मंगलवार, 5 जुलाई 2011

'भारतीय ज्योतिषशास्त्र और इसके भेद'



भारतीय ज्योतिष का प्राचीनतम इतिहास (खगोलीय विद्या) के रूप सुदूर भूतकाल के गर्भ मे छिपा है,केवल ऋग्वेद आदि प्राचीन ग्रन्थों में स्फ़ुट वाक्याशों से ही आभास मिलता है,कि उसमे ज्योतिष का ज्ञान कितना रहा होगा। निश्चित रूप से ऋग्वेद ही हमारा प्राचीन ग्रन्थ है,बेवर मेक्समूलर जैकीबो लुडविंग ह्विटनी विंटर निट्ज थीवो एवं तिलक ने रचना एवं खगोलीय वर्णनो के आधार पर ऋग्वेद के रचना का काल ४००० ई. पूर्व स्वीकार किया है। चूंकि ऋग्वेद या उससे सम्बन्धित ग्रन्थ ज्योतिष ग्रन्थ नही है,इसलिये उसमे आने वाले ज्योतिष सम्बन्धित लेख बहुधा अनिश्चित से है,परन्तु मनु ने जैसा कहा है कि "भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिद्धयति"। इससे स्पष्ट है कि वेद त्रिकाल सूत्रधर है,और इसके मंत्र द्रष्टा ऋषि भी भी त्रिकालदर्शी थे ।
ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।
ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है ।
महर्षि वशिष्ठ का कहना है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यदायी इस रहस्यमय विद्या का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से धर्म-अर्थ-मोक्ष और अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख-सम्पन्नता व प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं तथा मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग-लोक को शोभित करते है |

ग्रह नक्षत्रों के परिज्ञान से काल का उद्बोधन करने वाला शास्त्र ज्योतिष शास्त्र ही है। प्रन्तु उस उद्बोधन के साथ आकाशीय चमत्कार को देखने के लिये गणित ज्योतिष के तीन भेद किये गये हैं:-
१.सिद्धान्त गणित--
जिस गणित के द्वारा कल्प से लेकर आधुनैक काल तक के किसी भी इष्ट दिन के खगोलीय स्थितिवश गत वर्ष मास दिन आदि सौर सावन चान्द्रभान को ज्ञात कर सौर सावन अहर्गण बनाकर मध्यमादि ग्रह स्पष्टान्त कर्म किये जाते है,उसे सिद्धान्त गणित कहा जाता है।
२. तंत्र गणित--
जिस तंत्र द्वारा वर्तमान युगादि वर्षों को जानकर अभीष्ट दिन तक अहर्गण या दिन समूहों के ज्ञान के मध्यमादि ग्रह गत्यादि चमत्कार देखा जाता है,उसे तंत्र गणित कहा जाता है।
३. करण गणित
वर्तमान शक के बीच में अभीष्ट दिनों को जानकर अर्थात किसी दिन वेध यंत्रों के द्वारा ग्रह स्थिति देख कर और स्थूल रूप से यह ग्रह स्थिति गणित से कब होगी,ऐसा विचार कर तथा ग्रहों के स्पष्ट वश सूर्य ग्रहण आदि का विचार जिस गणित से होता है,उसे करण गणित कहते हैं ।
तंत्र तथा करण ग्रन्थों का निर्माण वेदों से हजारों वर्षों के उपरान्त हुआ,अत: इस पर विचार न करके वेदों में सिद्धान्त गणित सम्बन्धी बीजों का अन्वेषण आवश्यक होगा। वेदों में सूर्य के आकर्षण बल पर आकाश में नक्षत्रों की स्थिति का वर्णण मिलता है ।

संपूर्ण भारतीय ज्योतिषशास्त्र को मूलतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है---
(१) सिद्धान्त ज्योतिष:-
काल गणना की एक विशेष सूक्ष्म माप त्रुटि से लेकर प्रलय के अन्त तक कालों का आकलन, उनका मान, उनका भेद, उनका चार (चलन), आकाश में उनकी गति आदि क्रम से द्विविध प्रकार की गणित से उनके प्रश्न तथा उत्तर जिसमें निहित है। पृथ्वी और आकाश के मध्य स्थित ग्रहों का जिसमें कथन और उनको जानने, वैध करने का यन्त्र आदि वस्तुओं का जिसमें गणित निहित हो, उस प्रबन्ध को विद्वानों ने सिद्धान्त रूप से अभिहित किया है।

सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:--
सिद्धान्त ग्रन्थों में सूर्य सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्धान्त, ब्रह्म सिद्धान्त, रोमक सिद्धान्त, पौलिश सिद्धान्त, ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त, पितामह सिद्धान्त आदि प्रसिद्ध सिद्धान्त ग्रन्थ हैं ।
सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम:--
जिन्होंने ज्योतिष शास्त्र को चलाया ऐसे ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं। ये हैं- ब्रह्मा, आचार्य, वशिष्ठ, अत्रि, मनु, पौलस्य,रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पाराशर |


(२) संहिता ज्योतिष:--
ग्रहों की चाल, वर्ष के लक्षण, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, कण, मुहूर्त, ग्रह-गोचर भ्रमण, चन्द्र ताराबल, सभी प्रकार के लग्नों का निदान, कर्णच्छेद, यज्ञोपवीत, विवाह इत्यादि संस्कारों का निर्णय तथा पशु-पक्षी चेष्टा ज्ञान, शकुन विचार, रत्न विद्या, अंग विद्या, आकार लक्षण, पक्षी व मनुष्य की असामान्य चेष्टाओं का चिन्तन संहिता विभाग का विषय है।

संहिता ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:-
संहिता ग्रन्थों में वृहत्संहिता, कालक संहिता, नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृगु संहिता, अरुण संहिता, रावण संहिता, लिंग संहिता, वाराही संहिता, मुहूर्त चिन्तामण इत्यादि प्रमुख संहिता ग्रन्थ हैं।

संहिता ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम:-
मुहूर्त गणपति, विवाह मार्तण्ड, वर्ष प्रबोध, शीघ्रबोध, गंगाचार्य, नारद, महर्षि भृगु, रावण, वराहमिहिराचार्य सत्य-संहिताकार रहे हैं ।

(३) होरा शास्त्र:-
राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, चलित, द्वादशभाव, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल बल, चेष्टा बल, ग्रहों के धातु, द्रव्य, कारकत्व, योगायोग, अष्टवर्ग, दृष्टिबल, आयु योग, विवाह योग, नाम संयोग, अनिष्ट योग, स्त्रियों के जन्मफल, उनकी मृत्यु नष्टगर्भ का लक्षण प्रश्न एवं ज्योतिष के फलित विषय पर जहाँ विकसित नियम स्थापित किए जाते हैं, वह होरा शास्त्र कहलाता है ।

होरा शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:-
सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ वृहद पाराशर होरा शास्त्र मानसागरी, सारावली, वृहत्जातक, जातकाभरण, चमत्कार चिन्तामणि, ज्योतिष कल्पद्रुम, जातकालंकार, जातकतत्व होरा शास्त्र इत्यादि हैं।

होरा शास्त्र के प्रमुख आचार्यों के नाम:-
पुराने आचार्यों में पाराशर, मानसागर, कल्याणवर्मा, दुष्टिराज, रामदैवज्ञ, गणेश, नीपति आदि हैं |
इन तीन स्कन्धों वाला उत्तम भारतीय ज्योतिषशास्त्र ही वेदों का पवित्र नेत्र कहा गया है ।

'जय हिंद,जय हिंदी'

3 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे परमादरणीय परमप्रिय गुरुदेव,
    हम चाहे बात कितनी भी बड़ी बड़ी कर ले, लेकिन सच्चाई तो हम सभी जानते हैं, हमारा जीवन-मार्ग का रास्ता स्वयं ही सदगुरुदेव बनाते जाते हैं , बे पहले भी अंगुली पकडे थे अब भी हैं और कल भी रहेंगे, अंतर केवल इतना है क़ि जिसकी देखने की आँखे हैं वो देख लेता है और जिनकी नहीं हैं वे अब भी कुतर्कों के भंवर में उलझे हुए हैं......

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  2. परमादरणीय गुरुदेव,
    आपका लेखन सदैव उच्च कोटि का होता है | हम तो आपकी कक्षा में आपके द्वारा साक्षात् ज्ञान लेने वाले भाग्यशाली शिष्य हैं |
    आपका आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहे |

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  3. परमादरणीय गुरुदेव,
    आपका लेखन सदैव उच्च कोटि का होता है | हम तो आपकी कक्षा में आपके द्वारा साक्षात् ज्ञान लेने वाले भाग्यशाली शिष्य हैं |
    आपका आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहे |

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