रहते हैं |
६.अन्ना की टीम सुशिक्षित ,मीतभाषी और अनुशासित है |
७.अन्ना जनता की ताकत और सरकार के जुल्म करने की ताकत को बहुत करीब से जान पा रहे हैं.
८.अन्ना का आदर्श महात्मा हैं. वे अनुयायी के रूप में प्रस्तुत होते हैं |
९.अन्ना शान्ति से सच्चाई के बम्ब बरसाते हैं उनके विरोधी बेबस हैं |
१०.अन्ना अपरिग्रही ,सच्चे आग्रही हैं |
रामदेव की खासियत :-
१.रामदेव विकसित होता बचपन है |
२.रामदेव यह जानते हैं की क्या करना है मगर कैसे करना है इस बात को अनुभवों से सीख रहे हैं |
३.रामदेव तुरंत परिणाम चाहने वाले, अति आत्मविश्वासी हैं |
४.रामदेव काम जनहित का करते हैं परन्तु खुद का यश भी चाहते हैं |
५.रामदेव स्वयंभू लीडर हैं और टीम भी नयी है |
६.रामदेव घाघ ,चालाक और धूर्त नेता नहीं हैं,सरल सन्यासी हैं |
७.रामदेव जोश से लबालब हैं मगर समय की गति को सही समय पर पकड़ना सीख रहें हैं |
८.रामदेव अभी अपना आदर्श तय कर रहे हैं |
९.रामदेव परशुराम की तरह आतंकियों पर टूट पड़ना चाहते हैं |
१०.रामदेव की ताकत सिर्फ इनके अनुयायी हैं, जो योग सीख रहें हैं |

सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे की रणनीति या रामदेव की अस्थिर-नीति की समानताएं :--
(१) दोनों का लक्ष्य एक ही है -भ्रष्टाचार मुक्त भारत |
(२) दोनों का शिकार एक ही है- देश को खोखला करने वाले नमकहराम नेता |
(३) दोनों का उद्देश्य एक ही है-विकसित और सभी का भारत |
(४) दोनों की रणनीति है रिश्वत खोर नेताओं का अंत लाना |
(५) दोनों के तरीको में फर्क सिर्फ अनुभव का है |
(६) दोनों का कोई निजी हित नहीं है, दुराग्रह तब होता है जब निजी स्वार्थ हो, दोनों ही नेता जनता के लिए लड़ रहें हैं |
(७) दोनों का सपना एक ही है -सच्चे स्वरूप में स्वतंत्रता |
(८) दोनों का आग्रह संविधान को मजबूत करना है |
(९) सरकार की नजर में दोनों सोई हुई जनता को भड़काने वाले आततायी हैं मगर ज्यादातर भारतीयों की नजर में अपने -अपने तरीके से युद्ध में उतरे योद्धा हैं ||
भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रहे वर्तमान संघर्ष में जुटे समाजसेवी अन्ना हजारे ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बयानों को बेतुका बताते हुए कहा कि उन्हें पुणे के पागलखाने भेज देना चाहिए। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इससे पहले समाजसेवी अन्ना हजारे पर आरोप लगाया था कि अन्ना हजारे संघ के आदमी हैं।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के खिलाफ बयानों की झड़ी लगा दी है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह कभी बाबा रामदेव को ठग बताते हैं तो कभी कहते हैं कि उनका मुख्य धंधा हवाला के जरिए पैसों की हेरा-फेरी करना है। हाल ही में उन्होंने अन्ना हजारे के बारे में कहा कि वह संघ के आदमी हैं। इस आरोप पर अन्ना हजारे ने कहा, ' पुणे के येरवदा में एक पागलखाना है। दिग्विजय सिंह को वहीं बंद कर देना चाहिए।
यह भी एक विचार उभर कर आ रहा है कि ईमानदार प्रधानमन्त्री श्री.मनमोहनसिंह के रहते यदि भ्रष्टाचार का भयावह वातावरण पनपता है तो फिर क्यूँ न कोई अत्यंत-भ्रष्ट व्यक्ति को शासन की बागडोर सौंपी जाये, परिणामस्वरूप शायद राम राज्य वापस आ जाए ?

भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर सरकार के विरुद्ध आन्दोलन की आवश्यकता क्यों पड़ी ? बाबा रामदेव जी व् अन्ना जी को जनसमर्थन क्यों मिला ? जब वर्तमान सरकार के घोटालो की लाइन खुलने लगी ,फिर भी विपक्ष जन रोष व् भावनाओ को पहचान नहीं पाया ! तब गैर राजनैतिक लोगों के राजनैतिक आन्दोलन की चिंगारी को जनता ने हवा देदी ! सबसे पहले बाबा रामदेव जी ने जनता की आवाज को अपना स्वर दिया ! जनता की भीड़ को सरकार भी अनदेखा नहीं कर सकी , तब रामदेव जी के आन्दोलन की हवा निकालने के लिए उनके नए सहयोगी अन्ना जी को ही खड़ा करवा दिया गया | उनकी मांग को “चटपट ” सरकार ने स्वीकार करने का दिखावा किया ! बाद में उनको भी किनारे लगा दिया ! अब सरकार कहती है अब कोई सोसाइटी की बाते नहीं मानी जाएँगी , वह मात्र एक अपवाद था !श्री अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे इस जन-आक्रोश को व्यक्त करने केलिए आगे आए हैं। स्वाभाविक ही सारा जनमानस उनके पीछे है। ऐसे में उस जनमानस की विनयपूर्वक व सहृदयता से दखल लेने की बजाए रामलीला मैदान पर किए गए तानाशाही लहजे में दमनचक्र चलाना शासन की नासमझी और अड़ियलपन को ही व्यक्त करता है।  इस रवैये को छोड़कर शासन आंदोलनकारियों के साथ छल-कपट रहित संवाद बनाकर देश से बाहर गए काले धन को वापस लाने एवं बढ़ते जा रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने और व्यवस्थाओं में उचित परिवर्तन लाने तथा उसके लिए कानून में उचित संशोधन करने पर अधिक ध्यान दें । दरअसल वर्तमान सरकार भ्रष्टाचार के भवंर में बुरी तरह फंस चुकी है। इस भंवर से निकलने की उसकी हर चाल नुकसानदेह साबित हुई है | आज भी कुछ लोग चिल्ला रहे हैं की अगर हम सुधर गए तो भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा ऐसे लोगो सिर्फ चिल्लाना आता है मेरी इन लोगों से यही प्रार्थना है कि पहले तुम सुधर जाओ और अपने आस पास भी देखते रहो | क्या लोगों को नहीं मालूम हम घूस नहीं देंगे तो कौन लेगा परन्तु ये सिर्फ एक व्यक्ति के बस क़ी बात नहीं है |
आप सभी से अनुरोध है की सच्ची और ईमानदार सरकार बनाये और हमारा धन विदेश से वापस कर दे जिससे हमारा देश और तरक्की करेगा?
!! जय हिंद,जय हिंदी !!

शनिवार, 25 जून 2011

एक आदर्श 'लोकपाल विधेयक'



भारतीय संविधान कानूनों की एक किताब मात्र नहीं है । यह भारतीय राष्ट्र का संघीय आधार पर राज्य और राजनीति के चरित्र को निर्धारित करने वाला एक मौलिक ओर महत्वपूर्ण दस्तावेज है। भारतीय संविधान की प्रारम्भिक उदघोषणा और इसका चतुर्थ भाग, जिसे निदेशक सिद्धान्त कहा गया है, सर्वाधिक महत्व की संविदा है। इसमें समाजवाद और समता मूलक मानव विकास की मूल अवधारणा निहित है । जब हम और हमारा प्यारा देश भारत १५ अगस्त, १९४७ को आजाद हुए तो उससे पहले से ही संविधान सभा हमारे देश भारत का लागू होने वाले संविधान को बनाने के काम में जुटी हुई थी । यही संविधान २६ जनवरी, १९५० से गणतंत्र भारत में लागू हुआ । भारतीय संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट रूप से कहा गया- "हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक त्याग सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बनाने के लिये वृत्र संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं |" 

इस संविधान के रचनाकार और बनाने वाले हमारे भारत के तत्कालीन कर्णधार ही तो थे । संविधान के अंतर्गत आर्थिक और राजनैतिक सम्प्रभुत्ता का अर्थ था कि भारत के तत्कालीन कर्णधार कैसा विकास चाहते हैं ? यह भी हम भारतीय जनमानस को ही तय करना था। यह ऐसा विकास होना चाहिये था जिससे सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय मिलता है ।
भारतीय नागरिकों के जगभग छ: दशकों के कटु अनुभव ने इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि जिस प्रतिनिधि मूलक जनतांत्रिक प्रणाली के ढांचे को संविधान के अन्तर्गत निर्मित संस्थाओं के द्वारा सारे देश को चलाया जा रहा है, वह न सिर्फ पूरी तरह विफल हो चुका है बल्कि जिस जनता के लिये इस देश के संविधान की रचना की गयी वह उसके खिलाफ चला गया । भारतीय-संविधान को जनता के हक में लागू करने के लिये जिस केन्द्रीयकृत व्यवस्था का सहारा लिया गया उसमें आम जनता की भागीदारी को बिल्कुल समाप्तप्राय: हो गयी । प्रतिनिधि मूलक प्रजातांत्रिक प्रणाली ने एक नये प्रकार की संवैधानिक निरंकुशता को आम आदमी पर थोपना शुरू कर दिया । आज भारतीय संविधान में आम आदमी की भूमिका लोकतंत्र के नाम पर चलने वाले खेल के सदृश्य चुनाव में वोट डाल कर एक सरकार चुनने से ज्यादा कुछ भी नही रहीं है । भ्रष्टाचार करके कमाए गए काले धन और बाहुबल को सरकार बनने, बदलने और चुनाव जीतने का लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल ने अपना मुख्य साधन एवम औजार बना लिया है । वर्तमान में चल रही इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को कुछ विद्वान् लोगों द्वारा और मज़बूत करने के विषय में की जाती रही है क्योंकि अच्छे विचारों का सदैव स्वागत होना चाहिए | इस देश की समस्त जनता की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई भी अब "लोकपाल बिल"के जनप्रतिनिधियों पर निर्भर है और निर्माण समिति 'सिविल सोसायटी' के लगभग सभी सदस्यों पर एक साथ कोई न कोई आरोप लगना भी किसी साजिश की तरफ इशारा करता है |
एक वर्ग का यह मानना है कि जब तक भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) है, भारत से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता है | जब यह अनुच्छेद ३९(ग) समाप्त होगा तब ही वास्तविक अर्थों में लोकतान्त्रिक भारत, भारतीय जनता और सत्य की विजय होगी | वास्तव में राज्य की स्थापना का उद्देश्य प्रजा के जान-माल की रक्षा करना है | अनुच्छेद ३९(ग) के अधीन राज्य प्रजा को स्वयं लूटता है | भारतीय संविधान के उद्देशिका में समाजवादी शब्द ३-१-१९७७ को जोड़ा गया और १९९१ में बिना संशोधन के अपना टनों सोना बिकने के बाद मुद्रा का २३% अवमूल्यन करके देश बाजारी व्यवस्था पर उतर आया था |
इस अवमूल्यन के बाद इसका बहुत विरोध हुआ फिर भी यह अनुच्छेद ज्यों का त्यों इसलिए बना हुआ है, क्यूंकि इस अनुच्छेद का सहारा लेकर तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार जिसकी सम्पत्ति चाहती है, लूट लेती है | सर्वहारा वर्ग के समर्थक कार्ल मार्क्स ने सम्पत्ति का समाजीकरण किया था, वह भी अनुच्छेद ३९(ग) के कारण विफल हो गया | आइये अब  तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा निरीह जनता को लूटने का तरीका देखें:-

(१) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या ऐसा लोकसेवक है या था  जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकेगा, अन्यथा नहीं, किसी ऐसे अपराध का अभियोग है जिसके बारे में यह अभिकथित हो कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं कर सकता है |
(२) जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग)  तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को जनता को लूटने का असीमित अधिकार देता है, वहीँ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन लोकसेवक के लूट को अपराध तब तक नहीं माना जाता, जब तक लोकसेवक लूट कर  तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को हिस्सा देता है | अतएव भ्रष्टाचार के लिए भारतीय संविधान उत्तरदायी है, लोकसेवक नहीं होगा |
(३) जनता के पास अपने लूट के विरुद्ध शिकायत करने का भी अधिकार नहीं है | ऐसा प्रतीत होता है जनता को लूटने के लिए ही कुछ जजों और लोकसेवकों को नियुक्त किया गया है | भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के अधीन यदि लोकसेवक की इच्छा भ्रष्टाचार करना हो तो उसका संवैधानिक कर्तव्य है |

(४) भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३१ प्रदत्त सम्पत्ति के जिस अधिकार को हमें गुलामी की दस्ता में जकड़ने वाली ब्रिटिश हुकूमत और संविधान सभा के लोग न छीन पाए ओर उसे स्वतंत्र भारत के भ्रष्ट प्रशासन ने मिल कर लूट लिया और अब तो इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान से ही मिटा दिया गया है, इसे कोई भ्रष्टाचार नहीं मानता! (ए आई आर १९५१ एस सी ४५८)
हम भारत के जागरूक नागरिक, भारतीय संसद से मांग करते हैं कि लोकपाल बिल पर चर्चा करने के पहले भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३१ पुनर्जीवित किया जाये | भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ व १९७ समाप्त किया जाये | यदि हमारे जागरूक भारतीय बंधू भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं तो संविधान के उपरोक्त अनुच्छेद ३९(ग) को संविधान से हटाने, अनुच्छेद ३१ को पुनर्जीवित करने और धारा १९७ को भी हटाने में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान करें |
लोकपाल विधेयक पर बहस और विरोध का नाटक जनता का ध्यान तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के लूट और वैदिक सनातन धर्म को मिटाने के प्रयत्न को छिपाने के लिए, चल रहा है | सर्वविदित है कि भारतीय संविधान सर्वोपरि है, अतएव भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के प्रभाव में रहते भ्रष्टाचार नहीं मिटाया जा सकता | यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि वैदिक राज्य में चोर, भिखारी और व्यभिचारी नहीं होते थे | ब्रिटिश हुकूमत के प्रतिनिधि लॉर्ड मैकाले ने स्वयं २ फरवरी १८३५ को इस बात की पुष्टि की है | लेकिन तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार ही चोर है | तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को चोर कहना राज्य के विरद्ध भारतीय दंड संहिता के धारा १५३ व २९५ के अंतर्गत अपराध है और संसद व विधानसभाओं के विशेषाधिकार का हनन भी है | लोकतंत्र और प्रजातंत्र की आत्मा के विरुद्ध जो भी इस सच्चाई को कहे या लिखेगा, उसे तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ में जेल भिजवा देगी |
तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के संरक्षण, संवर्धन व पोषण की भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५९ के अधीन शपथ लेते है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ द्वारा जो राज्यपाल कुछ भ्रष्ट लोकसेवकों को संरक्षण देने के लिए विवश हैं और जजों ने भी जिस अनुच्छेद ३९(ग) को बनाये रखने की शपथ ली है, (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची, प्रारूप ४ व ८), से निकृष्ट भ्रष्टाचारी कौन हो सकता है ?
श्री अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी ने इस सन्दर्भ में लिखा है कि "उपरोक्त कानूनों के प्रभाव के कारण सोनिया ने गोरखपुर, उत्तर प्रदेश स्थित हुतात्मा राम प्रसाद बिस्मिल जी के स्मारक की ३.३ एकड़ भूमि ३३ करोड़ रुपयों में बेंच दी. उस स्थल पर बिस्मिल जी की मूर्ती और पुस्तकालय तो है, लेकिन राजस्व अभिलेखों से बिस्मिल जी के स्मारक का नाम गायब है. इसी प्रकार मेरी पैतृक भूमि के राजस्व अभिलेखों को मिटा दिया गया. इस पत्रिका मै इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो आदेश संलग्नक १ व २ प्रमाण के लिए उपरोक्त लिंक पर उपलब्ध हैं. दोनों ही मामले तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के शासन में आने के बाद से ही प्रेसिडेंट एपीजे अबुल कलाम व प्रतिभा के संज्ञान में हैं |
राजस्व लोकसेवकों ने अभिलेखों में जालसाजी कर मेरा ही नहीं, हुतात्मा रामप्रसाद बिस्मिल का नाम भी गायब कर दिया. जिसके बलिदान के कारण प्रतिभा जैसी आर्थिक ठगिनी प्रेसिडेंट बनी, जब उसे ही नहीं छोड़ा, तो तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार किसे छोडेंगी? जिन राजस्व अभिलेखों के आधार पर जज ने सन १९८९ में मेरा कब्जा माना, ई० सन १९९४ से उन अभिलेखों से भी मेरा नाम हटा दिया गया है. मेरा तो वाद भी चला. लेकिन हुतात्मा का वाद न लखनऊ उच्च न्यायालय चला और न इलाहबाद. पूर्व राष्ट्रपति के संज्ञान में होने के बाद भी तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार ने स्मारक लूट लिया. जज या नागरिक लोकसेवकों का कुछ नहीं बिगाड़ सके, क्योंकि उन्हें राज्यपाल बनवारी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन संरक्षण देने के लिए विवश हैं. इस प्रकार भारतीय संविधान ही भ्रष्ट है |

देखें अनुच्छेद ३९ग और लुप्त अनुच्छेद ३१..
लोकपाल कानून धोखा है. न जाने कब बनेगा? लेकिन बिस्मिल जी का और मेरा मामला सिद्ध है. राजस्व कर्मियों ने राजस्व अभिलेखों में जालसाजी की है. इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने जांच में स्वीकार किया है. लेकिन तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के पास जनता को लूटने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) से प्राप्त हुआ है. सोनिया के लिए जो लोकसेवक जनता को लूट रहे हैं, उन के विरुद्ध अभियोग चलाने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है. और जब तक अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ का वर्चस्व रहेगा, न्यायपालिका का प्रभाव शून्य है. जब जज ही असहाय है तो लोकपाल क्या कर लेगा? सोनिया की डकैती निर्बाध चलती रहेगी. सन १९८९ से आज तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय अपने आदेशों का अनुपालन न करा सका और न करा ही सकता है | भारतीय संविधान, जिसके अनुच्छेद ३९(ग) के संरक्षण, संवर्धन व पोषण की राज्यपालों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५९ के अधीन शपथ ली है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ द्वारा जो राज्यपाल भ्रष्ट लोक सेवकों को संरक्षण देने के लिए विवश हैं और जजों ने भी जिस अनुच्छेद ३९(ग) को बनाये रखने की शपथ ली है, (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची, प्रारूप ४ व ८), से निकृष्ट भ्रष्टाचारी कौन हो सकता है ? उपरोक्त स्थिति को लोकपाल विधेयक से जुड़े अन्य लोग भले न जानते हों, कानूनविद शांति भूषण भली भांति जानते हैं, मै उन्हें ४ अप्रैल से लगातार लिख रहा हूँ, फिर भी मीडिया और शांति भूषण जनता को मूर्ख बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. शांति भूषण न्याय मंत्री भी रहे हैं और कानून विद भी हैं | मुझे उनसे जवाब चाहिए कि वे देश को क्यों ठग रहे हैं ?" 
साभार--(http://www.aryavrt.com/)


संविधान के अंतर्गत प्रजातंत्र, जनतंत्र, लोकतन्त्र, तीनों के अर्थ लगभग एक है। इनकी ध्वनि में कुछ भिन्नता अवश्य है । इन सभी में प्रजा पुराना शब्द है। इसके अतिरिक्त ‘जनतंत्र’ अथवा ‘लोकतंत्र’ की ध्वनि ऐसी है कि प्रतीत होता है कि जन अथवा लोक खुद राज्य संचालन तथा प्रशासन में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं । इस प्रकार की जिस प्रतिनिधिमूलक जनतांत्रिक प्रणाली व्यवस्था में किसी देश की सरकारें चल रही है उसमें जन अथवा लोक की राज्य संचालन तथा प्रशासन में कोई सक्रिय भूमिका संभव नही हैं ।पूर्व भारतीय केन्द्रीय सरकारों ने जन आकांक्षाओं के काफी नजदीक संविधान के 72 वें और 74 वें संशोधन के जरिये एक नये सामाजिक ढांचे की परिकल्पना की कोशिश की है । संविधान में अध्याय 9 और ९(अ) जोड़कर हुए एक विकेन्द्रित शासन-प्रशासन प्रणाली का बीज बोया गया परन्तु परवर्ती सरकारों को इन्हें लागू करने का दायित्व मिला, वे किसी भी कीमत पर अपनी हाथों में समाई हुई ताकत को जनता के हाथों में सौंपने को तैयार नही हैं ।जनभागीदारिता व जवाबदेही पर आधारित राजनीति के इस प्रयोग को अगर देश की जमीन पर सफलतापूर्वक उतार लिया गया तो एक ऐसे विकास का द्वारा खुल सकता है जो लूट खसोट, भ्रष्टाचार व मुनाफे पर आधारित नही रहेगा और रोजगार के अवसर मुहैया कराने से लेकर विकास के लाभ को जनता के पास तक पहुंचाने का काम करेगा। 

ऐसी चर्चा है कि वर्तमान समय में विदेशों में भारतीय भ्रष्टाचारी बहादुरों द्वारा जमा किया गया काला धन 45,000 करोड़ से लेकर 84,000 करोड़ के बीच होगा, भारतीय सरकार के पास ऐसे पचास लोगों की सूची आ चुकी है, जिनके पास टैक्‍स हैवेन देशों में बैंक एकाउंट हैं, लेकिन सरकार ने अब तक मात्र २६ लोगों के नाम ही अदालत को सौंपे हैं | एक गैर सरकारी अनुमान के अनुसार सन १९४८ से सन २००८ तक के बीच भारत अवैध वित्तीय प्रवाह (गैरकानूनी पूंजी पलायन) के चलते कुल २१३ मिलियन डालर की राशि गंवा चुका है | भारत की वर्तमान कुल अवैध वित्तीय प्रवाह की वर्तमान कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर के आसपास आंकी गई है, जो लगभग २० लाख करोड़ के बराबर है, यानी भारत का इतना काला धन दूसरे देशों में जमा है | यही कारण बताया जा रहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट से बराबर लताड़ खाने के बाद भी देश को लूटने वाले का नाम उजागर नहीं कर रही है | वर्तमान समय में सामाजिक नेत्रत्व कर रहे अन्ना हजारे की संगठित समिति को बेकार साबित करने का काम सरकार के वफादार कर रहे हैं और करते रहेंगे, यह सरकार जानती है कि यह भ्रष्टाचार विरोधी संगठन अभी बाल अवस्था में है | योगगुरु बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी अनशन को कुचलने के बाद जनता  की ओर से कोई कठोर प्रतिक्रिया नहीं देखकर सरकारी नेताओं के जोश बढ़ गए हैं | हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस विषय पर विवश है | विपक्ष में बैठे हुए राजनीतिक दल तेल और तेल कि धार देखने तथा नए समीकरण पर नजर बनाए हुए है | सामाजिक संगठन मौन है ओर अब इस परिस्थिति में अन्ना हजारे का संगठन १६ अगस्त,२०११ से अनशन कर सकता है | इस आगामी अनशन की ताकत क्या होगी, यह तो समय के गर्भ में है | लेकिन जन जाग्रति के लिए अन्ना हजारे को अभी से तैयारी करनी होगी जिससे आम आदमी को नुक्सान नहीं हो |
उपर्युक्त सन्दर्भ में प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य केवल यही है कि आने वाला 'लोकपाल विधेयक' एक आदर्श प्रारूप एवम त्रुटियों से रहित हो और वर्तमान भ्रष्टाचारी वातावरण पर अंकुश लगाया जा सके, जिससे भारत की जनता को राहत मिल सके.......


उठो !!! जागो !!!! विद्रोह की ज्वाला-लहर बन जाओ, जब तक भ्रष्ट्राचार को मिटाने की लड़ाई जीत नहीं लेते तब तक गर्जना करते रहो; देश पर मरने मिटने का संकल्प करते रहो || निश्चित ही आपको आपका लक्ष्य मिल ही जाएगा इस सत्य पर कोई संदेह करने की बात नहीं है |||
"जय हिंद,जय हिंदी"

शुक्रवार, 24 जून 2011

"आदर्श सूक्तियां और अनमोल वचन"



इस संसार के अनेकानेक विद्वानों ने जीवन उपयोगी बाते कही हैं जिन्हें हम साधारण भाषा में अनमोल वचन कहते हैं अर्थात ऐसी बातें जो अनमोल हैं और जिनके द्वारा हम अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। इनें सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित) भी कहते हैं । इन वचनों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातो का निष्कर्ष समझेगें तो हम पायेंगे की इन बातो का कोई मोल नहीं लगा सकता,यह वचन अमूल्य हैं | केवल इन बातो को अपने जीवन में अपनाकर, अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का भी कभी कोई मोल लगा सकता हैं ये बातें तो अनमोल होती हैं ।
'मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ , वह कहो जो तुम जानते हो , महापुरुषों और बुद्धिमानो की बुद्धिमता और संघर्षपूर्ण अनेक सीखों से भरे जीवन का अनुभव "आदर्श सूक्तियां और अनमोल वचन" में संग्रह किया जा सकता है'

(१) सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फकीर ।
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर ।
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान । वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान ।
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान ।अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान ।।
(२) अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं ।
(३) कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है ।
(४) हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है ।
(५) बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है ।
(६) हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है |
(७) यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते |
(८) अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है |
(९) मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है ।
(१०) अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता ।


(११) मुस्कान प्रेम की भाषा है ।
(१२) सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है ।
(१३) अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता ।
(१४) अल्प ज्ञान खतरनाक होता है ।
(१५) कर्म सरल है, विचार कठिन ।
(१६) उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन ।
(१७) धन अपना पराया नही देखता ।
(१८) पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।
(१९) संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
(२०) हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं ।लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।
(२१) उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता ।

संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----

(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी 
 )
(२) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ जाता है )
(३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं )
(४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
(५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । )
(६) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
(७) अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
(८) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
(९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
(१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
(११) अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
(१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
(१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
(१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
(१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । )
(१६) मधुरेण समापयेत्‌.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
(१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
(१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
(१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌.
( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
(२०) सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । )

(२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । )
(२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२

महापुरुषों एवम संतों के अनमोल वचन-----

(१) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी —–महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
( जननी ( माता ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
(२) जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है – विवेकानन्द
(३) कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय । उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय।। —-सन्त कबीर
(४) ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। —-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी )
(५) तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय ।
ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय ॥
(६) कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। -गुरू नानक
(७) प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। --ईसा मसीह
(८) जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
(९) ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं ।
(१०) यदि सज्जनो के मार्ग पर पूरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले । सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
(११) कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नही है । प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है ।— लांगफेलो
(१२) दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत । इंसान जरा सैर करे , घर से निकल कर ॥ — दाग
(१३)विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते ।— आगस्टाइन
(१४) दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा
(१५) डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी
(१६) जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। -अज्ञात
(१७) अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का । — डॉ. तपेश चतुर्वेदी
(१८) ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा ।–विनोबा
(१९) विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है ।–रवींद्रनाथ ठाकुर
(२०) आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी
(२१) पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
(२२) उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।–अज्ञात
(२३) विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है । - अज्ञात
(२४) गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। - सादी
(२५) जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । - रामकृष्ण परमहंस

(२६) मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी
(२७) जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी
(२८) देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
(२९) दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात
(३०) चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र नाथ ठाकुर
(३१) जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३२) चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा
(३३) अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
(३४) खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र
(३५) लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है । -मुक्ता
(३६) अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध
(३७) मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३८) प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३९) मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है । -गौतम बुद्ध
(४०) स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! -लोकमान्य तिलक
(४१) त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ
(४२) दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। -प्रेमचंद
(४३) अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद
(४४) द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा
(४५) सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना । - डा शंकर दयाल शर्मा
(४६) सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद
(४७) सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । - सरदार पटेल
(४८) तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
(४९) भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है। - रत्वान रोमेन खिमेनेस
(५०) हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।— बेन्जामिन
(५१) हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।— अनोन
(५२) कीरति भनिति भूति भलि सोई , सुरसरि सम सबकँह हित होई ॥— तुलसीदास
(५३) स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं ; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे ।— अलबर्ट हबर्ड
(५४) अपने उसूलों के लिये , मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ , लेकिन किसी को मारने के लिये , बिल्कुल नहीं।— महात्मा गाँधी
(५५) विजयी व्यक्ति स्वभाव से , बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।— प्रेमचंद
(५६) अतीत चाहे जैसा हो , उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं ।— प्रेमचंद
(५७) अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो |-– थियोडॉर रूज़वेल्ट
 
(५८) आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता |-– जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
(५९) स्वास्थ्य के संबंध में , पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है । — मार्क ट्वेन
(६०) मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय ।— श्रीराम शर्मा , आचार्य
(६१) जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।- महात्मा गांधी
(६२) स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं ।
— महर्षि चरक
(६३) यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं– हैरी एस. ट्रूमेन
(६४) श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है |-– काउन्ट रदरफ़र्ड
(६५) उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं । -गौतम बुद्ध
(६६) कबिरा आप ठगाइये , और न ठगिये कोय । आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुख होय ॥ — कबीर

(६७) प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है. एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है |– अलफ़ॉसो कार
(६८) जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती । — विनोबा
(६९) मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है । — स्वामी विवेकानन्द
(७०) अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। - जानसन
(७१) मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। - अरुंधती राय
(७२) अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की | — जोसेफ एडिशन
(७३) पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं ; न ही कोई खुशी , उतनी स्थायी । — जोसेफ एडिशन

(७४) सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है | — डबल्यू एच ऑदेन
(७५) पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है, किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | -– रे ब्रेडबरी
(७६) पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती। - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
(७७) यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है । — एमर्शन
(७८) किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं । –अज्ञात

(७९) चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन
(८०) हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है |हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। - विनोबा
(८१) भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव

(८२) ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते | -– नवाजो
(८३) जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए | -– कनफ़्यूशियस
(८४) सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है । –संत तिस्र्वल्लुवर

(८५) यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें | महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है । — इमन्स
(८६) जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डांवांडोल स्थिति में रहना । — सुभाषचंद्र बोस!
(८७) जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो । –इंदिरा गांधी
(८८) विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है । --अज्ञात
(८९) मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है | – वेदव्यास
(९०) इच्छा ही सब दुःखों का मूल है | -– बुद्ध
(९१) भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है ? - गाथासप्तशती
(९२) स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके । –आचार्य तुलसी
(९३) माया मरी न मन मरा , मर मर गये शरीर । आशा तृष्ना ना मरी , कह गये दास कबीर ॥ — कबीर

(९४) कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं । — प्रेमचंद
(९५) आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता । –चाणक्य
(९६) जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता । — माघ्र
(९७) जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं । –रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(९८) जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो , वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये । — कुमार सम्भव

(९९) विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है । –अज्ञात
(१००) मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता | –चाणक्य
(१०१) आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता । –पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
(१०२) कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं । –लोकमान्य तिलक
(१०३) प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं । — अज्ञात
(१०४) जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये | — वेदव्यास
(१०५) जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं । –गौतम बुद्ध
(१०६) वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
(१०७) अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । –महादेवी वर्मा
(१०८) जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय | — सम्पूर्णानंद
(१०९) बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । — यशपाल
(११०) कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है । — वीर सावरकर

(१११) जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) । — भर्तृहरि
(११२) मनुष्य कुछ और नहीं , भटका हुआ देवता है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
(११३) मानव तभी तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
(११४) आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , अंधकारमय बना लेते हैं। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
(११५) क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) | -– चार्ली चेपलिन
(११६) आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | -– मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
(११७) हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए | -– जेकब एम ब्रॉदे
(११८) जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है | -– रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
(११९) अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है , तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत | -– हेनरी एडम्स
(१२०) दृढ़ निश्चय ही विजय है, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है | -– जे पी डोनलेवी
(१२१) दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है |

प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं |
हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं | -- शेक्सपीयर
(१२२) दूब की तरह छोटे बनकर रहो. जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है | – गुरु नानक देव

(१२३) यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है । — सेंट ग्रेगरी
(१२४) सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है | — रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(१२५) दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है । — रामधारी सिंह दिनकर
(१२६) उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। -- तिरुवल्लुवर
(१२७) जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। -- उत्तररामचरित
(१२८) पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है । - लार्ड बायरन

(१२९) संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास । — काका कालेलकर
(१३०) जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है | – कबीर
(१३१) गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है | – शेक्सपीयर
(१३२) कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। - मृच्छकटिक
(१३३) सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। - हितोपदेश
(१३४) पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । – गौतम बुद्ध
(१३५) आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता । - भगवान महावीर
(१३६) कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे । - पंडितराज जगन्नाथ
(१३७) कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए । - दर्पदलनम् १।२९
(१३८) गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है । - वासवदत्ता
(१३९) घमंड करना जाहिलों का काम है । - शेख सादी
(१४०) तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
(१४१) मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं । — बेंजामिन फ्रैंकलिन
(१४२) जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
(१४३) आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है। - वेडेल फिलिप्स
(१४४) ‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। - स्वामी विवेकानंद
(१४५) सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है। - जार्ज बर्नार्ड शॉ
(१४६) सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है । जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ । — वेद व्यास
(१४७) सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। - लिन यूतांग
(१४८) झूठ का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा । - लीमैन बीकर
(१४९) धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है । — डा. शंकरदयाल शर्मा
(१५०) धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा । — आइन्स्टाइन

(१५१)  बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है । - अष्टावक्र


विश्वास है कि आपके जीवन में अनमोल वचनों का अमूल्य योगदान रहेगा......, अंत में यही कहना चाहता हूँ......
आत्मनो गुरुः आत्मैव पुरुषस्य विशेषतः |
यत प्रत्यक्षानुमानाभ्याम श्रेयसवनुबिन्दते ||
( आप ही स्वयं अपने गुरू हैं | क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है | )
"जय हिंद,जय हिन्दी"

गुरुवार, 23 जून 2011

'स्थापित और मान्य भ्रष्टाचार की समस्या'



वर्तमान भारतीय समाज के सामने स्थापित और मान्य भ्रष्टाचार की समस्या विकराल रूप धरे खड़ी है। यदि कुछ वर्ष और ऐसी स्थितियां रही तो यह व्यवस्थाएं इतनी विकराल हो जाएगी कि देश और समाज टूटने लगेगा । अहिंसक जनआंदोलन परिणाम ला सकते हैं और वोट से सत्ता पर जरूर प्रभाव डाला जा सकता है। इन बातों की प्रासंगिकता आज बनी हुई है, जरूरत इस बात की है कि जितना संभव हो सके आत्मविश्वास के साथ विनयशीलता बनाए रखनी चाहिए और संवाद से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। सभी के हाथों में सत्य का टुकड़ा है। संयम से ही कोई अच्छी सी तस्वीर बनाई जा सकती है ।यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जब भी सज्जन शक्ति में नेतृत्व उभरता है तो उसके विनाश में लग जाते हैं। महात्मा गांधी के साथ यही हुआ। लालबहादुर शास्त्री को भी टिकने नहीं दिया गया। जयप्रकाश नारायण के चारो तरफ इन शक्तियों का बोल-बाला रहा औरजन-नायक अपने को ठगा सा महसूस करते रहे। वर्तमान में भी सज्जन शक्ति में छोटे-बड़े नेतृत्व उभरते हैं परन्तु शीघ्र ही या तो उन्हें निष्क्रय कर दिया जाता है या फिर उन्हें भी भ्रष्टाचारी और छद्म शिष्टाचारी बना दिया जाता है । आज ऐसा साफ दिख रहा है कि भय तो किसी का रहा ही नहीं और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । अब फिर यही देखना है कि किसी में हिम्मत है, प्रशासन में घुन की तरह घुसे-जमे बैठे भ्रष्ट, नाकारा, निकम्मे लोगों को बाहर निकाल फैंकने की है ?
श्रीमदभगवदगीता में भी इसी तरह के नेतृत्व की ओर इशारा है कि जब-जब समाज में दुराचार और अनाचार का व्यवहार एक सीमा से बढ़ेगा तो शिष्टाचार को फिर से स्थापित करने के लिए समाज के अंदर से ही शक्तियां उभरती हैं। अगर आज के भारत में यह नहीं हुआ तो भारतीय समाज अवश्य ही किसी गंभीर संकट में अपने को उलझा हुआ पायेगा।
आज भारतीय समाज के बड़े वर्ग को जो न तो भ्रष्टाचारी है न भ्रष्टाचार को संरक्षण देता है | हमें यह तय करना होगा कि कब तक वह इन देशद्रोही शक्तियों का वर्चस्व सहेगा ? ऐसा कहा जाता है कि जो रिश्वत लेता है, वह तो अपराधी है ही परन्तु जो रिश्वत देता है वह भी उतना ही अपराधी है । अब हमें यह समझने की बात यह है कि जो इस रिश्वत के लेन-देन का विरोध नहीं करते उनका भी कहीं-न-कहीं अपराध में योगदान है। यह एक निर्विवाद सत्य है कि पाप न करना धर्म का अनुपालन है, परन्तु पाप का विरोध करना धार्मिक कर्तव्य हो ऐसा दायित्व प्रत्येक भारतीय का होना चाहिए।
महात्मा गाँधी,जयप्रकाश नारायण और वर्तमान में बाबा रामदेव,सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे या अन्ना जैसे लोग आंदोलन करके अपनी कुछ बातें मनवा तो सकते हैं लेकिन भ्रष्ट नेताओं को सुधार नहीं सकते हैं। यदि वह नहीं सुधरेंगे तो भारतीय राजनीति नहीं सुधरेगी और भारतीय राजनीति नहीं सुधरेगी तो फिर भारतीय भ्रष्टाचारी व्यवस्था सुधरने का तो प्रश्न ही नहीं है । यदि वास्तव में हम सबको व्यवस्था बदलनी है तो या तो जनता द्वारा जनक्रांति कर भ्रष्टाचारी व्यवस्था का तख्ता पलट कर दे और सारी शक्ति अपने हाथ में ले ले और यह एक आदर्श नेतृत्व से ही हो सकता है, अन्यथा भारतीय राजनीति से भ्रष्ट लोगों का अस्तित्व ही मिटा दिया जाए । भारतीय राजनीति में अच्छे लोग आएंगे तो उन्हें सुधारने की जरूरत नहीं पड़ेगी और न ही किसी जनवादी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी। आप सभी शांत मन से विचार कीजिये कि समर्पित अन्ना हजारे या अन्य समर्पित देशभक्त जो भ्रष्टाचार खत्म करने की लड़ाई लड़ रहे हैं... इसी निष्ठां और समर्पण के व्यक्ति केन्द्रीय सत्ता में होते तो देश का वातावरण और परिदृश्य कुछ और ही होता |
"जय हिंद,जय हिंदी"

बुधवार, 15 जून 2011

'चन्द्रग्रहण का मानव पर असर"



विक्रमी संवत २०६८ में पृ्थ्वी पर कुल पांच ग्रहण घटित होने का संयोग बना है | इन्हीं पांचों ग्रहणों में से एक ग्रहण चन्द्रग्रहण है. यह चन्द्रग्रहण १५ जून,  २०११, बुधवार के दिन होगा | आज १५ जून को लगने वाले खग्रास चंद्रग्रहण बुधवार को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को १५ और १६ जून की मध्यरात्रि को संपूर्ण भारत में खग्रास के रूप में दिखाई देगा। भारत में जब १५जून की रात्रि ११.५३ मिनट पर चंद्रग्रहण शुरू होगा तो पूरे भारत में चंद्रमा उदय हो चुका होगा । भारत के सभी नगरों और ग्रामों में १५जून को शाम ७.०० से ७.३० बजे के बीच चंद्रमा का उदय हो चुका होगा। ग्रहण १६जून को प्रात: ३.३७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत के अतिरिक्त यह चंद्रग्रहण दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर, उत्तर पूर्वी रूस में दिखाई देगा। इस ग्रहण का सूतक १५जून दोपहर २.५३ मिनट से प्रारंभ हो जाएगा ।
सन २०११ में होने वालें छह ग्रहणों की श्रृंखला में सबसे पहले गत चार जनवरी को आंशिक सूर्य ग्रहण का नजारा भारत के उत्तर पश्चिम हिस्से जम्मू कश्मीर, पंजाब, दिल्ली जयपुर और शिमला में देखने को मिला था। एक जून को आंशिक सूर्य ग्रहण रह चूका है   और १५ जून को पूर्ण चन्द्र ग्रहण तथा एक जुलाई को आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। इसके अलावा २५नवंबर को आंशिक सूर्य ग्रहण और १० दिसंबर को पूर्ण चन्द्र ग्रहण होगा |
आज का चन्द्रग्रहण रात्रि ११ बजकर ५२ मिनट छह सेकेंड पर प्रारंभ होगा इसका मध्यकाल एक बजकर ४२ मिनट छह सेकंड पर और मोक्ष रात्रि तीन बजकर ३२ मिनट छह सेकेंड पर होगा। एक जुलाई को दोपहर में होने वाला आंशिक सूर्य ग्रहण भारत के किसी भी हिस्से में नही दिखाई देगा। वर्ष २०११ में होने वालें छह ग्रहणों की श्रृंखला में सबसे पहले गत चार जनवरी को आंशिक सूर्य ग्रहण कानजारा भारत के उत्तर पश्चिम हिस्से जम्मू कश्मीर, पंजाब, दिल्ली जयपुर और शिमला में देखने को मिला था। अब एक जून को आंशिक सूर्य ग्रहण और १५ जून को पूर्ण चन्द्र ग्रहण तथा एक जुलाई को आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। इसके अलावा २५ नवंबर को आंशिक सूर्य ग्रहण और १० दिसंबर को पूर्ण चन्द्र ग्रहण होगा । भारत के दक्षिण पूर्वी राज्यों केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आसाम, चीन और पूर्वी एशिया तथा पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा। 

चंद्रग्रहण के सन्दर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण:--
वहीँ वैज्ञानिकों कि राय में चन्द्र ग्रहण का लग्न एक सामान्य खगोलिक घटना है..और इसका किसी भी तरह मानव जीवन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता…आँखों पर भी इसका प्रभाव नहीं पड़ता है, और ना ही रेडियेशन का दुष्प्रभाव ही चन्द्र ग्रहण के दौरान पड़ता है..चन्द्र ग्रहण का सिर्फ चुम्बकीय प्रभाव ही पड़ता है…चन्द्र ग्रहण के बारे में जानकारों ने बताया कि ये पहली बार ऐसा है कि चाँद बिलकुल बीच में आ रहा है.यानि कि सूरज चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जा रहे है..इस वजह से इतना लम्बा चन्द्र ग्रहण लग रहा है |

चंद्रग्रहण के सन्दर्भ में ज्योतिषशास्त्र का दृष्टिकोण:--
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहण की छाया कहीं भी पड़े लेकिन भूमंडल का चुंबकीय क्षेत्र पूर्ण रूप से असंतुलित होता है। ग्रहण के समय भूमंडल का वातावरण सामान्य नहीं होता, सूर्य चंद्र से निरंतर प्राप्त होने वाली जीवनदायिनी ऊर्जा असंतुलित हो जाती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहणमाला योग का अर्थ लगातार तीन ग्रहण होना कहलाता है। इस ग्रहण का असर जनसाधारण में अशांति, आतंकवाद और बेरोजगारी तथा मंहगाई जैसे रोजमर्रा की समस्याओं से जूझने में ज्यादा असरदार साबित होगा। अधिकांश लोगों के लिए साल का मध्य भाग हाहाकार और त्राहि से भरा होगा ।ज़ब चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा तिथि को होता है। सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने से पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है तो पृथ्वी के उस हिस्से में चन्द्र ग्रहण नजर आता है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नजर आता है। पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण तथा आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास चन्द्रग्रहण लगता है।

चन्द्रग्रहण का विभिन्न  राशियों पर प्रभाव :--
इस बार लगने वाला चन्द्रग्रहण वृश्चिक राशि में लग रहा है | ग्रहण का प्रभाव अलग अलग  राशियों पर दिखाई पड़ता है जिसमे ८ राशियों पर जहा बुरा प्रभाव रहता है वही चार राशियों पर अच्छा प्रभाव  रहता है | राशियों पर प्रभाव —–
मिथुन ,कन्या ,मकर और कुम्भ राशियों के जातक के लिये ये ग्रहण शुभ रहेगा |
मेष, मिथुन, सिंह व वृश्चिक राशि के लिए मध्यम
वृष, कन्या व धनु व मकर राशि के लिए अशुभ
कर्क, तुला, कुंभ व मीन राशि वालों के लिए शुभ।
बुद्ध और शनि प्रधान लोगों को भी इस ग्रहण का लाभ मिलेगा !
इस चन्द्र ग्रहण का ९० दिनों तक शुभ या अशुभ प्रभाव जबरदस्त देखने को मिलेगा |


विभिन्न राशियों पर इस चन्द्रग्रहण का प्रभाव निम्नलिखित प्रकार से होने की सम्भावना है —
(१.)मेष राशि —-
इस राशि के व्यक्तियों को यह ग्रहण गुप्त चिन्ताएं दे सकता है. इसके फलस्वरुप मेष राशि के व्यक्तियों के खर्च बढ सकते है | 
मेष राशि के लिये ये ग्रहण मृत्युसम कष्टदायक होगा और स्वाभिमान को आहत करेगा |
(२.)वृ्षभ राशि—–
आपके लिए यह चन्द्रग्रहण शुभफलकारी रहेगा. इस ग्रहण के प्रभाव से आपको लाभ, सुख व धर्म कार्यो में आपकी रुचि में वृ्द्धि होगी | 
वृष राशि के लिये जीवन साथी के साथ तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है  |
(३.)मिथुन राशि—–
इस राशि के व्यक्तियों के लिए वैवाहिक जीवन की परेशानियों में वृ्द्धि होगी. साथ ही सावधानी से रहें, धन की हानि हो सकती है |
(४.)कर्क राशि———–
कर्क राशि के व्यक्तियों के रोग, कष्ट बढ सकते है, व्यर्थ के भय और व्यय बढने के भी योग बन रहे है | 
कर्क राशि के जातकों को बिना वजह विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है | भूमि वाहन सम्बंधित चिंता के भी योग बन रहे है |
(५.)सिंह राशि——-
सिंह राशि के लिए चन्द्रग्रहण अनुकुल फल देने वाला नहीं रहेगा. इस अवधि में इस राशि के व्यक्तियों की मानहानि की संभावनाएं बन रही है. तथा अनचाहे विषयों पर खर्च हो सकते है | 
सिंह राशि वालों को मनोव्यथा का कारक बनेगा ये ग्रहण यही नही पारिवारिक संकट भी झेलना पड़ सकता है  |
(६.)कन्या राशि —–
कन्या राशि के लिए यह समय कार्यसिद्धि के अनुकुल रहेगा. इसके प्रभाव से ग्रहण के बाद सभी मंगल कार्य पूरे होगें | 
कन्या राशि वालों के लिये ये ग्रहण शुभकारी है |
(७.)तुला राशि ——-
तुला राशि वालों को चन्द्र ग्रहण का प्रभाव शुभ रुप में प्राप्त होगा. तुला राशि के लिए धन लाभ, परन्तु व्यय भी बढेगें | 
तुला राशि के जातकों को धन और सम्मान की हानि  सहनी पड़ सकती है |
(८.)वृश्चिक राशि----
वृश्चिक राशि में ग्रहण लगने के कारण इस राशि के लोगों को सावधान रहना होगा | वृश्चिक राशि के जातकों को सावधान रहना होगा क्योकि दुर्घटना का योग बना रहा है |
(९.)धनु राशि —–धनु राशि के व्यक्ति भी सम्भावित दुर्घटनाओं से सतर्क रहें, यात्राएं करते हुए सावधानी रखें | धनु राशि में के लोगों का धन संपत्ति के नुकसान का योग बना रहा है | 
(१०.)मकर राशि ——-
मकर राशि के लिए इस चन्द्रग्रहण का प्रभाव धन हानि लेकर आ सकता है. साथ ही चोट आदि का भय बना हुआ है |
(११.)कुम्भ राशि ——
कुम्भ राशि के लिए चन्द्र ग्रहण के फल शुभ रहेगें. इसके फलस्वरुप धन लाभ, खुशियां प्राप्त हो सकती है |
(१२.)मीन राशि——–
यह चन्द्रग्रहण मीन राशि के रोग, कष्ट, खर्चों में वृ्द्धि करेगा | 
मीन राशि के लोगों को सम्मान की लड़ाई लड़नी पड़ सकती है |

पृथ्वी की छाया सूर्य से ६ राशि के अन्तर पर भ्रमण करती है तथा पूर्णमासी को चन्द्रमा की छाया सूर्य से ६ राशि के अन्तर होते हुए जिस पूर्णमासी को सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों के अंश, कला एवं विकला पृथ्वी के समान होते हैं अर्थात एक सीध में होते हैं, उसी पूर्णमासी को चन्द्र ग्रहण लगता है।
चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी का आना ही चन्द्र ग्रहण कहलाता है। चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी इस तरह से आ जाता है कि पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है और पृथ्वी सूर्य की किरणों के चांद तक पहुंचने में अवरोध लगा देती है। तो पृथ्वी के उस हिस्से में चन्द्र ग्रहण नज़र आता है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नज़र आता है।
०१.—पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण ।
०२.–आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास (उपच्छाया) चन्द्रग्रहण लगता है। ऐसा केवल पूर्णिमा के दिन संभव होता है, इसलिये चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है।
सूर्य की तपन के साथ विभिन्न हिस्सो में पड़ रही भीषण गर्मी के बीच जून के प्रथम पखवाड़े में दो ग्रहण होंगे। इसमें से १५ जून को होने वाला पूर्ण चन्द्र ग्रहण संपूर्ण भारत में दिखाई देगा जबकि एक जून को लगने वाला आशिंक सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखायी देगा। प्राचीन समय से कालगणना की नगरी उज्जैन में स्थित शासकीय जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक ने आज बताया कि 15 जून कापूर्ण चन्द्र ग्रहण पूरे देश में दिखाई देगा।
विक्रमी संवत २०६८ में पृ्थ्वी पर कुल पांच ग्रहण घटित होगें. इन्हीं पांचों ग्रहणों में से एक ग्रहणचन्द्रग्रहण है. यह चन्द्रग्रहण १५ जून, २०११, बुधवार के दिन होगा. यह ग्रहण ज्येष्ठ पूर्णिमा को १५ तथा १६जून, सन २०११ ईं की मध्यगत रात्रि को सम्पूर्ण भारत में खग्रास रुप में दिखाई देगा. इस ग्रहण का स्पर्श-मोक्ष इस प्रकार रहेगा—
१५ जून को खग्रास चंद्रग्रहण—-
दिन-बुधवार—–
ज्येष्ठा नक्षत्र, वृश्चिक व धनु राशि में—–
ग्रहण स्पर्श-रात ११.५२ बजे—-
मध्य-१.३० बजे—-
मोक्ष (समाप्त) २.३३ बजे—-
सूतक प्रारंभ- दोपहर ३.५२ बजे —–
ग्रहण की कुल अवधि ३ घण्टे ४० मिनट की है. भारत में जब १५ जून २०११ की रात्रि ११ बजकर ५३ मिनट पर यह चन्द्रग्रहण शुरु होगा. उस समय सम्पूर्ण भारत में चन्द्र उदय हो चुका होगा. भारत के सभी नगरों, में १५ जून को सायं ५:०० से सायं ७:३० बजे तक चन्द्र उदय हो जायेगा. तथा यह खग्रास चन्द्रग्रहण १५ जून की रात्रि २३ घण्टे ५३ से प्रारम्भ होकर अगले दिन १६ जून की प्रात: ३ बजकर ३३ मिनट पर समाप्त होगा.
चन्द्रग्रहण कहां कहां देखा जा सकेगा —- भारत, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप व अटलांटिक महासागर।
चन्द्रग्रहण सूतक विचार ——
इस ग्रहण का सूतक १५  जून २०११ को दोपहर २ बजकर ५३ मिनट प्रारम्भ हो जायेगा.
ग्रहण काल तथा बाद में करने योग्य कार्य ——
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मन्त्र, सिद्धि, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना कल्याणकारी रहता है. धार्मिक लोगों को ग्रहण काल अथवा 15 जून के सूर्यास्त के बाद दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए. तथा अगले दिन 16 जून को प्रात: सूर्योदय के समय पुन: स्नान करके संकल्पपूर्वक योग्य ब्राह्माण को दान देना चाहिए. धर्म सिन्धु के अनुसार, ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने परसोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।
सूतक व ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, तैल, श्रंगार आदि करना वर्जित होता है. झूठ-कपटादि, वृ्था- अलाप आदि से परहेज करना चाहिए. वृ्द्ध, रोगी, बालक व गर्भवती स्त्रियों को यथानुकुल भोजन या दवाई आदि लेने में दोष नहीं लगता है.
कुप्रभाव से ऐसे बचें —–
ग्रहण का सूतक तीन प्रहर यानी नौ घंटे पहले से शुरू होगा। सूतक और ग्रहण काल में भगवान की पूजा व मूर्ति स्पर्श नहीं करना चाहिए। ग्रहण के कुप्रभाव से बचने के लिए भगवान के नाम कास्मरण करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान व चंद्रमा से संबंधित सफेद वस्तुएं व अन्न दान करें।
ग्रहण का बाजार पर प्रभाव——
यह चन्द्रग्रहण ज्येष्ठ मास में घटित होने के कारण ब्राह्माण, राजा, राजस्त्री, महागण, मदिरा सेवन करने वालों को पीडा- कष्ट लेकर आयेगा. इसके फलस्वरुप धान्य तेज हो सकते है. ग्रहण बुधवाद के दिन होने से चावल की फसल को हानि, सोना, पीतल धातुओं में तेजी हो सकती है.
एक जून से एक जुलाई तक तीन ग्रहण पड़ेंगे। इसमें दो सूर्यग्रहण और एक चंद्रग्रहण होगा। दोनों सूर्यग्रहण तो भारत में दिखाई नहीं देंगे लेकिन १५ जून को पड़ने वाला खंडग्रास चंद्रग्रहण पूरे भारत में दिखाई देगा। ज्योतिषियों के अनुसार ग्रहण चाहे कहीं भी पड़े लेकिन एकसाथ तीन ग्रहण काहोना अशुभ है। ज्योतिषियों के अनुसार ग्रहण जहां दिखाई देता है वहीं उसका प्रभाव होता है और सूतक माना जाता है। इसलिए भारत में पड़ने वाले खग्रास चंद्रग्रहण का सूतक ही यहां माना जाएगा। इसका राशियों पर प्रभाव पड़ेगा। ग्रहण के योग से दुनिया के कई हिस्सों में प्राकृतिक प्रकोप सहित बड़ी घटनाएं घट सकती है।
दूसरा चंद्र ग्रहण – इसी तरह साल २०११ के अंत में १० दिसंबर को भी खग्रास चंद्र ग्रहण होगा। यह मृगशिरा नक्षत्र व वृष राशि में होगा। ग्रहण शाम ६ बजकर १५ मिनट पर शुरू होगा और रात ९ बजकर १५ मिनट पर समाप्त होगा। यह ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र व वृष राशि वालों के लिए अनिष्टकारी रहेगा ।

"२१ आरतियों का संग्रह"

आरती के संस्कृत और हिन्दी में अनेक पद प्रचलित है। इन प्रचलित पदों में कुछ तो बहुत ही सुन्दर और शुद्ध हैं, कुछ में काव्यतत्व और भाषा की दृष्टि से त्रुटियाँ और भूलें हैं, परन्तु इन आरतियों के भाव सुन्दर हैं एवम उनका पर्याप्त प्रचार है।  ऐसी कुछ आरतियों में से कुछ का आवश्यक सुधार के साथ आरती-संग्रह में प्रस्तुत कर रहा हूँ । इन आरतियों में आपको कुछ नये पद भी मिलेगें । नियमित रूप से पूजा करने वालों को इस आरती-संग्रह से सुविधा हो, इसके निमित्त यह प्रयास है, इसमें भगवान् के कई स्वरूपों तथा देवताओं की आरती के पद हैं। मुझे यह पूर्ण विश्वास है, आप सभी धार्मिक आस्था वाले महानुभाव एवम देवियाँ इससे लाभ उठायेगी ।
आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘आरार्तिक’ और ‘नीराजन’ भी कहते हैं। पूजा के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है,आरती से उसकी पूर्ति होती हैं। स्कन्दपुराण में कहा गया है-
"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।"
अर्थात....‘पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।’
आरती करने का ही नही, आरती देखने का भी बड़ा पुण्य लिखा है। हरि भक्ति विलास में एक श्लोक है--
"नीराजनं च य: पश्येद् देवदेवस्य चक्रिण:।
सप्तजन्मनि विप्र: स्यादन्ते च परमं पदम्।।"
आरती पूजन के अन्त में इष्ट देवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्ट देव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। 

आरती की विधि:--
आरती में पहले मूलमन्त्र (जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र)- के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगाड़े, शंख, घड़ियालआदि महावाद्यों तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुभ पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्या की बत्तियाँ जलाकर आरती करनी चाहिये।
साधारणत: पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे ‘पंचप्रदीप’ भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। कपूर से भी आरती होती है। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह 'पंचारती' कहलाती है।
पद्म पुराण में आया है- ‘कुंकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दन की सात या पाँच बत्तियाँ बनाकर अथवा रुई और घी की बत्तियाँ बनाकर शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए।’


आरती के अंग:--आरती के पाँच अंग होते हैं-
(१.)आरती के प्रथम अंग में दीप माला के द्वारा,
(२.)आरती के दूसरे अंग में जल युक्त शंख से,
(३.)आरती के तीसरे अंग में धुले हुए वस्त्र से,
(४.)आरती के चतुर्थ अंग में आम और पीपल आदि के पत्तों से और
(५.)आरती के पाँचवें अंग में साष्टांग दण्डवत से आरती करें।


यह अवश्य ध्यान रखें कि आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में चार बार, नाभि देश में दो बार, मुखमण्डल पर एक बार और समस्त अंगों पर सात बार घुमाये।
आरती के दौरान सामग्रियों का महत्त्व:--
आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।
(१.)आरती का कलश-
आरती का कलश एक ख़ास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान एकदम ख़ाली होता है। कहते हैं कि इस ख़ाली स्थान में शिव बसते हैं।यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है ।
(२.)जल-
जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
(३.)नारियल-
आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफ़ी सूक्ष्म होती हैं।
(४.)सोना-
ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडने का माध्यम भी माना जाता है।
(५.)तांबे का पैसा-
तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।
(६.)सप्त नदियों का जल-
गंगा, गोदावरी,यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज़्यादातर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी।
(७.)सुपारी और पान-
यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। पान की बेल को 'नागबेल' भी कहते हैं। नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडने वाली कडी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।
(८.)तुलसी-
आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।


(१.) श्री गणपति-वन्दन :--

"खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्।
दन्ताघातविदारितारितारिरुधिरै: सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्।।"

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा .
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा ..
एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी,
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी .
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा ..
अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया .
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..

(२.)आरती - "ॐ जय जगदीश हरे":--
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ....
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का .....
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ..
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी ....
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ..
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी ....
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ..
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता .....
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ..
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .....
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ..
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे .....
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ..
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ....
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ..
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ...
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..

(३.)आरती- "जय जगदीश हरे":--
जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे !
मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे ॥टेक॥
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी ।
अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी ॥१॥ जय०
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी ।
सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी ॥२॥ जय०
विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा ।
विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा ॥३॥ जय०
माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता ।
विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता ॥४॥ जय०
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो ।
केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो ॥५॥ जय०
राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर ।
मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर ॥६॥ जय०
सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन ।
प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन ॥७॥ जय०
आश्रय-दान दयार्णव ! हम सबको दीजे ।
पाप-ताप हर हरि ! सब, निज-जन कर लीजे ॥८॥ जय०


(४.)आरती - "जय अम्बे गौरी":--
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवजी .
बोलो जय अम्बे गौरी ..
माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को
मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको
बोलो जय अम्बे गौरी ..
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे
मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे
बोलो जय अम्बे गौरी ..
केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी
मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी
बोलो जय अम्बे गौरी ..
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती
मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति
बोलो जय अम्बे गौरी ..
शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर धाती
मैया महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती
बोलो जय अम्बे गौरी ..
चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे
मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भय दूर करे
बोलो जय अम्बे गौरी ..
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी
बोलो जय अम्बे गौरी ..
चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों
मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू
बोलो जय अम्बे गौरी ..
तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता
मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता
बोलो जय अम्बे गौरी ..
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी
बोलो जय अम्बे गौरी ..
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती
मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती
बोलो जय अम्बे गौरी ..
माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे
मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे
बोलो जय अम्बे गौरी ........


(५.) "भागवत की आरती":--
भागवत भगवान की है आरती
पापियों को पाप से है तारती ..
यह अमर ग्रंथ
यह मुक्ति पंथ
सन्मार्ग दिखाने वाला
बिगड़ी को बनाने वाला ..
यह सुख करनी
यह दुख हरनी
जगमंगल की है आरती
पापियों को पाप से है तारती ..
भागवत भगवान की है आरती
पापियों को पाप से है तारती ..

(६.)"श्री सरस्वतीमाता की आरती"--
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
(जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के
फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह
धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं,
जिनके हाथ में वीणादण्ड शोभायमान है,
जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया
है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं
द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूरण जड़ता
और अज्ञान को दूर कर देने वाली
माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥)
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां
जगद्व्यापिनींवीणापुस्तकधारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं
पद्मासने संस्थिताम्वन्दे तां परमेश्वरीं
भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
(शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्में व्याप्त,
आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं
चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली,
सभी भयों से भयदान देने वाली,
अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा,
पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली
और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली,
सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा
(सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥


(७.)"श्री संतोषी माता आरती"--
श्री संतोषी माता आरती
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥
जय सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥
जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥
जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥
जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥
जय मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥
जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥
जय दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए ।
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥
जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥
जय शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
जय संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे ।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥


(८. )'श्री कालीमाता की आरती"--
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन ||
जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।
बुद्धि विधाता तू जग माता ,मेरा कारज सिद्व रे।
चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे
जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे ।।
गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरेमाता
होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करेशुक्र सुखदाई सदा
सहाई संत खडे जयकार करे ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडेअटल सिहांसन
बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरेवार शनिचर
कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे
शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे ,महिषासुर को पकड दले ।।
आदित वारी आदि भवानी ,जन अपने को कष्ट हरे ।।
कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे
जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता ,जन की अर्ज कबूल करे ।।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे
सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे
दर्शन पावे मंगल गावे ,सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ।।
ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे
जय जननी जय मातु भवानी , अटल भवन मे राज्य करे।।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे ।|

( ९.)'वैष्णो माता की आरती"--
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता।
द्वार तुम्हारे जो भी आता, बिन माँगे सबकुछ पा जाता॥ मैया जय वैष्णवी माता।
तू चाहे जो कुछ भी कर दे, तू चाहे तो जीवन दे दे।
राजा रंग बने तेरे चेले, चाहे पल में जीवन ले ले॥ मैया जय वैष्णवी माता।
मौत-जिंदगी हाथ में तेरे मैया तू है लाटां वाली।
निर्धन को धनवान बना दे मैया तू है शेरा वाली॥ मैया जय वैष्णवी माता।
पापी हो या हो पुजारी, राजा हो या रंक भिखारी।
मैया तू है जोता वाली, भवसागर से तारण हारी॥ मैया जय वैष्णवी माता।
तू ने नाता जोड़ा सबसे, जिस-जिस ने जब तुझे पुकारा।
शुद्ध हृदय से जिसने ध्याया, दिया तुमने सबको सहारा॥ मैया जय वैष्णवी माता।
मैं मूरख अज्ञान अनारी, तू जगदम्बे सबको प्यारी।
मन इच्छा सिद्ध करने वाली, अब है ब्रज मोहन की बारी॥ मैया जय वैष्णवी माता।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया।
पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया।
सुआ चोली तेरे अंग विराजे, केसर तिलक लगाया।
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शंकर ध्यान लगाया।
नंगे पांव पास तेरे अकबर सोने का छत्र चढ़ाया।
ऊंचे पर्वत बन्या शिवाली नीचे महल बनाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया।
सतयुग, द्वापर, त्रेता, मध्ये कलयुग राज बसाया।
धूप दीप नैवेद्य, आरती, मोहन भोग लगाया।
ध्यानू भक्त मैया तेरा गुणभावे, मनवांछित फल पाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया ।|

( १०.)"श्री राणी सती माता की आरती"--
ॐ जय श्री राणी सती माता मैया जय राणी सती माता,
अपने भक्त जनन की दूर  करन विपत्ती ||
अवनि अननंतर ज्योति अखंडीत  मंडितचहुँक कुंभा
दुर्जन दलन खडग की विद्युतसम प्रतिभा ||
मरकत मणि  मंदिर  अतिमंजुल शोभा लखि न पडे,
 ललित ध्वजा चहुँ ओरे   कंचन कलश धरे ||
घंटा घनन घडावल बाजे शंख मृदुग घूरे,
किन्नर गायन करते वेद ध्वनि उचरे ||
सप्त मात्रिका करे आरती सुरगण ध्यान धरे,
विविध प्रकार के व्यजंन श्रीफल भेट धरे ||
संकट विकट विदारनि नाशनि हो कुमति,
सेवक जन ह्रदय पटले मृदूल करन सुमति,
  अमल कमल दल लोचनी  मोचनी त्रय तापा ||
त्रिलोक चंद्र मैया तेरी शरण गहुँ माता ||
या मैया जी की आरती  प्रतिदिन जो कोई गाता,
 सदन सिद्ध नव निध फल मनवांछित पावे || 


(११.)"श्री कुंज बिहारी की आरती"--
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की.......




( १२.)'श्री शिवजी की आरती"--
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे |
हंसासंन ,गरुड़ासन ,वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला ,बनमाला ,रुण्ड़मालाधारी |
चंदन , मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें |
सनकादिक, ब्रम्हादिक ,भूतादिक संगें
ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र ,त्रिशूल धरता |
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा......


(१३. )"श्री रामचन्द्रजी की आरती"--
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं |
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं |
रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम...
सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं |
आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं
इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं |
मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं | |
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ||
श्री राम श्री राम....



(१४.)"श्री हनुमानजी की आरती"-
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् |
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे | आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे | दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥


(१५. )"श्री श्यामबाबा की आरती"--
ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत, अनुपम रुप धरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
रत्न जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुले|
तन केशरिया बागों, कुण्डल श्रवण पडे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे|
खेवत धूप अग्नि पर, दिपक ज्योती जले॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
मोदक खीर चुरमा, सुवरण थाल भरें |
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करें ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
झांझ कटोरा और घसियावल, शंख मृंदग धरे|
भक्त आरती गावे, जय जयकार करें ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम श्याम उचरें ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
श्रीश्याम बिहारीजी की आरती जो कोई नर गावे|
कहत मनोहर स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे....
ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत , अनुपम रुप धरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे......


(१६. )"श्री साई बाबा की आरती"--
सौख्यदातारा जीवा ।चरणरजतळीं निज दासां विसावां ।
भक्तां विसावा ॥धृ॥
जाळुनियां अनंग ।स्वस्वरुपी राहे दंग ।
मुमुक्षुजना दावी ।निजडोळां श्रीरंग ॥१॥
जया मनीं जैसा भाव ।तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना ।ऐसी ही तुझी माव ॥२॥
तुमचें नाम ध्यातां ।हरे संसृतिव्यथा ।
अगाध तव करणी ।मार्ग दाविसी अनाथा ॥३॥
कलियुगीं अवतार ।सगुणब्रह्म साचार ।
अवतीर्ण झालासे ।स्वामी दत्त दिगंबर ॥४॥
आठा दिवसां गुरुवारी ।भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया ।भवभय निवारी ॥५॥
माझा निजद्रव्य ठेवा ।तव चरणसेवा ।
मागणें हेंचि आता ।तुम्हा देवाधिदेवा ॥६॥
इच्छित दीन चातक ।निर्मळ तोय निजसुख ।
पाजावें माधवा या ।सांभाळ आपुली भाक ॥७


(१७. )'श्री चित्रगुप्त जी की आरती"--
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम शरणागतम। जय पूज्य पद पद्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे। कर्मेश तव धर्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनी धारी विभो। जय श्याम तन चित्रेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
पुरुषादि भगवत अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय। जय शक्ति बुद्धि विशेष तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के। जय शांतिमय न्यायेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
तव नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भय त्रय ताप से। हों दूर सर्व क्लेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
हों दीन अनुरागी हरि, चाहे दया दृष्टि तेरी। कीजै कृपा करुणेश तव, शरणागतम शरणागतम।।


( १८.)"मंगलवार व्रत की आरती"--
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर काँपे। रोग दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनीपुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीड़ा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंक सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। लाय संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएँ भुजा असुर संहारे। दाहिने भुजा संत जन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जै जै जै हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसि बैकुंठ परमपद पावै॥


( १९.)"बुधवार व्रत की आरती"--
आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन धन न्योछावर कीजै॥
गौरश्याम मुख निरखन लीजै। हरि का रूप नयन भरि पीजै॥
रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पट सारी। कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥
फूलन सेज फूल की माला। रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
कंचन थार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी। आरती करें सकल नर नारी॥
नंदनंदन बृजभान किशोरी। परमानंद स्वामी अविचल जोरी॥


( २०.)"वृहस्पतिवार व्रत की आरती"--
जय जय आरती राम तुम्हारी। राम दयालु भक्त हितकारी॥
जनहित प्रगटे हरि व्रतधारी। जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पारी॥
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो। गज के काज पयादे धायो॥
दस सिर छेदि बीस भुज तोरे। तैंतीसकोटि देव बंदी छोरे॥
छत्र लिए सर लक्ष्मण भ्राता। आरती करत कौशल्या माता॥
शुक शारद नारदमुनि ध्यावैं। भरत शत्रुघन चँवर ढुरावैं॥
राम के चरण गहे महावीरा। ध्रुव प्रहलाद बालिसुर वीरा॥
लंका जीति अवध हरि आए। सब संतन मिलि मंगल गाए॥
सीय सहित सिंहासन बैठे। रामा। सभी भक्तजन करें प्रणामा॥


( २१.)"श्री शनिदेवजी की आरती"--
श्री शनि देवजी की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय.॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय.॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय.॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय.॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय. ||

आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||‘आरती वारना’ का अर्थ है- आर्ति-निवारण, अर्थात किसी भी प्रकार के अनिष्ट से अपने प्रियतम प्रभु को बचाना है । आरती के दो भाव है जो क्रमश: ‘नीराजन’ और ‘आरती’ शब्द से व्यक्त हुए हैं:--
(१.)नीराजन (नि:शेषेण राजनम् प्रकाशनम्) का अर्थ है- विशेष रूप से, नि:शेष रूप से प्रकाशित हो उठे चमक उठे, अंग-प्रत्यंग स्पष्ट रूप से उद्भासित हो जाय जिसमें दर्शक या उपासक भलीभाँति देवता की रूप-छटा को निहार सके, हृदयंगम कर सके। 
(२.) ‘आरती’ शब्द (जो संस्कृत के आर्तिका प्राकृत रूप है और जिसका अर्थ है- अरिष्ट) विशेषत: माधुर्य- उपासना से संबंधित है।

आरती एक तांत्रिक क्रिया है, जिससे प्रज्वलित दीपक अपने इष्ट देव के चारों ओर घुमाकर उनकी सारी विघ्र-बाधा टाली जाती है। आरती लेने से भी यही तात्पर्य है- अपने आराध्य की ‘आर्ति’ (कष्ट) को अपने ऊपर लेना। आरती के दौरान बलैया लेना, बलिहारी जाना, बलि जाना, वारी जाना, न्योछावर होना आदि सभी प्रयोग इसी भाव के द्योतक हैं। प्राचीनकाल से चली आ रही परम्परा के अनुसार इसी रूप में छोटे बच्चों की माताएँ तथा बहिनें लोक में भी आरती (या आरत) उतारती हैं। यह ‘आरती’ मूलरूप में कुछ मन्त्रोंच्चारण के साथ केवल कष्ट-निवारण के भाव से उतारी जाती रही होगी। प्राचीनकाल में  वैदिक-उपासना में उसके निवारण के भाव से उतारी जाती रही होगी। वर्तमान काल में वैदिक-उपासना में उसके साथ-साथ वैदिक मन्त्रों का उच्चारण होता है तथा पौराणिक एवं तान्त्रिक-उपासना में उसके साथ सुन्दर-सुन्दर भावपूर्ण पद्य-रचनाएँ गायी जाती हैं। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि विभिन्न ऋतु, पर्व, पूजा आदि के समय आदि भेदों से भी आरती की जाती है ।