बुधवार, 28 सितंबर 2011

शहीद भगतसिंह सदैव हमारे ह्रदय में हैं...



आज महान शहीदे-आजम शहीद भगतसिंह  का १०५वाँ जन्मदिन है || 
शहीद भगतसिंह के जन्मदिन पर जरूरत है कि हम महज रस्मी श्रद्धान्जलियों से हटकर अपने सच्चे शहीद की याद को सच्चे दिल से ताजा करें | यह ज़रुरत सिर्फ इसलिए नहीं है कि वे विदेशी गुलामी से देश को आजाद करवाने के लिए भरी जवानी में अपनी जान तक की बाजी लगा गए, हम सच्चे के लिए शहीद भगतसिंह को याद करना आज इससे भी गहरे अर्थ रखता है |
शहीद भगतसिंह  असेम्बली में बम फेंकने के बाद, तत्कालीन अदालत ने जब भगतसिंह से पूछा कि क्रांति क्या है, तब शहीद भगतसिंह ने इस कविता के ज़रिये क्रांति को परिभाषित किया था----
"जब गतिरोध की स्थिति
लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है,
तो वे किसी भी प्रकार की
तब्दीली से हिचकते हैं,
इस जड़ता और निष्क्रियता को तोडऩे के लिए
एक क्रांतिकारी स्पिरिट की जरूरत होती है,
इस परिस्थिति को बदलने के लिए
यह जरूरी हैकि क्रांति की स्पिरिट
ताजा की जाए ताकि
इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो।"


भगत सिंह का जन्म २८ सितंबर, सन १९०७,शनिवार सुबह ९ बजे लायलपुर ज़िले के बंगा गाँव (चक नम्बर १०५ जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। हालांकि उनका पैतृक निवास आज भी भारतीय पंजाब के नवाँशहर ज़िले के खटकड़कलाँ गाँव में स्थित है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। अमृतसर में १३ अप्रैल, सन १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रान्तिकारी संगठन से जुड़ गए थे। भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर १७ दिसम्बर, सन १९२८ को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे०पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने भी उनकी सहायता की थी। क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड पर स्थित दिल्ली की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार में ८ अप्रैल, सन १९२९ को 'अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये' बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी ।
शहीद भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी । उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जायेगी और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये । इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामालिखने से साफ मना कर दिया । पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी आत्मकथा में जो-जो दिशा-निर्देश दिये थे उनका भगत सिंह ने अक्षरश: पालन किया। उन्होंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबन्दी समझा जाए तथा फ़ाँसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाये ।

फ़ाँसी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में 
शहीद भगत सिंह ने लिखा था -
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है,
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है |
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें,चर्ख से क्यों ग़िला करें,
सारा जहाँ अदू सही,आओ! मुक़ाबला करें ।
शहीद भगत सिंह की जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। शहीद भगत सिंह सदा ही शेर की तरह जिए और एक सच्चे शेर की तरह ही फाँसी पर चढ़ गए। चन्द्रशेखर आजा़द से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी ।


बहुत कम लोग जानते हैं कि भगतसिंह बीसवीं शताब्दी के राजनैतिक कार्यकर्ताओं के बीच एक प्रमुख बुद्धिजीवी भी थे। आज उन्हें इसी रूप में याद करने की आवश्यकता है। लगभग २ साल वे जेल में रहे। इस बीच उन्होंने बहुत सी पुस्तकें पढीं। इनमें यूरोप-अमेरिका के विद्वान, चिंतक, बुद्धिजीवी साहित्यकारों की पुस्तकें हैं। उनका पूर्ण राजनीतिक जीवन १८ साल का रहा और कुल उम्र २५ साल। अजीब संयोग है कि रानी लक्ष्मीबाई भी २३ साल की उम्र में अंग्रेजों से लडते हुए शहीद हो गयीं। भगतसिंह के अन्य साथी यतीन्द्रनाथ ने ६५ दिन तक आमरण अनशन किया-जेल सुधार तथा मानवाधिकारों के लिए। इसके बाद वह भी २३ वर्ष की आयु में शहीद हो गये। उनकी शहादत ने पूरे देश को झकझोर दिया। ब्रिटिश सरकार भी मजबूर हो गयी। क्रान्तिकारियों का यह प्रभाव भी पडा कि वहाँ पढने लिखने की सामग्री दी जाने लगी। यह सुधार कुछ मामूली परिवर्तनों के साथ, लगभग उसी रूप में आज भी मौजूद है।
भगत सिंह लाहौर जेल में १९२९ से २३ मार्च, १९३१ तक, फाँसी पर चढाए जाने से पूर्व नोटबुक लिखते रहे। २०वीं सदी के किसी भी लेखक या बुद्धिजीवी में इतनी वैचारिक प्रगति नहीं दीखती, जितनी भगत सिंह में। १९१८ से उनका आंदोलनकारी सफल आरंभ हुआ। तब वे आर्य समाजी थे, फिर सुधारवादी फिर अराजकतावादी होते हुए अंत में वैज्ञानिक समाजवाद के साये में आये। आतंकवाद को वे गलत समझते थे। उनका विचार था कि बिना संगठन और पार्टी के कोई परिवर्तन संभव नहीं है, क्रांतिकारी के रूप में ये दोनों बहुत आवश्यक हैं। लेनिन उनके आदर्श थे। कहना प्रासंगिक होगा कि फाँसी का बुलावा आया तो भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ रहे थे, तब उन्होंने एक हाथ उठाकर कहा कि रुको, एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है। उन्होंने नौजवानों से अपील की कि ’’व्यवस्थित ढंग से आगे बढने के लिए आपको जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। भगतसिंह ने इस देश की जनता को तीन नारे दिये-

१. इंकलाब- जिन्दाबाद ||, 
२. किसान-मजदूर जिन्दाबाद || 
३. साम्राज्यवाद का नाश हो।| 
ये तीनों नारे आज हमारी श्रमिक एवं संघर्षशील जनता के कंठहार हैं। भगतसिंह ने महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि अपने समय के क्रान्तिकारी आंदोलन को पुराने क्रांतिकारी आंदोलन की रूढवादी परम्परा से विमुक्त किया। पुराने क्रांतिकारी किसी न किसी देवी-देवता के उपासक थे और दृढ ईश्वर विश्वासी थे। वे इस सबको नियति का खेल मानते थे। भगतसिंह ने कहा कि इस प्रकार के क्रांतिकारी अंत में साधु-सन्यासी बन जाते हैं। उन्होंने धर्म को राजनीति से अलग रखने का सबसे अधिक प्रयास किया। राजनीति और धर्म के मेल में देशभक्ति की भावना मर जाती है, अपने इसी विचार को नौजवानों तक पहुँचाने के लिए भगतसिंह ने एक लेख लिखा-’मैं नास्तिक क्यों हूँ‘ जो आज भी बहुत चाव से पढा जाता है। भगत सिंह ने यह भी कहा कि ’’हमें धर्मनिरपेक्ष राजनीति की जष्रूरत है। हमें ऐसी राजनीति की जरूरत नहीं जो किसी भी धर्म को महत्व दे।‘‘ भगत सिंह की यह बात बहुत सही ठहरती है क्यों कि पिछले अनेक वर्षों से धर्म की राजनीति हो रही है और दंगे कराये जा रहे हैं। आज तो इस में जाति का भी समावेश हो गया है। धर्म की राजनीति करने वाले लोग हर समस्या का हल अतीत में देखते हैं। उनके लिए हर समस्या का हल उनके धार्मिक ग्रंथों में निहित है। ऐसे दिवास्वप्न देखने वाले लोग देश का क्या भला करेंगे ।

 'भगत सिंह तुम जिंदा हो, हम सबके दिलों में'
शहीद भगत सिंह को हमारा शत-शत नमन...............

7 टिप्‍पणियां:

  1. मित्रों,
    शहीद भगतसिंह एक श्रेष्ठ प्रचारक थे और साथ ही कुशल वक्ता तो वे थे ही,लेखनी और विचारों में पैनापन और पकड़ भी थी।हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी व पंजाबी भाषाओं पर उनका अधिकार था।अमृतसर से निकलने वाले उर्दू अखबारों में वे नियमित लेख लिखते थे।छद्म नामों से उन्होंने कीर्ति में लिखा।हिन्दी प्रताप,प्रभा,महारथी,चांद में भगतसिंह ने लिखा।क्रान्तिकारियों के विषय में अध्ययन करने से मन अशान्त हो जाता है।कैसे थे ये मतवाले?आजाद भारत में लोग जीवन जीने के लिए रोज मर रहें हैं और ये मतवाले आने वाली नस्लों को जीवित करने के उद्देश्य से हॅंसते-हॅंसते फाँसी के फंदे पर झूल गये।फिर भी आज आजाद भारत में बेकारी,बेरोजगारी,शोषण,विषमता,भुखमरी,भ्रष्टाचार,कुशासन,अपने चरम पर है।
    क्या क्रान्तिकारियों का आजाद भारत बन गया है ?
    'जय हिन्द,जय हिन्दी'

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  2. "जब गतिरोध की स्थिति
    लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है,
    तो वे किसी भी प्रकार की
    तब्दीली से हिचकते हैं,
    इस जड़ता और निष्क्रियता को तोडऩे के लिए
    एक क्रांतिकारी स्पिरिट की जरूरत होती है,
    इस परिस्थिति को बदलने के लिए
    यह जरूरी हैकि क्रांति की स्पिरिट
    ताजा की जाए ताकि
    इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो।"
    'भगत सिंह तुम जिंदा हो, हम सबके दिलों में'
    शहीद भगत सिंह को हमारा शत-शत नमन...............

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  3. SHAHEED BHAGATSINGH jaise krantiveeron ki yad dilon me taza karne ke liye aapko sadhuvaad!

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  4. शहीद भगत सिंह को हमारा शत-शत नमन...............

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  5. insaneat ki ruha me harkat pedaa honi chhiye. Aap n Bhagat singh ke vicharo ko aamgan tak phuchane ka bada sarthk prayatn ky hi . Is ki liye aap ko sadhuvad. Bhgat singh aaj bhi India Ur Pakisthan done hi jaghan par most respected person hi.this is very important factor in the post independent history.

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  6. परमादरणीय गुरुदेव.....
    बहुत दिल को छू लेने वाला भाव है आपका.....
    आँसू गिरने की आहट नही होती ,
    दिल के टूटने की आवाज नहीं होती ,
    गर होता उन्हें एहसास दर्द का ,
    तो दर्द देने की आदत नहीं होती !

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  7. कर्ज अदा करूँ माँ कैसे,
    तेरे प्यार की |
    तूँ भक्ति -शक्ति सत्य चेतना ,
    शेषनाग की वेदना हो!
    हो लक्ष्मी सरस्वती साधना ,
    काली दुर्गा आराधना हो |
    तूँ भुवनेश्वरी भ्व्हारिणी ,
    माँ मुझमें शक्ति दो !
    तुम बुद्धिमान सम्मान ज्ञान ,
    पार्वती की कल्पना हो |
    ऐश्वर्य शक्ति से भरी जननी,
    माँ अपनी आराधना दो |
    ऋषिमुनियों की वंद वंदना ,
    सती सी माँ साधना हो |
    ज्यों गंगा निर्मल माता तू ,
    पापी का पाप मिटाती हो|
    जो एक बार यमुना को पाया ,
    निखिल किया काया को.!
    छुधा तड़पती तू दुलराती ,
    हम सोते तुम दूध पिलाती |

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