होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों यानि सदृश और पैथोज अर्थात रोग से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत " सम: समम शमयति " पर आधारित है ।
लगभग २०० वर्ष पूर्व जर्मन चिकित्सक डा सैमुएल हैनिमैन ने इस तथ्य को पाया कि स्वस्थ रहते हुये जब उनके द्वारा किसी निशिचित रोग की औषधि दी गई जिससे बीमार व्यक्ति ठीक होता था तो उनमे भी रोग के लक्षण पाये गये । उदाहरण के लिये जब उन्होने सिंकोना छाल को ग्रहण किया जिसमे कुनेन की मात्रा रहती है तो वह बीमार पड गये और उनमे मलेरिया के लक्षण पाये गये । वह यह देख कर चकित रह गये कि सिंकोना का प्रयोग मलेरिया उन्नमूलन के लिये होता है परन्तु उसका स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रयोग करने पर मलेरिया के लक्षण विधमान हो गये ।
डा हैनिमैन ने प्रत्येक रोग के लक्षण पर पादप, खनिज, पशुओं द्वारा उत्पाद या रसायिनिक मिश्रण से अपने निरंतर प्रयोग करने के बाद पाया कि उनमे नियत रोग के लक्षण आलोकित हुये ।उन्होने पुन: यह देखा कि दो तत्वों के प्रयोग से एक जैसे रोग के लक्षण प्रतीत नही होते । उन्होने यह भी पाया कि प्रत्येक पदार्थ शरीर , मस्तिषक एवं संवेग को प्रभावित करता है ।
अंतत: हैनिमैन ने " सम: समम शमयति " के सिद्दांत को अपनाकर रोगोन्मूलन करना प्रारम्भ किया ।
यह होम्योपैथी के मूल सिद्दातं मे निहित है । इस नियम के अनुसार जिस औषधि की अधिक मात्रा स्वस्थ शरीर मे जो विकार पैदा करती है उसी औषधि की लघु मात्रा वैसे समलक्षण वाले प्राकृतिक लक्षणॊं को नष्ट भी करती है । इसी से " सम: समम शमयति " वाले सिद्दांत भी प्रतिपादित हुआ है । उदाहरण के लिये कच्चे प्याज काटने पर जुकाम के जो लक्षण उभरते हैं जैसे नाक, आँख से पानी निकलना उसी प्रकार के जुकाम के स्थिति मे होम्योपैथिक औषधि ऐलीयम सीपा देने से ठीक भी हो जाता है ।
होम्योपैथी एक पूर्णतः वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, जिसका उद्भव लगभग 200 वर्ष पहले हुआ। होम्योपैथी 'समः समं, शमयति' के सिद्धांत पर काम करती है, जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा अर्थात एक तत्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उस रोग को दूर करने की क्षमता भी रखता है।
इस पद्धति के द्वारा रोग को जड़ से मिटाया जाता है। इस पद्धति के बारे में अधिकतर लोगों में कई तरह की भ्रांतियाँ हैं, जिसका छोटा सा निवारण हम कर रहे हैं-
भ्रांति : होम्योपैथी पहले रोग को बढ़ाती है, फिर ठीक करती है।
तथ्य : यह अत्यधिक प्रचलित मिथ्या धारणा है। ऐसा प्रत्येक मामले में तथा हमेशा नहीं होता है, लेकिन यदि औषधियाँ जल्दी-जल्दी या आवश्यकता से अधिक ली जाएँ तो लक्षणों की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है। जैसे ही औषधि को संतुलित मात्रा में लिया जाता है, तीव्रता में कमी आ जाती है। यही नहीं, जब कोई रोगी लंबे समय तक ज्यादा तीव्रता वाली एलोपैथिक औषधियाँ जैसे स्टिरॉयड आदि लेता रहा है और होम्योपैथिक चिकित्सा लेते ही स्टिरॉयड एकदम से बंद कर देता है तो लक्षणों की तीव्रता में वृद्धि हो जाती है।
भ्रांति : होम्योपैथी सिर्फ पुराने या जीर्ण रोगों में काम करती है।
तथ्य : यह सही है कि होम्योपैथिक चिकित्सक के पास अधिकतर मरीज अन्य पैथियों से चिकित्सा कराने के बाद थक-हारकर आते हैं। तब तक उनकी बीमारी पुरानी या क्रॉनिक हो चुकी होती है। वैसे इसमें सब तरह के रोगों का इलाज किया जाता है, सर्दी, खाँसी, उल्टी, दस्त, बुखार, पीलिया, टायफाइड आदि।
भ्रांति : होम्योपैथी धीरे-धीरे काम करती है।
तथ्य : यह अवधारणा गलत है, होम्योपैथी त्वरित प्रभाव उत्पन्न करती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि यदि किसी रोग का इलाज अन्य पद्धतियों से नहीं हो पा रहा है तो होम्योपैथिक चिकित्सा अपनाएँ अर्थात लोग असाध्य व कठिन रोगों के लिए होम्योपैथी चिकित्सा की ओर अग्रसर होते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि इस तरह के रोगी को ठीक होने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही।
भ्रांति : होम्योपैथी में आहार संबंधी परहेज बहुत अधिक करना पड़ता है।
तथ्य : यह भी भ्रांति है कि होम्योपैथी में प्याज, लहसुन, हींग, खुशबूदार पदार्थ, पान, कॉफी, तंबाकू का परहेज जरूरी है। कुछ औषधियों के साथ ही आहार संबंधी परहेज आवश्यक है अन्यथा औषधि का असर कम हो सकता है।
भ्रांति : मधुमेह के रोगी होम्योपैथिक औषधि का सेवन नहीं कर सकते।
तथ्य : मधुमेह के रोगी इन गोलियों का सेवन कर सकते हैं, क्योंकि इनमें शकर की मात्रा अति न्यून होती है। इसके अलावा इन दवाइयों को तरल रूप में पानी में मिलाकर भी ले सकते हैं।
भ्रांति : होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति से हर रोग का इलाज नहीं हो सकता है।
तथ्य : अधिकतर लोग चिकित्सक से किसी न किसी बीमारी का नाम लेकर यह प्रश्न अवश्य करते हैं कि होम्योपैथी में इस रोग का इलाज है या नहीं। अभी भी यह धारणा है कि होम्योपैथी में कुछ ही रोगों का इलाज है जैसे- चर्म रोग, हड्डी रोग आदि।
दरअसल यह एक संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। इसके द्वारा सभी रोगों का इलाज संभव है। कई रोगों में जहां अन्य चिकित्सा पद्धति में सर्जरी ही एकमात्र इलाज है जैसे- टांसिलाइटिस, अपेंडिसाइटिस, मस्से, ट्यूमर, पथरी, बवासीर आदि। इनमें भी होम्योपैथी कारगर है।
होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है।
*"मिर्च और मोटापा"*
आपको लगता होगा कि मिर्च खाकर सिर्फ मुंह में ही जलन होती है पर वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इससे शरीर का फैट भी जलता है। यकीनन इससे अच्छी बात क्या हो सकती है क्योंकि मिर्च खाइए और मोटापे की चिंता भूल जाइए
कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने रिसर्च में पाया कि मिर्च खाने से शरीर में जो हीट बनती है, वह हमारे कैलरी उपभोग को बढ़ाती है और फैट की परतों को पतला करती है।
लगभग २०० वर्ष पूर्व जर्मन चिकित्सक डा सैमुएल हैनिमैन ने इस तथ्य को पाया कि स्वस्थ रहते हुये जब उनके द्वारा किसी निशिचित रोग की औषधि दी गई जिससे बीमार व्यक्ति ठीक होता था तो उनमे भी रोग के लक्षण पाये गये । उदाहरण के लिये जब उन्होने सिंकोना छाल को ग्रहण किया जिसमे कुनेन की मात्रा रहती है तो वह बीमार पड गये और उनमे मलेरिया के लक्षण पाये गये । वह यह देख कर चकित रह गये कि सिंकोना का प्रयोग मलेरिया उन्नमूलन के लिये होता है परन्तु उसका स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रयोग करने पर मलेरिया के लक्षण विधमान हो गये ।
डा हैनिमैन ने प्रत्येक रोग के लक्षण पर पादप, खनिज, पशुओं द्वारा उत्पाद या रसायिनिक मिश्रण से अपने निरंतर प्रयोग करने के बाद पाया कि उनमे नियत रोग के लक्षण आलोकित हुये ।उन्होने पुन: यह देखा कि दो तत्वों के प्रयोग से एक जैसे रोग के लक्षण प्रतीत नही होते । उन्होने यह भी पाया कि प्रत्येक पदार्थ शरीर , मस्तिषक एवं संवेग को प्रभावित करता है ।
अंतत: हैनिमैन ने " सम: समम शमयति " के सिद्दांत को अपनाकर रोगोन्मूलन करना प्रारम्भ किया ।
यह होम्योपैथी के मूल सिद्दातं मे निहित है । इस नियम के अनुसार जिस औषधि की अधिक मात्रा स्वस्थ शरीर मे जो विकार पैदा करती है उसी औषधि की लघु मात्रा वैसे समलक्षण वाले प्राकृतिक लक्षणॊं को नष्ट भी करती है । इसी से " सम: समम शमयति " वाले सिद्दांत भी प्रतिपादित हुआ है । उदाहरण के लिये कच्चे प्याज काटने पर जुकाम के जो लक्षण उभरते हैं जैसे नाक, आँख से पानी निकलना उसी प्रकार के जुकाम के स्थिति मे होम्योपैथिक औषधि ऐलीयम सीपा देने से ठीक भी हो जाता है ।
होम्योपैथी एक पूर्णतः वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, जिसका उद्भव लगभग 200 वर्ष पहले हुआ। होम्योपैथी 'समः समं, शमयति' के सिद्धांत पर काम करती है, जिसका अर्थ है समान की समान से चिकित्सा अर्थात एक तत्व जिस रोग को पैदा करता है, वही उस रोग को दूर करने की क्षमता भी रखता है।
इस पद्धति के द्वारा रोग को जड़ से मिटाया जाता है। इस पद्धति के बारे में अधिकतर लोगों में कई तरह की भ्रांतियाँ हैं, जिसका छोटा सा निवारण हम कर रहे हैं-
भ्रांति : होम्योपैथी पहले रोग को बढ़ाती है, फिर ठीक करती है।
तथ्य : यह अत्यधिक प्रचलित मिथ्या धारणा है। ऐसा प्रत्येक मामले में तथा हमेशा नहीं होता है, लेकिन यदि औषधियाँ जल्दी-जल्दी या आवश्यकता से अधिक ली जाएँ तो लक्षणों की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है। जैसे ही औषधि को संतुलित मात्रा में लिया जाता है, तीव्रता में कमी आ जाती है। यही नहीं, जब कोई रोगी लंबे समय तक ज्यादा तीव्रता वाली एलोपैथिक औषधियाँ जैसे स्टिरॉयड आदि लेता रहा है और होम्योपैथिक चिकित्सा लेते ही स्टिरॉयड एकदम से बंद कर देता है तो लक्षणों की तीव्रता में वृद्धि हो जाती है।
भ्रांति : होम्योपैथी सिर्फ पुराने या जीर्ण रोगों में काम करती है।
तथ्य : यह सही है कि होम्योपैथिक चिकित्सक के पास अधिकतर मरीज अन्य पैथियों से चिकित्सा कराने के बाद थक-हारकर आते हैं। तब तक उनकी बीमारी पुरानी या क्रॉनिक हो चुकी होती है। वैसे इसमें सब तरह के रोगों का इलाज किया जाता है, सर्दी, खाँसी, उल्टी, दस्त, बुखार, पीलिया, टायफाइड आदि।
भ्रांति : होम्योपैथी धीरे-धीरे काम करती है।
तथ्य : यह अवधारणा गलत है, होम्योपैथी त्वरित प्रभाव उत्पन्न करती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि यदि किसी रोग का इलाज अन्य पद्धतियों से नहीं हो पा रहा है तो होम्योपैथिक चिकित्सा अपनाएँ अर्थात लोग असाध्य व कठिन रोगों के लिए होम्योपैथी चिकित्सा की ओर अग्रसर होते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि इस तरह के रोगी को ठीक होने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही।
भ्रांति : होम्योपैथी में आहार संबंधी परहेज बहुत अधिक करना पड़ता है।
तथ्य : यह भी भ्रांति है कि होम्योपैथी में प्याज, लहसुन, हींग, खुशबूदार पदार्थ, पान, कॉफी, तंबाकू का परहेज जरूरी है। कुछ औषधियों के साथ ही आहार संबंधी परहेज आवश्यक है अन्यथा औषधि का असर कम हो सकता है।
भ्रांति : मधुमेह के रोगी होम्योपैथिक औषधि का सेवन नहीं कर सकते।
तथ्य : मधुमेह के रोगी इन गोलियों का सेवन कर सकते हैं, क्योंकि इनमें शकर की मात्रा अति न्यून होती है। इसके अलावा इन दवाइयों को तरल रूप में पानी में मिलाकर भी ले सकते हैं।
भ्रांति : होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति से हर रोग का इलाज नहीं हो सकता है।
तथ्य : अधिकतर लोग चिकित्सक से किसी न किसी बीमारी का नाम लेकर यह प्रश्न अवश्य करते हैं कि होम्योपैथी में इस रोग का इलाज है या नहीं। अभी भी यह धारणा है कि होम्योपैथी में कुछ ही रोगों का इलाज है जैसे- चर्म रोग, हड्डी रोग आदि।
दरअसल यह एक संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। इसके द्वारा सभी रोगों का इलाज संभव है। कई रोगों में जहां अन्य चिकित्सा पद्धति में सर्जरी ही एकमात्र इलाज है जैसे- टांसिलाइटिस, अपेंडिसाइटिस, मस्से, ट्यूमर, पथरी, बवासीर आदि। इनमें भी होम्योपैथी कारगर है।
होम्योपैथी सहज, सस्ती और संपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। ये औषधियाँ शरीर के किसी एक अंग या भाग पर कार्य नहीं करतीं, बल्कि रोगी के संपूर्ण लक्षणों की चिकित्सा करती है।
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कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने रिसर्च में पाया कि मिर्च खाने से शरीर में जो हीट बनती है, वह हमारे कैलरी उपभोग को बढ़ाती है और फैट की परतों को पतला करती है।
मुझे आपकी blog बहुत अच्छी लगी। मैं एक Social Worker हूं और Jkhealthworld.com के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देता हूं। मुझे लगता है कि आपको इस website को देखना चाहिए। यदि आपको यह website पसंद आये तो अपने blog पर इसे Link करें। क्योंकि यह जनकल्याण के लिए हैं।
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