शनिवार, 16 जुलाई 2011

'गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें'



कल १५ जुलाई,शुक्रवार २०११ को गुरु पूर्णिमा थी ....,समस्त स्नेही और विद्द्वतजन को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें |
'गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥'
गुरु को अपनी महत्ता के कारण ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है इसको ही गुरू पूर्णिमा कहते हैं । इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है । इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं । ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं । न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं । जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
गुरू पूर्णिमा का यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे ।
'राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥'
गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है । ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका है । गुरु की महत्ता को सभी धर्मों और सम्प्रदायों ने माना है। प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है । भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं । भारतीय संस्कृति के वाहक शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक । गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है । अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी है ।  बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है ।
भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है । इस पावन पर्व पर मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं ।
'हरिहर आदिक जगत में पूज्य देव जो कोय ।
सदगुरु की पूजा किये सबकी पूजा होय ॥'
आप कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता, सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते, जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता, तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं । देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती ।
एक सदगुरु अंतःकरण के अंधकार को दूर करते हैं । आत्मज्ञान के युक्तियाँ बताते हैं गुरु प्रत्येक शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं। वे जगमगाती ज्योति के समान हैं जो शिष्य की बुझी हुई हृदय-ज्योति को प्रकटाते हैं । गुरुमेघ की तरह ज्ञानवर्षा करके शिष्य को ज्ञानवृष्टि में नहलाते रहते हैं । गुरु ऐसे वैद्य हैं जो भवरोग को दूर करते हैं। गुरु वे माली हैं जो जीवनरूपी वाटिका को सुरभित करते हैं । गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं। इस दुःखरुप संसार में गुरुकृपा ही एक ऐसा अमूल्य खजाना है जो मनुष्य को आवागमन के कालचक्र से मुक्ति दिलाता है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी गुरुपूर्णिमा का विशेष महत्व है। जिन लोगों की कुंडली में गुरुप्रतिकूल स्थान पर होता है, उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते है। वे लोग यदि गुरु पूर्णिमा के दिन नीचे लिखे उपाय करें तो उन्हें इससे काफी लाभ होता है। यह उपाय इस प्रकार हैं-
(१)- भोजन में केसर का प्रयोग करें और स्नान के बाद नाभि तथा मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं।
(२)- साधु, ब्राह्मण एवं पीपल के वृक्ष की पूजा करें।
(३)- गुरु पूर्णिमा के दिन स्नान के जल में नागरमोथा नामक वनस्पति डालकर स्नान करें।
(४)- पीले रंग के फूलों के पौधे अपने घर में लगाएं और पीला रंग उपहार में दें।
(५)- केले के दो पौधे विष्णु भगवान के मंदिर में लगाएं।
(६)- गुरु पूर्णिमा के दिन साबूत मूंग मंदिर में दान करें और 12 वर्ष से छोटी कन्याओं के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लें।
(७)- शुभ मुहूर्त में चांदी का बर्तन अपने घर की भूमि में दबाएं और साधु संतों का अपमान नहीं करें।
(८)- जिस पलंग पर आप सोते हैं, उसके चारों कोनों में सोने की कील अथवा सोने का तार लगाएं ।
'सदगुरु जिसे मिल जाय सो ही धन्य है जन मन्य है।
सुरसिद्ध उसको पूजते ता सम न कोऊ अन्य है॥
अधिकारी हो गुरुदेव से उपदेश जो नर पाय है।
भोला तरे संसार से नहीं गर्भ में फिर आय है॥'

जय हिंद,जय हिंदी'

8 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर!गुरु-महिमा को अत्यंत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने. हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. हे गुरुवर !
    "वह शिष्य ही क्या जो आपसे मिलने की दुआ न करे ?
    भूल कर अपने गुरुवर को जिंदा रहूँ कभी ये भगवान न करे ।
    हमने जो रंग गुरु भक्ति का लगाया,आप उसे छूटने न देना ।
    गुरुदेव आपकी याद का दामन,आप कभी छूटने न देना ॥
    हमारी हर साँस में आप और आपका ही नाम रहे ।
    हमारी प्रीति की यह डोरी,आप कभी टूटने न देना ॥
    हमारी श्रद्धा की यह डोरी,आप कभी टूटने न देना ।
    हमारे बढ़ते रहे कदम सदा आपके ही इशारे पर ॥
    गुरुदेव !आपकी कृपा का सहारा छूटने न देना।
    हम सच्चे बनें और सच्चाई के मार्ग पर चलें,
    भूल से भी हमें झूट के मार्ग पर जाने ना देना ।
    फरेब और धोखे की रीत है इस दुनिया में,
    आपकी भक्ति को अब हमसे छूटने ना देना ॥
    आपके प्रेम का यह रंग हमें रहेगा सदा याद,
    मुश्किलों में भी यह कभी घटने ना देना।
    मुश्किलों से भरकर रखी है करुणा आपकी,
    मुश्किलों से थामकर रखी है श्रद्धा-भक्ति आपकी,
    अपनी कृपा का यह छत्र कभी हटने ना देना ॥
    आपकी भक्ति का सहारा कभी छूटने ना देना ।
    आपकी प्रीति की यह डोर कभी टूटने ना देना ॥"
    हे गुरुदेव ! गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम ||
    आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं, हम भी उसी पद में विशांति पाने के काबिल हो जायें,अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें और ईश्वर करे कि ईश्वर में हमारी भक्ति समाहित हो जाये || हे गुरुदेव !आपके साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये ||मैं प्रार्थना करता हूँ, हे गुरुदेव !आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे, जब तक है मेरी यह जिन्दगी है || प्रभु करे कि प्रभु के नाते आपके साथ हमारा हमेशा गुरु-शिष्य का सम्बंध बना रहे ||
    'जय हिंद,जय हिंदी'

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  3. *
    प्रिय राजेश भाई,
    आपकी सार्थक टिप्पणियों हेतु हार्दिक आभार ||
    ऐसा स्नेह एवम कृपा का भाव बनाये रखियेगा |
    'जय हिंद,जय हिंदी'

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  4. तांत्रोक्त गुरु पूजन साधना की पूर्ण विधि:--

    तांत्रोक्त गुरु पूजन साधना के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर, स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें| बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर केसर से “ॐ” लिखी ताम्बे या स्टील की प्लेट रखें| उस पर पंचामृत से स्नान कराके “गुरु यन्त्र” व “कुण्डलिनी जागरण यन्त्र” रखें| सामने गुरु चित्र भी रख लें| अब पूजन प्रारंभ करें|
    पवित्रीकरण-
    बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से स्वतः पर छिड़कें -
    'ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावस्थां गतोऽपि वा |
    यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ||'

    आचमन-
    निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -
    'ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
    ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |
    ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा |'

    सूर्य पूजन-
    कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -
    'ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च |
    हिरण्येन सविता रथेन याति भुनानि पश्यन ||
    ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं |
    जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ||'

    ध्यान-
    'अचिन्त्य नादा मम देह दासं, मम पूर्ण आशं देहस्वरूपं |
    न जानामि पूजां न जानामि ध्यानं, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||
    ममोत्थवातं तव वत्सरूपं, आवाहयामि गुरुरूप नित्यं |
    स्थायेद सदा पूर्ण जीवं सदैव, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ||'

    आव्हान-
    'ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |
    ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |
    ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि |'

    स्थापन-
    गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -
    'श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः |
    श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः |
    श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः |
    श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः |
    श्री विष्णुदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः |'

    पाद्य-
    'मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं समस्त रूप रूपं गुरुम् आवाहयामि पाद्यं समर्पयामि नमः |'

    अर्घ्य-
    'ॐ देवो तवा वई सर्वां प्रणतवं परी संयुक्त्वाः सकृत्वं सहेवाः |
    अर्घ्यं समर्पयामि नमः |'

    गन्ध-
    'ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि |
    ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – स्नानं समर्पयामि |
    ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि |
    ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि |
    ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि |
    ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि |
    ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि |
    ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतां समर्पयामि |
    ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारां समर्पयामि |'

    पुष्प, बिल्व पत्र-
    'तमो स पूर्वां एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया स
    शुद्ध बुद्ध प्रबुद्ध स चिन्त्य अचिन्त्य वैराग्यं नमितां
    पूर्ण त्वां गुरुपाद पूजनार्थं
    बिल्व पत्रं पुष्पहारं च समर्पयामि नमः |'

    दीप-
    'श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि |
    श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि |
    श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि |
    श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि |
    श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि |
    श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि |
    श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि |
    श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि |'

    नीराजन-
    ताम्रपात्र में जल, कुंकुम, अक्षत अवं पुष्प लेकर यंत्रों पर समर्पित करें -
    'श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि |
    श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
    श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
    श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि |
    श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि |'

    पञ्च पंचिका-
    अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -
    'पञ्चलक्ष्मी
    श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |'

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  5. पञ्च पंचिका के पश्चात् यह करें..........
    पञ्चकोश-
    'श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |'

    पञ्चकल्पलता-
    'श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |'

    पञ्चकामदुघा-
    'श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |'

    पञ्चरत्न विद्या-
    'श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |
    श्री मन्मालिनी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि |'

    श्री मन्मालिनी-
    अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके -
    'ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः | कं खं गं घं ङं | चं छं जं झं ञं | टं ठं डं ढं णं | तं थं दं धं नं | पं फं बं भं मं | यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः |'

    मूल मंत्र--
    'ॐ निं निखिलेश्वरायै ब्रह्म ब्रह्माण्ड वै नमः |'

    इस मंत्र का मूंगा माला से १०१ माला जप करें |

    प्रार्थना--
    'लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् |
    शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
    त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं |
    क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
    मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं |
    सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
    अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं |
    अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ||
    यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः |
    तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ||'

    समर्पण--
    'ॐ सहनावतु सह नौ भुनत्तु सहवीर्यं करवावहै,
    तेजस्विनां धीतमस्तु मा विद्विषावहै |
    ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतं |
    ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिना |
    ॐ शान्तिः | शान्तिः || शान्तिः |||'

    (सौजन्य–'श्री रामचैतन्य शास्त्री कृत तांत्रोक्त गुरु पूजन')

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  6. परमादरणीय गुरुदेव,
    आपको गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें |
    हम चाहे बात कितनी भी बड़ी बड़ी कर ले,लेकिन सच्चाई तो हम सभी जानते हैं, हमारा जीवन-मार्ग का रास्ता स्वयं ही सदगुरुदेव बनाते जाते हैं , बे पहले भी अंगुली पकडे थे अब भी हैं और कल भी रहेंगे, अंतर केवल इतना है क़ि जिसकी देखने की आँखे हैं वो देख लेता है और जिनकी नहीं हैं वे अब भी कुतर्कों के भंवर में उलझे हुए हैं......
    हे गुरुदेव ! गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम ||
    आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं, हम भी उसी पद में विशांति पाने के काबिल हो जायें,अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें और ईश्वर करे कि ईश्वर में हमारी भक्ति समाहित हो जाये ||
    हे गुरुदेव !आपके साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये ||
    प्रभु करे कि प्रभु के नाते आपके साथ हमारा हमेशा गुरु-शिष्य का सम्बंध बना रहे ||
    'जय हिंद,जय हिंदी'

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  7. आपको भी गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें

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  8. हे गुरुदेव !
    गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम ||
    !आपके साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये ||
    प्रभु करे कि प्रभु के नाते आपके साथ हमारा हमेशा गुरु-शिष्य का सम्बंध बना रहे ||

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