सोमवार, 25 अप्रैल 2011

'इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु)'


इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु) विषय पर एक लम्बे अरसे से चिंतन-मनन हो रहा है, अभी हालफ़िलहाल में प्रदर्शित फिल्म'गुजारिश' में भी इसी अवधारणा को दर्शाने का प्रयास है ! मुझे भी 'इच्छा-जन्म और इच्छा-मृत्यु' पर चिंतन करना अच्छा लगता है, यदि आपके इस सन्दर्भ में समाजोपयोगी विचार हों तो सहर्ष आमंत्रित हैं, टिप्पणी के रूप में यहाँ प्रकट करें.....
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय।नवानि गृह्णाति नरोsपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि।अन्यानि संयाति नवानि देही।।"
जैसे मनुष्य फटे पुराने कपड़ो को त्याग कर दूसरे नए कपड़े पहन लेता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर को धारण करता है । आत्मा अमर है कितुं शरीर का नाश भी एक सत्य है। इससे डरना नही चाहिए। हमें शरीर एक साधन के रूप में मिला है, इसे स्वस्थ रखते हुए हमें आत्म ज्ञान प्राप्त करना है और सच्चिदानंद ईश्वर को समझने और जानने का प्रयत्न करना है।
"ओ3म् त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।ऊर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माSमृतात्।।"
शुद्ध, सुगंध युक्त शरीर, आत्मा व समाज के बल को बढ़ाने वाला जो रुद्र रुप ईश्वर है उसकी हम निरंतर स्तुति करें। ईश्वर की कृपा से जैसे खरबूज़ा पक कर लता के बंधन से छूट कर अमृत के समान हो जाता है वैसे ही हम लोग भी प्राण व शरीर के वियोग से छूट जाएं और मोक्ष रूप सुख से श्रद्धा रहित कभी न हों।महा मृत्युंजय मंत्र में शुद्ध सुगंध युक्त और पुष्टिकारक रुद्र की उपासना करने की बात की गई है। यह मंत्र यजुर्वेद के तीसरे अध्याय का 60वां मंत्र है। उपमा अलंकार के द्वारा ईश्वर की ही स्तुति करने के लिए कहा गया है। परमात्मा से अलग किसी अन्य की प्रार्थना न करें, इस बात पर बल दिया गया है। जैसे खरबूज़ा पक कर, अमृत के समान हो कर दूसरों के खाने के लिए तैयार हो जाता है वैसे ही मनुष्य भी अपनी पूर्ण आयु को भोग कर ही शरीर का त्याग करें। मोक्ष प्राप्ति के लिए अनुष्ठान से, इच्छा से कभी अलग न हों।आज कल शिव जी के भक्त त्र्यंबक का अर्थ शिव के साकार रुप से करते हैं और दावा करते हैं कि इस मंत्र के पाठ से मृत व्यक्ति में भी जीवन का संचार हो सकता है। उनका मानना है कि इसका जाप करने से हम भयानक से भयानक रोग से भी मुक्त हो सकते हैं। मृत्यु के बंधन से मुक्त हो सकते हैं। कभी कभी तो कुछ पौराणिक लोग पंडितों से मंत्र का पाठ करवाते हैं और सोचते हैं कि इसका फल उन्हें मिल जाएगा।
वेदों के बाद हमारे स्मृतिकारों और धर्माचार्यों ने श्राद्धीय विषयों को बहुत व्यापक बनाया है,और जीवन के प्रत्येक अंग के साथ सम्बद्ध कर दिया,मनुस्मृति से लेकर आधुनिक निर्णयसिन्धु धर्मसिन्धु तक की परम्परा यह सिद्ध करती है कि इस विधि में समय समय पर युगानुरूप संशोधन परिवर्धन और परिवर्तन होता रहा है,नयी मान्यता नयी परिभाषा नयी विवेचना और तदुनुरूप नयी व्यवस्था समान होती रही है,दुर्भाग्य की बात यह है कि विदेशी आधिपत्य के बाद जब हिन्दू समाज पंगु हो गया,तब समाज का नियंत्रण विदेशी पद्धति और विधि विधान से होने लगा,तब युग की आवश्यकता के अनुरूप नयी परिभाषा व्यवस्थाक्रम भी अवरुद्ध हो गया,फ़लस्वरूप उपयोगितावाद मानव मन की तुष्टि अपने पुरातन संस्कारों से नही हो पा रही है,और वह वेदान्ती मानव संस्कार विहीन होता जा रहा है,जीवित माता पिता भाई बहिन रिस्तेदार भी आज मात्र उपयोगितावाद की कसौटी पर कसे जा रहे है,तब हमारी आस्था स्वयं पर से ही विचलित होती जा रही है,देश में व्याप्त समस्त अशान्ति विक्षोभ असन्तोष अनैतिकता आदि का मूल कारण यही है,यही कारण द्वापर में यादव कुल को समाप्त करने के लिये पैदा हुये थे,जब एक ऋषि से मजाक करने और उनकी सत्यता को परखने के चक्कर में एक युवक के पेट में लोहे की कढाही बांध कर पूंछा गया था कि इसके पेट में क्या है,और उन ऋषि को सत्यता का पता चलते ही उन्होने कह दिया था कि इसके पेट में वही है,जो इस कुल का विनाश करेगा,डर की बजह से उस कढाही को समुद्र के किनारे पर पत्थर पर घिसा गया,बचे हुये टुकडे को समुद्र में फ़ेंका गया,उस टुकडे को एक मछली के द्वारा निगला गया,बहेलिये के द्वारा उस मछली को मारा गया,और उस टुकडे को बहेलिये के द्वारा तीर पर लगाया गया,लोहे की घिसन एक घास के अन्दर व्याप्त हुई,और वही घिसन से व्याप्त घास जब यादवों के पर्व पर नहाने के समय एक दूसरे को मारने से सभी मरते गये,और अन्त में उसी कुल की बजह से भगवान श्रीकृष्ण को भी उसी बहेलिये के द्वारा बनाये गये उसी तीर का शिकार होकर इस संसार से जाना पडा था,उसी प्रकार से आजका मानव उसी प्रकार के तत्वों को पैदा किये जा रहा है,जो पूर्व की सहायतायें थीं,उनके द्वारा अभी तक मानव चलता रहा,और अब धीरे धीरे समाप्त होने के कारण वह हर तरीके से परेशान दिखाई दे रहा है,उसे रास्ता नही मिल रहा है,जिससे वह अपने और अपने कारकों को वह संभाल पाये,लेकिन जो सभी तरह से मोक्ष यानी शांति को देने वाला कारण है,वह केवल अपने ऊपर आदेश देने और शांति देने के लिये पूर्वज ही माने जा सकते हैं ।
 #गीता सार का आधार गुरु का असीम आभार #
 'ॐ तत सत'
सत्य का साक्षात्कार है नष्ट बस होता आकार है, 
मौत सत्य है, अमिट है नष्ट होता, जो विकार है !
ब्रह्माण्ड है नश्वर, अनष्ट परिवर्तन बस साकार है ,
स्थिरता, अस्थिरता के बदलाव के प्रकार है !
चक्रो का बस चक्कर है माया का अधिकार है, 
हर हरि इच्छा हर में बस हरि है हर हरि चमत्कार है !
हरि का ध्यान होगा, लगन से काम होगा,
सच सोच का मान होगा, दुशकर्म पाप समान होगा, 
जीवन सच्चा अच्छा होगा हर हरि इच्छा अब जो होगा अच्छा होगा !

योगेश्वर श्री कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवद् गीता में अर्जुन से यही कहा था कि तुम अपनी आत्मा को पहचानने का प्रयत्न करो। श्री कृष्ण ने कहा:
"न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूय:अजो नित्य: शाश्वतोSयं पुराणोन हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।
यह आत्मा न जन्म लेता है, न मरता है। न यही कि अब आगे कभी नही होगा। यह आत्मा तो अजन्मा है, नित्य है – हमेशा रहने वाला है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नही मरता। आत्मा के इस नित्य स्वरूप का ज्ञान हो जाने पर हमें मृत्यु का भय नही रहता। हम समझ जाते हैं कि जन्म तो केवल शरीर का हुआ है और जिसने जन्म लिया है उसका अंत भी होगा। लेकिन इस शरीर में रहने वाला आत्मा नित्य, शुद्ध, बुद्ध है। जैसे सागर में लहरें उठती हैं, गिरती हैं और फिर नई लहरें बनती हैं परंतु सागर का जल वही का वही रहता है।
'जीवन तो उसका कल की चिन्ता में डूबा रहता |
अपना आज तो बीत जाता,
मृत्यु-पर्यन्त तक चिन्ता रहती,कब क्या होगा, कैसे होगा ?
कौन मेरे साथ होगा ?मेरे इस सुख-संग्रह का क्या होगा ?
वह कल्पनाओं में जीता, वह आशाओं के दीप जलाए रहता |
वह एक आशा से दूसरी |
दूसरी से तीसरी असंख्य आशाओं के बन्धन में फँस जाता |
विषय-भोग में काम-क्रोध का आश्रय होता |
धन-संग्रह की चिन्ता रहती,न्याय-अन्याय,हित-अहितकिसी और का नहीं,
बस अपना न्याय,और अपना हित,जीवन का लक्ष्य होता |'

"जो तुम्हारा सत्य है, वही होगा !हर हरि इच्छा,जो आज तुम्हारा है !
कल किसी और का था, कल किसी और का होगा !"
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  • 50 of 52
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्राचीन काल में हमारे पूर्वजों को इच्छा मृत्यु का वरदान होता था, साधन हीन भारत वर्ष विश्व में सम्भवतः ऐसा प्रथम देश होगा जो युथेनेसिया ( कष्टांतक हत्या) को परोक्ष रूप में वैधानिक स्वीकृति देगा ! इस के ठीक विपरीत अपरिग्रह और संतोष भारतीय ...See More
      November 23, 2010 at 8:30pm ·  ·  13 people
    • Ashwini Kumar Purohit 
      मनोजजी भाईसाब, मेरे पास
      कोई शब्द नही है।
      आपके ज्ञान और विषय की प्रँशसा करने के लिये ।
      अनाधिकार चेष्टा के लिये क्षमाप्राथी हुँ।
      November 23, 2010 at 9:11pm via Facebook Mobile ·  ·  4 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎***
      भारतीय दर्शन के अनुसार जीवन के पश्चात् का भाव प्रस्तुत किया गया है ! जीवन और शरीर एक वस्तु नहीं हैं। जैसे कपड़ों को हम यथा समय बदलते रहते हैं, उसी प्रकार जीव को भी शरीर बदलने पड़ते हैं। तमाम जीवन भर एक कपड़ा पहना नहीं जा सकता, उसी प्रका...See More
      November 23, 2010 at 9:16pm ·  ·  13 people
    • Meenakshi Joshi pranam manoj ji. Excellent this is. I will continue commenting since am on mobile. Will write again in detail meanwhile i would like to link it on my wall.
      November 23, 2010 at 9:25pm via Facebook Mobile ·  ·  3 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      मृत्यु के पश्चात् की भारतीय-दर्शन में विषद व्याख्या की गयी है,मृत्यु किस प्रकार होती है ? इस संबंध में तत्त्वदर्शी योगियों का मत है कि मृत्यु से कुछ समय पूर्व मनुष्य को बड़े बेचैन, पीड़ा और छटपटाहट होती, क्योंकि सब नाड़ियों में से प्राण ख...See More
      November 23, 2010 at 9:28pm ·  ·  12 people
    • Meenakshi Joshi by god u have bhandar of gyan. . Really impressive.
      November 23, 2010 at 9:32pm via Facebook Mobile ·  ·  2 people
    • Meenakshi Joshi thats why i wanted u+to write n requested .thnx a lot
      November 23, 2010 at 9:34pm via Facebook Mobile ·  ·  2 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्रिय मीनाक्षी जोशी,
      मृत्यु के पश्चात् की भारतीय-दर्शन में अवधारणा बहुत रोचक है, इसके अनुसार शरीर से जी निकल जाने के बाद वह एक विचित्र अवस्था में पड़ जाता है। घोर परिश्रम से थका हुआ आदमी जिस प्रकार कोमल शैय्या प्राप्त करते ही निद्रा में पड...See More
      November 23, 2010 at 9:38pm ·  ·  8 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्रिय मीनाक्षी जोशी,
      यह सच है कि जिंदगी अपनी संपूर्ण अनिश्चितता के साथ ही मोहक होती है। जैसे बारिश अपने मौसम में भली लगती है। सर्दी हमेशा सही नहीं जाती। गर्मी की अधिकता हमें व्याकुल कर देती है। जीवन के लिए ऋतुचक्र का बने रहना जरूरी है।
      हमार...See More
      November 23, 2010 at 9:47pm ·  ·  10 people
    • Manoj Chaturvedi ‎*
      "संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।"
      November 23, 2010 at 9:52pm ·  ·  9 people
    • Rahul Sultania Wonderfull article, Sir.... I am speechless....
      November 23, 2010 at 9:56pm ·  ·  2 people
    • Poonam Singh ‎-
      परमादरणीय गुरुदेव ,
      आप अच्छा लिखें और आपके शब्द ऐसे ही हमारे दिल को छूते रहें। हमारी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं ।
      November 23, 2010 at 10:00pm ·  ·  5 people
    • Sheetal Jangir Respected Sir,
      Aapke sabhi srajan uchhkoti ke hote hain, aise hi aapka hamare sar par varad hast rahe
      regards
      November 23, 2010 at 10:05pm ·  ·  2 people
    • Anil Kumar Patil sir,
      bahut sundar aur achaa lekh hai aapka
      November 23, 2010 at 10:08pm ·  ·  2 people
    • Raghuveer Saini आदरणीय सर,
      बहुत ज्ञान से भरा लेखन लिखते हैं ! हमारा ज्ञानवर्धन आप करते रहें, प्रभु से प्रार्थना है
      November 23, 2010 at 10:11pm ·  ·  3 people
    • Manoj Chaturvedi ‎*
      आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
      आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद...............
      November 23, 2010 at 10:13pm ·  ·  8 people
    • Gita Pandit 
      इच्छा म्रत्यु पर वाद विवाद बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है |
      कभी कभी ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं जब शरीर का मोह समाप्त
      हो जाता है और आत्मा की सत्यता को स्वीकारना होता है...

      आपका aa लेख बहुत ज्ञान वर्धक है....आभार मुझे इस विषय के साथ tag...See More
      November 23, 2010 at 10:42pm ·  ·  2 people
    • Meenakshi Joshi dhanywad manoj ji. Apko darshan shastro ka atulaniy gyan hai. Marvellous learning for us all.
      Comming back to my point wat do u say is it right to ask for death if body is in vegetable state n heart is still working.
      November 24, 2010 at 7:36am via Facebook Mobile ·  ·  2 people
    • Abha Dubey कल रात "गुजारिश"देखकर आई तो आपका ये आलेख देखा ..तब तक फिल्म के प्रभाव से निकाल नहीं पाई थी |आज लेख पढ़ा ...काफी ज्ञानवर्धक है ...जहां तक इच्छा मृत्यु की बात है ,इसके लिए अवश्य कानून बनना चाहिए .....!!
      November 24, 2010 at 1:32pm ·  ·  2 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्रिय मीनाक्षी जोशी,
      यूथेनेज़िया, आत्महत्या और संथारे में भेद को समझने के लिए हमें पहले मृत्यु के भेद को वर्गीकृत कर समझना होगा. मनुष्य की मृत्यु के चार मार्ग हैं:
      1.प्रकृति द्वारा मारा जाना (दुर्घटना, बीमारी)
      2.दूसरों द्वारा मारा जाना और (ह...See More
      November 24, 2010 at 1:49pm ·  ·  10 people
    • विनेक दुबे हे ! ब्राह्मण श्रेष्ठ आपके ज्ञान और आपमे शरीर मे वास कर रहे शुभप्रभाव ( आनुवांशिक गुण ) रूपी आपके पूर्वजों को मेरा शत-शत नमन ।
      November 24, 2010 at 1:57pm ·  ·  4 people
    • Manoj Chaturvedi ‎*
      परमस्नेही भाई विनेक दुबे,
      आपने मुझे अपना स्नेह खुशी दी, मेरे लेखन को अपना आशीष दिया इसके लिए मै आपका आभार व्यक्त करता हूँ तथा धन्यवाद देता हूँ !आशा करता हूँ कि इसी तरह आपका सहयोग मिलता रहेगा।
      November 24, 2010 at 2:02pm ·  ·  9 people
    • Manoj Chaturvedi ‎*
      प्रिय आभा दुबेज़ी,
      आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
      आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !
      November 24, 2010 at 2:04pm ·  ·  9 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      परम विद्वतज़न,
      विषय के सन्दर्भ में कुछ और तथ्य महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा----
      Euthanasia मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है. जिसका अर्थ Eu=अच्छी, Thanatos= मृत्यु होता है.यूथेनेसिया, इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु)...See More
      November 24, 2010 at 2:41pm ·  ·  10 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      परम विद्वतज़न,
      *क्या कहता है भारतीय क़ानून*
      (1.)भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही अवैधानिक कृत्य हैं क्योंकि मृत्यु का प्रयास, जो इच्छा के कार्यावयन के बाद ही होगा, वह भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या (s...See More
      November 24, 2010 at 2:42pm ·  ·  10 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎***
      सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के एक मामले (ज्ञान कौर बनाम स्टेट ऑफ पंजाब) में व्यवस्था दी थी कि अनुच्छेद 21 लोगों के जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत आजादी सुनिश्चित करता है और इस अनुच्छेद में जीवन को खत्म करने का अधिकार देने की बात नहीं कही गई ह...See More
      November 24, 2010 at 7:43pm ·  ·  9 people
    • Poonam Singh ‎-
      दुनिया में कुछ देशों में लोगों को इच्छा मृत्यु का अधिकार हासिल है, जिसके अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति असाध्य रोग या किसी असह्य यंत्रणा से मुक्ति के लिए स्वेच्छा से जीवन समाप्ति की मांग करता है, तो उसे इसकी छूट दे दी जाती है। वहां जनमत भी इसके पक्ष में दिखता है। पर भारत में ऐसी स्थिति नहीं है।
      November 24, 2010 at 7:50pm ·  ·  8 people
    • Sheetal Jangir 
      आमतौर पर दया मृत्यु के दो स्वरूप नजर आते है। कुछ परिस्थितियों में रोगी की तकलीफ के मद्देनजर चिकित्सक स्वयं औषधि देकर रोगी को मृत्यु पाने में मदद करते है। वहीं एक स्थिति यह भी नजर आती है जब लाइफ सपोर्ट सिस्टम अथवा फीडिंग ट्यूब्स के सहारे जीव...See More
      November 24, 2010 at 8:09pm ·  ·  2 people
    • डॉ. आभा चतुर्वेदी 
      ‎#
      जो तुम्हारा आज है,कल वो ही था किसी और का।
      होगा परसों जाने किसका,यह नियम सरकार का।
      मग्न ही अपना समझकर,दुःखों को संजो रहे हो।
      जिसको तुम मृत्यु समझते,है वही जीवन तुम्हारा।
      ...See More
      November 24, 2010 at 9:42pm ·  ·  9 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      गुरु कीन कृपा भव त्रास गई।मिट भूख गई छुट प्यास गई।!
      नहीं काम रहा नहीं कर्म रहा।नहीं मृत्यु रहा नहीं जन्म रहा।!
      भग राग गया हट द्वेष गया।अघ चूर्ण भया अणु पूर्ण भया।
      नहीं द्वैत रहा सम एक भया।भ्रम भेद मिटा मम तोर गया।।
      ...See More
      November 24, 2010 at 9:53pm ·  ·  4 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      'इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु)' के पक्ष में एक दलील यह भी है कि ऐसे मरीज के अंग किसी दूसरे मरीज को जीवनदान देने के काम आ सकते हैं। यानी एक की मौत दूसरे के जीवन का सबब बन सकती है। करीब तीन साल पहले मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी के शिका...See More
      November 24, 2010 at 10:15pm ·  ·  5 people
    • Pawan Jain इच्छा-मृत्यु की अनुमति देने में कई पेंच हैं, जिनमें से सबसे मुख्य है.... इस प्रावधान का दुरुपयोग होने की प्रबल संभावना|
      November 24, 2010 at 10:22pm ·  ·  1 person
    • Sudha Rani Sama priy manoj,tumhara gyan bhandae dekhkar ashchaeyase bhar gai hoon.maa vageshwari kavaedan vaead
      November 24, 2010 at 10:27pm via Facebook Mobile ·  ·  3 people
    • Sudha Rani Sama priy manoj,tumhara gyan bhandar mujhey ashcharya se bhar gaya he.maa vageshwari ka varad hast sada tumharey upar ho.
      Sudha.......
      November 24, 2010 at 10:34pm via Facebook Mobile ·  ·  3 people
    • Rakesh Gautam आदरणीय सर मनोजजी ,
      बहुत ज्ञान से भरा लेखन लिखते हैं !आपके ज्ञान और विषय की प्रँशसा करने के लिये मेरे पास कोई शब्द नही है।
      November 25, 2010 at 2:09pm ·  ·  3 people
    • Rahul Sultania सरजी ,
      बहुत ज्ञान से भरा लेखन लिखते हैं.....................
      November 25, 2010 at 5:23pm ·  ·  1 person
    • Raghuveer Saini आदरणीय सर,
      आप समाज में नवचेतना और जागृति के लिए सद्विचारों को प्रकाशित करते रहें और इसी तरह भेजते रहें यही कामना है ! आपके मंगलमय जीवन व दीर्घायु की हार्दिक कामना आद्यशक्ति माँ गायत्री से करते हैं !
      हम ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ देवनागरी लिपि में लिखे बहुत ही कम लेखों से वास्ता पड़ता है, ऐसे में आपका ये प्रयास जो हमें अपनी भाषा और अपने क्षेत्र से जोड़ता है, बहुत ही सराहनीय है !
      November 25, 2010 at 9:08pm ·  ·  1 person
    • Nandita Thhakur good article....very informative...
      November 25, 2010 at 9:26pm ·  ·  1 person
    • Hansraj Sharma 
      Manoj-ji, U have raised 2 issues :-

      1) Obtaining Moksha was practised extensively in the past . For that, people had to necessarily lead a wholesome life with extreme behaviour, which of course was common ground those days. Those who didn'...See More
      November 26, 2010 at 4:59am ·  ·  1 person
    • Surya Mohan Dubey इक्छा म्रत्यु का प्रावधान मिलना चाहिए I परन्तु इस प्रावधान के मिलते ही आज की भ्रष्ट समाज इसका दुरपयोग किस किस जघन्य अपराधों में करना प्रारम्भ कर देगा की यह वरदान की जगह श्राप न हो जाय I
      November 26, 2010 at 5:35am ·  ·  2 people
    • Dinesh Tripathi 
      bhai manoj ji itna gyanvardhak aalekh padhvane ke liye aabhar. rhai sahi kasar itne sare comments our un par aap ki pratikriyayen padh kar poori ho gayee. main bhi ikchha mrityu ka samarthan nahi karta.is prakran me bhartiye adhyatm ki ek b...See More
      November 26, 2010 at 7:35am ·  ·  3 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्रिय हंसराज भाई, भाई सूर्यमोहन दुबे, भाई दिनेश त्रिपाठी,
      सर्वप्रथम आप सभी बंधुओं का हार्दिक आभार....
      वैसे मैंने अपनी प्रतिक्रिया-समाधान में विषय से सम्बंधित सभी पहलुओं का निराकरण का प्रयास किया है, फिर भी कुछ और पहलू भी रह गए है,जो एक सम्प...See More
      November 26, 2010 at 12:57pm ·  ·  4 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      मानवाधिकारवादियों सहित कई स्वयं सेवी संगठनों का मानना है कि इच्छा मृत्यु का हक मिलना ही चाहिए ताकि असाध्य रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को सहज व कष्ट हीन मृत्यु को वरण करने का अवसर मिल सके ! इस बहस पर मैं यह कहना चाहुंगा कि भले ही ऐसे लोगों की ...See More
      November 26, 2010 at 4:48pm ·  ·  4 people
    • Poonam Singh 
      सभी साथियों को मेरा सादर अभिवादन स्वीकार हो....
      हमारे परमादरणीय गुरुदेव पूजनीय डॉ.मनोजजी एक आदर्श मित्र के गुणों से परिपूरित हैं......
      "पापा निवारयति योज्यते हिताय
      गुह्यं निगुह्यति च गुणानिम् प्रकटम करोति
      आपद गतं न च जहाति ददाति काले
      ...See More
      November 27, 2010 at 6:32am ·  ·  2 people
    • Poonam Singh ‎-
      पूजनीय गुरुदेव डॉ.मनोजजी,
      आपने हमारे ज्ञान को वृद्धि करने में हमेशा उदारता का परिचय दिया है, हम आपके चिरऋणी रहेंगे !!अब आप एक आलेख पुनर्जन्म पर और लिख कर इस बारे में फैली हुयी अनेक भ्रांतियों को दूर करने क़ी कृपा करें !!
      आपके अनेक शिष्यों का यह आग्रह है !!
      November 27, 2010 at 6:40am ·  ·  2 people
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      प्रिय पूनम शर्मा,
      आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.........,
      मैं निरंतर प्रयास करता हूँ कि अपने सभी साथियों,मित्रों,प्रशंसकों,शिष्य-शिष्यायों,विद्दतज़नों,परिज़नों के निरंतर सम्पर्क में रहूँ और उनकी सदभावनाओं का सदैव सम्मान करूं !!आप जैसे अति विनम्र ए...See More
      November 27, 2010 at 7:45pm ·  ·  2 people
    • Rakesh Gautam sir,
      you are really wonnderfull writer......
      with regards,
      November 27, 2010 at 10:39pm ·  ·  1 person
    • Raghuveer Saini 
      दस अप्रैल 2001 को नीदरलैंड की संसद में 28 के मुक़ाबले 46 वोटों से इच्छा-मृत्यु या युथेनेज़िया का क़ानून पास हो गया. इस क़ानून का मतलब ये नहीं कि जो जब चाहे आत्महत्या कर सकता है ! ये केवल उन रोगियों के लिए है जिसकी बीमारी लाइलाज हो या जो बहु...See More
      November 28, 2010 at 6:11am ·  ·  1 person
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      निरपराध मृत्युवरण के वर्ग में ही आने वाले यूथेनेज़िया को लेकर बेल्जियम, हॉलैंड और ऑस्ट्रेलिया के कुछ राज्यों में कोई विवाद नहीं है ! इन देशों में इसे मान्यता मिल चुकी है ! अन्य देशो में इस पर आए दिन बहस होती रहती है. यह बहस तब और तीव्र हो...See More
      November 28, 2010 at 1:35pm · 
    • Manoj Chaturvedi 
      ‎*
      मृत्यु परम सत्य है, जिसके लिए आपका भौतिक उत्तरदायित्वों से निवृत होना परम आवश्यक है................................
      'हमारे अन्दर वो शक्ति है की हम कुछ भी कर सकते है बस हमें उस शक्ति को पहचानने की ज़रूरत है हम क्या है या क्या करना चाहते है ...See More
      November 28, 2010 at 1:44pm

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