पर्वतीय स्थलों की रानी ऊटी का वास्तविक नाम उदगमंडमल (उधागामंदालम) है। दक्षिण-भारत के राज्य तमिलनाडु में स्थित ऊटी दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। पश्चिमी घाट पर स्थित ऊटी समुद्र तल से २२४० मीटर की ऊंचाई पर है। ऊटी नीलगिरी जिले का मुख्यालय भी है। यहां सदियों से ज्यादातर तोडा जनजाति के लोग रहते है। लेकिन ऊटी की वास्तविक खोज करने और उसके विकास का श्रेय अंग्रेजों को जाता है। सन १८२२ में कोयंबटूर के तत्कालीन कलक्टर जॉन सुविलिअन ने यहां स्टोन हाउस का निर्माण करवाया था जो अब गवर्मेट आर्ट कॉलेज के प्रधानाचार्य का चैंबर है और ऊटी की पहचान भी। ब्रिटिश राज के दौरान ऊटी मद्रास प्रेसिडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। आज यह भारत का एक मुख्य पर्यटक स्थल है ।
{ऊटी के क्लूनी मेनर कोटेज़ेस} |
दक्षिण-भारत घूमने के लिए अक्सर सर्दियों का मौसम ही चुना जाता है। इसमें दिसंबर भी शामिल है। अगर आप ऊटी जाना चाहते हैं, तो यह वक्त बहुत सही रहेगा, क्योंकि मार्च-अप्रैल से वहां बहुत भीड़ होने लगेगी। नए साल के मौके पर भी जाने से बचें, वरना छुट्टियों में सुकून नहीं मिलेगा। अगर आपके पास थोड़ा ज्यादा समय हो, तो इसके पास के केरल के समुद्री किनारे बसे कुछ सुन्दर स्थल भी देख सकते हैं ।
ऊटी(उधागामंदालम) चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और मसालों के लिए प्रसिद्ध है। कमर्शियल रोड पर हाथ से बनी चॉकलेट कई तरह के स्वादों में मिल जाएगी। यहां हर दूसरी दुकान पर यह चॉकलेट मिलती है। हॉस्पिटल रोड की किंग स्टार कंफेक्शनरी इसके लिए बहुत प्रसिद्ध है। कमर्शियल रोड की बिग शॉप से विभिन्न आकार और डिजाइन के गहने खरीदे जा सकते हैं। यहां के कारीगर पारंपरिक तोडा शैली के चांदी के गहनों को सोने में बना देते हैं। तमिलनाडु सरकार के हस्तशिल्प केंद्र पुंपुहार में बड़ी संख्या में लोग हस्तशिल्प से बने सामान की खरीदारी करने आते हैं।ऊटी (उधागामंदालम) के पर्यटन आकर्षण:--
(१.)वनस्पति उद्यान-
इस वनस्पति उद्यान की स्थापना सन१८४७ में की गई थी। २२ हेक्टेयर में फैले इस खूबसूरत बाग की देखरख बागवानी विभाग करता है। यहां एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं जिसके बारे में माना जाता है कि यह २० मिलियन वर्ष पुराना है। इसके अलावा यहां पेड़-पौधों की 650 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिलती है। प्रकृति प्रेमियों के बीच यह उद्यान बहुत लोकप्रिय है। मई के महीने में यहां ग्रीष्मोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव में फूलों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें स्थानीय प्रसिद्ध कलाकार भाग लेते हैं।
(२.)ऊटी झील-
इस झील का निर्माण यहां के पहले कलक्टर जॉन सुविलिअन ने सन १८२५ में करवाया था। यह झील 2.5 किमी. लंबी है। यहां आने वाले पर्यटक बोटिंग और मछली पकड़ने का आनंद ले सकते हैं। मछलियों के लिए चारा खरीदने से पहले आपके पास मछली पकड़ने की अनुमति होनी चाहिए। यहां एक बगीचा और जेट्टी भी है। इन्हीं विशेषताओं के कारण प्रतिवर्ष 12 लाख दर्शक यहां आते हैं।
बोटिंग का समय: सुबह ८ बजे-शाम ६ बजे तक
बोटिंग का समय: सुबह ८ बजे-शाम ६ बजे तक
(३.)डोडाबेट्टा चोटी-
यह चोटी समुद्र तल से २६२३ मीटर ऊपर है। यह जिले की सबसे ऊंची चोटी मानी जाती है। यह चोटी ऊटी से केवल १० किमी. दूर है इसलिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां से घाटी का नजारा अद्धभुत दिखाई पड़ता है। लोगों का कहना है कि जब मौसम साफ होता है तब यहां से दूर के इलाके भी दिखाई देते हैं जिनमें कायंबटूर के मैदानी इलाके भी शामिल हैं ।
(४.)मदुमलाई वन्यजीव अभ्यारण्य-
यह वन्यजीव अभ्यारण्य ऊटी से ६७ किमी. दूर है। यहां पर वनस्पति और जन्तुओं की कुछ दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं और कई लुप्तप्राय:जानवरों भी यहां पाए जाते है। हाथी, सांभर, चीतल, हिरन आसानी से देखे जा सकते हैं। जानवरों के अलावा यहां रंगबिरंगे पक्षी भी उड़ते हुए दिखाई देते हैं। अभ्यारण्य में ही बना थेप्पाक्कडु हाथी कैंप बच्चों को बहुत लुभाता है।
(५.)कोटागिरी-
यह पर्वतीय स्थान ऊटी से २८ किमी. पूर्व में स्थित है। नीलगिरी के तीन हिल स्टेशनों में से यह सबसे पुराना है। यह ऊटी और कून्नूर के समान प्रसिद्ध नहीं है। लेकिन यह माना जाता है कि इन दोनों की अपेक्षा कोटागिरी का मौसम ज्यादा सुहावना होता है। यहां बहुत ही सुंदर हिल रिजॉर्ट है जहां चाय के बहुत खूबसूरत बागान हैं। हिल स्टेशन की सभी खूबियां यहां मौजूद लगती हैं। यहां की यात्रा आपको निराश नहीं करेगी।
(६.)कलहट्टी वॉटरफॉल्स-
कलपट्टी के किनारे स्थित यह झरना १०० फीट ऊंचा है। यह वॉटरफॉल्स ऊटी से केवल १३ किमी. की दूरी पर है इसलिए ऊटी आने वाले पर्यटक यहां की सुंदरता को देखने भी आते हैं। झरने के अलावा कलहट्टी-मसिनागुडी की ढलानों पर जानवरों की अनेक प्रजातियां भी देखी जा सकती हैं, जिसमें चीते, सांभर और जंगली भैसा शामिल हैं।
(७.)नीलगिरि की पहाड़िया-
नीलगिरि की पहाड़िया हिमरेखा में नहीं आतीं, लेकिन गर्मियों में यहां का तापमान दिन में २५ डिग्री सेण्टीग्रेड से ऊपर नहीं जाता और रात में १० डिग्री तक गिर जाता है। जिसका अंदाज बाहर के पर्यटकों को नहीं होता, क्योंकि वे यह मानकर चलते हैं कि दक्षिण भारत का पहाड़ी सैरगाह होने की वजह से यहां भी गर्मी होगी। जिसके चलते यहां आने के बाद ज्यादातर पर्यटकों को गर्म कपड़े खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है। फिर अगर बारिश हो जाये तो तापमान और भी नीचे आ जाता है।
ऊटी (उधागामंदालम) हेतु आवागमन का परिचय--
(१.)वायु मार्ग-
निकटतम हवाई अड्डा कोयंबटूर है।
(१.)वायु मार्ग-
निकटतम हवाई अड्डा कोयंबटूर है।
(२.)रेल मार्ग-
ऊटी में रेलवे स्टेशन है। मुख्य जंक्शन कोयंबटूर है।
(३.)सड़क मार्ग-
राज्य राजमार्ग १७ से मड्डुर और मैसूर होते हुए बांदीपुर पहुंचा जा सकता है। यह आपको मदुमलाई रिजर्व तक पहुंचा देगा। यहां से ऊटी की दूरी केवल ६७ किमी.है।
(३.)सड़क मार्ग-
राज्य राजमार्ग १७ से मड्डुर और मैसूर होते हुए बांदीपुर पहुंचा जा सकता है। यह आपको मदुमलाई रिजर्व तक पहुंचा देगा। यहां से ऊटी की दूरी केवल ६७ किमी.है।
ऊटी पहुंचने का दूसरा रास्ता जो कोयंबतूर से १०५ क़ि.मीटर दूर है, एकदम अलग तरह का है। कोयंबतूर से मिट्टूप्लायम पहुंचते ही ऊटी की पहाड़ियां नजर आने लगती हैं। मैदानी इलाकों में ही कुछ किलोमीटर का रास्ता केरल की हरियाली जैसा है, जो जंगलों के बीच से गुजरता है। जंगली में नारियल, खजूर और ताड़ के अलाव़ा कई खूबसूरत जंगली पौधे नजर आते हैं ।
गर्मियों में ठण्डे पहाड़ी सैरगाहों की सूची में ऊटी का नाम ऊपर है। गर्मी शुरू होते ही दक्षिण से लेकर पश्चिमी भारत के पर्यटक ऊटी की तरफ रूख करते हैं। जिसके चलते पर्यटकों की भीड़ बढती जा रही है ।
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