पुरुषोत्तम नागेश ओक, (२ मार्च,१९१७-७ दिसंबर,२००७), जिन्हें लघुनाम श्री.पी.एन.ओक के नाम से जाना जाता है, द्वारा रचित पुस्तक "कौन कहता है कि अकबर महान था?" में अकबर के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करते हुए कुछ तथ्य सामने रखे हैं जो वास्तव में विचारणीय हैं.....
अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबरमहान) के नाम से भी जाना जाता है। जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था।
बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा। अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे। रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था। कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका। वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा जाहिर की। अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और हमीदाबानो का विवाह हो गया। कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त, १५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा। हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया। अमरकोट में ही १५ अक्टूबर, १५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया।
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है।
खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन् १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन् १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। सन् १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को निकाल बाहर किया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। सन् १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया – इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना पड़ा | जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे।
अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा। दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना ! जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज ! पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग गया ! सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो गई ! हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों से घोप दिया लहलुहान किया ! इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर !
बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा। अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे। रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था। कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका। वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा जाहिर की। अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और हमीदाबानो का विवाह हो गया। कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त, १५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा। हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया। अमरकोट में ही १५ अक्टूबर, १५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया।
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है।
खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन् १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन् १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। सन् १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को निकाल बाहर किया। अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। सन् १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया – इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना पड़ा | जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे।
अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा। दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना ! जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज ! पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग गया ! सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो गई ! हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों से घोप दिया लहलुहान किया ! इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर !
हेमू को मारकर दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया।
२४ फरवरी, १५६८ को अकबर चित्तौड़ के दुर्ग मे प्रवेश किया उसने कत्लेआम और लूट का आदेश दिया हमलावर पूरे दिन लूट और कत्लेआम करते रहे विध्वंस करते घूमते रहे एक घायल गोविंद श्याम के मंदिर के निकट पड़ा था तो अकबर ने उसे हाथी से कुचला ! आठ हजार योद्धा राजपूतो के साथ दुर्ग मे चालीस हज़ार (४०,०००) किसान भी थे जो देख रेख और मरम्मत के कार्य कर रहे थे ! कत्ले आम का आदेश तब तक नहीं लिया जब तक उसमे से तेतीस हज़ार (३३,०००) लोगो को नहीं मारा , अकबर के हाथो से ना तो मंदिर बचे और ना ही मीनारें ! अकबर ने जीतने युद्ध लड़े है उसमे उसने बीस लाख (२०,०००००) लोगो को मौत के घाट उतारा !अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो; इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य के मध्य में थी। कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारणथा। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ। सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला ।
अब कुछ प्रश्न अकबर की महानता के सम्बन्ध में विचारणीय हैं, जो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यही कहने पर विवश कर देंगे कि...कौन कहता है – अकबर महान था ????
(१.)यदि अगर अकबर से सभी प्रेम करते थे, आदर की दृष्टि से देखते थे तो इस प्रकार शीघ्रतापूर्वक बिना किसी उत्सव के उसे मृत्यु के तुरंत बाद क्यों दफनाया गया ?
(२.)जब अकबर अधिक पीता नहीं था तो उसे शराब पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
(३.)आखिर अकबर को इतिहास महान क्यों कहता है, जिसने हिन्दू नगरों को नष्ट किया ?
(४.)अगर फतेहपुरसीकरी का निर्माण अकबर ने कराया तो इस नाम का उल्लेख अकबर के पहले के इतिहासों में कैसे है ?
(५.)क्या अकबर जैसा शराबी, हिंसक, कामुक, साम्राज्यवादी बादशाह खुदा की बराबरी रखता है ?
(६.)क्या जानवरों को भी मुस्लिम बना देने वाला ऐसा धर्मांध अकबर महान है ?
(७.)क्या ऐसा अनपढ़ एवं मूर्खो जैसी बात करने वाला अकबर महान है ?
(८.)क्या अत्याचारी, लूट-खसोट करने वाला, जनता को लुटने वाला अकबर महान था ?
(९.)क्या ऐसा कामुक एवं पतित बादशाह अकबर महान है !
(१०.)क्या अपने पालनकर्ता बैरम खान को मरकर उसकी विधवा से विवाह कर लेने वाला अकबर महान था |
(११.)क्या औरत को अपनी कामवासना और हवस को शांत करने वाली वस्तुमात्र समझने वाला अकबर महान था | अकबर औरतो के लिबास मे मीना बाज़ार जाता था | मीना बाज़ार मे जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर के लिए हरम मे पटक देते |
ऐसे ही ना जाने कितने प्रश्नचिन्ह अकबर की महानता के सन्दर्भ में हैं...., सुधिजन विद्द्वान पाठक मित्रों से निवेदन है कि वे भी इस सन्दर्भ में अपने मन को आंदोलित कर रहे प्रश्नों को अवश्य अपनी सम्मति सहित यहाँ लिखकर मेरे श्रम को सार्थकता प्रदान करें.....,
एक बार पुन: नवीन सामग्री सहित मिलने की आशा और विश्वास सहित........
लोग कहते हैं अकबर १३ साल की उमर में गद्दी पर बैठा.वह पढ़ा ज्यादा नहीं था.अगर हो भी तो आज की तुलना में तो अनपढ़ कहा जायेगा.लोग कहते हैं वह पढ़ा नहीं कढ़ा था.पचास साल तक शासन किया.बिना पढ़े लिखे.इतिहास के सफलतम शासकों में से एक किसी शिक्षा व्यवस्था का मोहताज नहीं रहा |
जवाब देंहटाएंअकबर महान् नही था, वह एक चालाक और धोक्केबाज था जो सिर्फ धोक्के से वार करना और अपनी चालाकी से लोगों को खुद की तरफ मिलाना जानता था, अकबर के दो मुखोटे थे एक मुखोटा प्रजा के सामने अच्छा बनने का और दूसरी तरफ एक क्रुर शासक का जिसके कोई उसूल और दया नही थी वह सिर्फ इस बात पर ध्यान देता था कि उसका साम्राज्य कैसे बढ़े और उसे लोग कैसे माने। अकबर लाख कोशिश करके भी स्वंय युद्ध करके महाराणा प्रताप को नहीं पाया था क्योकि उसमें इतना साहस और शोर्य नहीं था कि वह महाराणा प्रताप को हरा सके । उसने महाराणा प्रताप को हराने के लिए हिन्दू राजाओं का हि साथ लिया और हिन्दु राजाओं की सहायता से हि महाराणा प्रताप को हरा पाया नही तो अकबर कभी महाराणा प्रताप को हरा नहीं पाता।
हटाएंअकबर महान् हो ही सकता। अकबर एक तेज बुद्धि, चालाक और बिना असुल वाला महत्वकांक्षी राजा था जो अपने राज्य के विस्तार के लिए चालाकी से काम निकालता था। अपने हिन्दुओं की फूट का फायदा अकबर ने उठाया नहीं तो अकबर के पांव भारत में कभी नहीं जम पाते, लेकिन फिर भी अकबर महान् नही महाराणा प्रताप महान थे, है और रहेंगे।
अकबर महान् नही था, वह एक चालाक और धोक्केबाज था जो सिर्फ धोक्के से वार करना और अपनी चालाकी से लोगों को खुद की तरफ मिलाना जानता था, अकबर के दो मुखोटे थे एक मुखोटा प्रजा के सामने अच्छा बनने का और दूसरी तरफ एक क्रुर शासक का जिसके कोई उसूल और दया नही थी वह सिर्फ इस बात पर ध्यान देता था कि उसका साम्राज्य कैसे बढ़े और उसे लोग कैसे माने। अकबर लाख कोशिश करके भी स्वंय युद्ध करके महाराणा प्रताप को नहीं पाया था क्योकि उसमें इतना साहस और शोर्य नहीं था कि वह महाराणा प्रताप को हरा सके । उसने महाराणा प्रताप को हराने के लिए हिन्दू राजाओं का हि साथ लिया और हिन्दु राजाओं की सहायता से हि महाराणा प्रताप को हरा पाया नही तो अकबर कभी महाराणा प्रताप को हरा नहीं पाता।
हटाएंअकबर महान् हो ही सकता। अकबर एक तेज बुद्धि, चालाक और बिना असुल वाला महत्वकांक्षी राजा था जो अपने राज्य के विस्तार के लिए चालाकी से काम निकालता था। अपने हिन्दुओं की फूट का फायदा अकबर ने उठाया नहीं तो अकबर के पांव भारत में कभी नहीं जम पाते, लेकिन फिर भी अकबर महान् नही महाराणा प्रताप महान थे, है और रहेंगे।
यदि भारतीय इतिहास की दो महत्वपूर्ण घटनायें न हुई होतीं तो शायद भारत का इतिहास कुछ और ही होता:–
जवाब देंहटाएं(१.)यदि राजा पृथ्वीराज चौहान सदाशयता दिखाते हुए मुहम्मद गोरी को जिन्दा न छोड़ते (जिन्दा छोड़ने के अगले ही वर्ष सन ११९२ में वह फ़िर वापस दोगुनी शक्ति से आया और चौहान को हराया),
(२.) यदि सन् १५५६ हेमचन्द्र पानीपत का युद्ध न हारता तो अकबर को यहाँ से भागना पड़ता |
इतिहास से सबक न सीखने की हिन्दू परम्परा को निभाते हुए हम भी कई आतंकवादियों को छोड़ चुके हैं और अफ़ज़ल अभी भी को जिन्दा रखा है। फ़िर भी बाहर से आये हुए आक्रांताओं के गुणगान करना और यहाँ के राजाओं को हास्यास्पद और विकृत रूप में पेश करना तथाकथित “बुद्धिजीवियों” का पसन्दीदा शगल है। किसी ने सही कहा है कि “इतिहास बनाये नहीं जाते बल्कि इतिहास ‘लिखे’ जाते हैं, और वह भी अपने मुताबिक…”, ताकि आने वाली पीढ़ियों तक सच्चाई कभी न पहुँच सके…
इसीलिये अकबर और औरंगज़ेब का गुणगान करने वाले लोग भारत में अक्सर मिल ही जाते हैं… तथा महाराणा प्रताप,शिवाजी,दयानंद सरस्वती आदि की बात करना “साम्प्रदायिकता” की श्रेणी में आता है…
यदि अकबर महान था तो पूरे जीवन अकबर से जूझने वाले महाराणाप्रताप क्या थे ? और इस प्रश्न का कोई उत्तर हमारे पास नहीं है। देश और काल के अनुसार व्यक्ति महान और गद्दार होता है.....
main ap k baat se sahmat ho, pure bisway me ya ab tak k itihash me koi v mugal sasak ko mahan nahi kaha ja sakta, sab ne gare musalmano par aatyachar kiye hai or unka udesh v hamesha yahi raha hai ya to islam ko mano ya fir mare jao...
हटाएंहम सब भारतीय एक मन हों, एक विचार हों और एक दूसरे की शक्ति बनें
जवाब देंहटाएंआप बड़े अच्छे लेख प्रस्तुत कर रहे हैं । बस ज़रूरत है कि हम सब इन पर चिंतन मनन करें।
उत्तम विचार,अच्छी प्रस्तुति हार्दिक शुभकामनाएं!
आपको हार्दिक धन्यवाद |
परमादरणीय गुरुदेव,
जवाब देंहटाएंआपने हमेशा हमें नयी दृष्टि प्रदान की है |
समस्त विश्व-ऐतिहासिक यात्रा का एक संक्षिप्त सिंहावलोकन प्रस्तुत करते हुए उसके सामने आज उपस्थित कार्यभारों और चुनौतियों को रेखांकित करना है । प्रत्येक नई शुरुआत के समय इतिहास का पुनरवालोकन जरूरी होता है । भौतिकवादी जीवन-दृष्टि हमें यही बताती है कि इतिहास के मुल्यांकन-पुनर्मुल्यांकन का मूल अर्थ केवल भविष्य के लिए नये कार्यभारों का निर्धारण ही होता है ।
हम सभी आपके मार्गनिर्देशन में चलने के लिए कृतसंकल्प हैं....
आप बड़े अच्छे लेख प्रस्तुत कर रहे हैं । बस ज़रूरत है कि हम सब इन पर चिंतन मनन करें।
जवाब देंहटाएंआपको हार्दिक धन्यवाद |
Aapke lekh or dristikod mujhe kafi achhe lge..
जवाब देंहटाएंAKABAR EK MAHAN RAJA THA
हटाएंakbar aak ghamandi aadme tha agar ham hindu bhaio mai aakta ho jya to ham aga aana vala akbar ka sar kaat sakta hai
हटाएंGOOD JOB
हटाएंhum bhi aapse sahmat hai sir lekin hamara itihas is tarah tod marod kar likha gaya hai ki har koi sachchai nahi jaan pata
जवाब देंहटाएंyeh sab dhakosla hai vastav main akber jaisa koi raja hindustan main nahin hua jisne hindustan ki itni tarrakki ke.agar akber mahan nahin tha to bharat ki halat angrenjo ke shashan se bhi buri hoti
जवाब देंहटाएंbachpan se hi akbar ko ithas ne mahan bataya h hum kese app ki likhi baato ko sach mane ki aap itihas ko galat kah rahe hai or agar aap ki baat sach h to aap ramayn or mahabhart par tipandi de. kyu ki use bhi to pad kar jana h.
जवाब देंहटाएंAap ne to hindu muslim ko bhadkane mai koi kasr nahi chodi h. achcha nahi kar sakte to bura bhi mat kahiye . bhadka ke aap ko kon sa P.M.ki sit miljayegi.
जवाब देंहटाएंEk kaam kijiye aap apne ghar ke bare mai likiye. To shayad jyada sach or dhos rup se kah payeng lagta h kise gusse me apne vichar vakt kiye h jiski jessi soch hoti h vo vesh ki likhta h aap ek galt vichar wale vyakti h apne gribaan mai jhakne se pahle itihas bata rahe h.very fanny
जवाब देंहटाएंBundele Har Bolo Ke Mukh Se Suni Khahani Thi Khub Ladi Mardani Bo To Jhansi Bali Rani Thi - Anil Verma
जवाब देंहटाएंakbar pure world ka mahan raja tha jo ki ak hindu ladhki se shadi ki our ushe choda
जवाब देंहटाएंARA SALA MANA 4 MULLAN CHOD CHUKA HU
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