शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

"जय हिंद ,जय हिंदी"

बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है. वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढी है वैसी किसी और भाषा में नहीं. विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकडों छोटे-बडे क़ेंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है. विदेशों से 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं. यूएई क़े 'हम एफ एम' सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं !

'हिंदी की आवश्यकता'

हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ और समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न न किए जाने पर भी विकास की गति बहुत तेज है. ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे संबंधित हिंदी शब्दों का भी विश्व की दूसरी भाषाओं में विलय हो रहा है. भारतीय संगीत (चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक) हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी. लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं. ऐसी संस्कृति जिसे पाने के लिए हिंदी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है !

-'लोकप्रियता की मिसाल'-

सन्‌ 1995 के बाद से टी.वी. के चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बढ़ी है।इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाइट चैनलों ने भारत में अपने कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अंग्रेजी भाषा से किया था; उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन करना पड़ा है। अब स्टार प्लस, जी.टी.वी., जी न्यूज, स्टार न्यूज, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक आदि टी.वी.चैनल अपने कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया तथा खाड़ी के देशों के कितने दर्शक इन कार्यक्रमों को देखते हैं- यह अनुसन्धान का अच्छा विषय है।
'कौन बनेगा करोडपति' की लोकप्रियता ने मीडिया के क्षेत्र में हिंदी के झंडे गाड दिए, कमाई तथा प्रसिद्धि के अनेक कीर्तिमान भंग कर दिए तथा आने वाले समय में हिंदी के सुखद भविष्य के सपने जगा दिए हैं। आज सभी चैनल तथा फ़िल्म निर्माता अंग्रेजी क़ार्यक्रमों और फ़िल्मों को हिंदी में डब करके प्रस्तुत करने लगे हैं. जुरासिक पार्क जैसी अति प्रसिध्द फ़िल्म को भी अधिक मुनाफ़े के लिए हिंदी में डब किया जाना जरूरी हो गया। इसके हिंदी संस्करण ने भारत में इतने पैसे कमाए जितने अंग्रेजी संस्करण ने पूरे विश्व में नहीं कमाए थे।[१] आज भारत में सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाएं तथा उनके पाठक हिंदी में हैं। सर्वाधिक फ़िल्में हिंदी में बनती हैं !

-'हिंदी की शक्ति एवं सामर्थ्य'-

हिंदी भारत की नहीं, पूरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र की भाषा है. यह विशाल क्षेत्र अधिकतर मध्यम वर्ग को अपने में समेटे है. इस मध्यम वर्ग की क्रय-शक्ति पिछले कुछ वर्षों में बहुत बढी है. खाडी देशों का मजदूर वर्ग जो भारत पाकिस्तान बंगलादेश आदि देशों से आता है सबसे अधिक सहजता हिंदी बोलने में समझता हैं. वह यहां सादा जीवन जीता है लेकिन अपनी आमदनी का एक बडा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों की खरीद में व्यय करता है. आज अपने माल के प्रचार-प्रसार, पैकिंग, गुणवत्ता आदि के लिए हिंदी को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता है और उनकी यही विवशता हिंदी की शक्ति एवं सामर्थ्य की द्योतक है !

हिन्दी का प्रचार अच्छे साहित्य के निर्माण से ही हो सकता है। अगर आप इस प्रदेश में अपने साहित्य और मातृभाषा की मर्यादा रखना चाहते हैं तो अपना साहित्य समृद्ध कीजिये और उसके उत्तम अंगों का परिचय कराइये। हमें दुनिया भर के झमेलों में पड़ कर अपनी शक्ति नष्ट करने अपेक्षा घर संभालने में अपनी सारी शक्ति लगानी चाहिये। अपने अन्य भाषाभाषी मित्रों से हमें साफ़ कह देना चाहिये कि हिन्दी प्रचार का काम हमारे स्वार्थ का नहीं है। इसमें अगर आपको कोई फायदा मालूम होता हो तो सीखिये, नहीं तो अपने-अपने रास्ते जाइये। इसमें इतना और जोड़ देना चाहिये कि अगर आपको इसमें फायदा मालूम होता है तो कृपापूर्वक हमें आज्ञा दीजिये, हम यथासमय सेवा करने के लिये तैयार हैं ।
विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे क्रान्तिकारी थे जिन्हे ब्रिटिश सरकार ने दुगुनी सजा दी थी। उन्होंने लोहे की कील से जेल की दिवारों पर अपना साहित्य लिखते रहे। पुस्तकें संचित ज्ञान का भण्डार है जो अनुभूतियों को प्रमाणित करती है।

ग्लोबल मंदी के इस दौर में इस एक साहित्यकार ने इस साहित्यक उद्यम को जन्म दिया है, जिसमें मंदी से लड़न के बीज छिपे हैं। इससे उसकी कविता, कहानी, उपन्यास यहां तक कि आत्मकथा तक में असलीपन की प्रामाणिक महक आती है। यह ईथनिक साहित्य है। इत्यादि। यहां उसी महान जीवन से प्रेरणा ली जा रही है। दी जा रही है। कालांतर में इस साहित्यकार को कई बड़े सम्मान मिले। नोबेल मिलने से इसलिए रह गया क्योंकि ये हिंदी में लिखते थे और नोबेल वाले ‘एंटी-हिंदी ’ हैं ही। हे पाठकजन! उक्त प्रसंग को गल्प न समझना। सच समझना। ऐसा हुआ है। यह साहित्यकार कौन है? क्या नाम है? इसकी रचनाओं के नाम क्या हैं? उसको कौन से सम्मान मिले हैं। इन सवालों के जबाव हम गोपनीय ही रखना चाहेंगे। हमें यह साहित्यकार इस मंदी के दौर में एक आदर्श मॉडल लगा इसलिए साहित्य के दुर्लभ इतिहास से इसका परिचय निकाला और आपके सामने रख दिया। उसका दिया सबसे बड़ा साहित्यिक सबक यह है: निवेश करो और साहित्य की रक्षा करो। उसने अपने जमाने में सम्मान की राशि का निवेश किया और करोड़पति होने तक गया। उसका जीवन कहता है सम्मान राशि साहित्य में निवेश करिए। मंदी के दौर में सेनसेक्स नीचे जा रहा है कई ब्लूचिप कंपनियां गिर रही हैं। सबसे बड़ी कंपनी के शेयर बीस रुपए में मिल रहे हैं जा कभी तीन हजार तक पहुंचे थे। कल को फिर पहुंचेंगे। इसलिए खरीद डालो! पांच-सात साल बाद तुम करोड़पति बनोगे। बीस हजार का इनाम करोड़पति बना देगा। एक लाख का अरबपति बनाएगा। टमाटर के दाम में जब शेयर मिल रहे हों तो टमाटर न खरीदकर शेयर खरीद लो। एक दिन टमाटर न खाओगे तो भूखे नहीं रह जाओगे। हिंदी में इस ट्रेडिंग की बड़ी जरूरत है। जितनी राशि मिले उसके एक हिस्स को बाजार में लगाओ। अरे आलू के भाव शेयर हैं तो सदा आलू के भाव नहीं रहने। जब उठेंगे ता करोड़पति बना के जाएंगे। साहित्य का एक काम मंदी से लडना भी है।
अपना साहित्य प्रकाशित करना तथा अन्य प्रकाशित साहित्य पर अपना मत प्रकट करना यह एक अच्छा अनुभव होगा| यह एक सामुदायिक जालस्थल है जहां आप अपने लोगों से हिंदी मे बाते कर सकेंगे| हिंदी साहित्य तथा अन्य सम-समान विचारों के लोगों से मिलने का अनुभव भी खास रहेगा |



-'हिंदी के प्रति गंभीर दुनिया'-

भारतीयों ने अपनी कडी मेहनत, प्रतिभा और कुशाग्र बुध्दि से आज विश्व के तमाम देशों की उन्नति में जो सहायता की है उससे प्रभावित होकर समझ गए हैं कि भारतीयों से अच्छे संबंध बनाने के लिए हिंदी सीखना कितना जरूरी है। हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 114 मिलियन डॉलर की एक विशेष राशि अमरीका में हिंदी, चीनी और अरबी भाषाएं सीखाने के लिए स्वीकृत की है। इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है।

-'सहयोग की आवश्यकता'-

आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी का वर्चस्व तोड डाला है और हिंदीभाषी करोड़ों की आबादी कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर सकती हैं. आवश्यकता इस बात की है, कि हिंदी के प्राध्यापक, साहित्यकार, संपादक एवं प्रकाशक कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करें और इसके सर्वांगीण विकास के लिए कदम बढाएं. प्रवासी भारतीयों में हजारों लोग हिंदी के विकास में संलग्न हैं. जिसमें से तीन सौ से अधिक से आप वेब पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं. धैर्य के साथ इनसे संपर्क बनाते हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है !

"जय हिंद ,जय हिंदी"

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